Sunday 29 August 2021

ललही छठ पूजा

       मुख्यतः बिहार के सुप्रसिद्ध छठ महापर्व के बारे में तो हम सब जानते हैं , लेकिन आज मैं आपको एक और छठ पूजा के बारे में बताऊँगा जिसे ललही छठ के नाम से भी जाना जाता है जो कि उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में बड़े ही आस्था से मनाया जाता है।
    बचपन से ही माता जी को छठी मैया का व्रत करते देखते आ रहे हैं।  बाल्य काल में तो व्रत का अर्थ सुबह सुबह खुरपी लेकर पापा के साथ उनकी साईकिल पर बैठकर कुश, पलाश और महुआ के पत्तों को(शहर् में कुश और पलाश को ढूँढना किसी पहाड़ तोड़ने से कम नहीं है) ढूँढ कर लेकर आना बड़ा ही रोमांचक अनुभव रहता था।  फिर सुबह पूजा में मिलने वाला प्रसाद और  दोपहर के समय मां के बनाए हुए देशी घी में बने तिन्नी के चावल का खाना बहुत ही अविस्मरणीय अवसर हुआ करता था। वक्त बदल गया आने जाने के साधन बदल गए बस नहीं बदला तो मां का वह हर वर्ष है षष्ठी पर रखे जाने वाला व्रत। 

आज संपूर्ण देश में हल षष्ठी(बलराम जयंती) का पर्व मनाया जा रहा है। बलराम जयंती हर वर्ष भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को बलराम जयंती मनायी जाती है। यह व्रत माता अपने पुत्रों की दीर्घायु के लिए करती हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में हलषष्ठी को कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे लह्ही छठ, हर छठ, हल छठ, पीन्नी छठ या खमर छठ भी कहा जाता है।

बलराम जयंती 2021

हलषष्ठी व्रत
28 अगस्त 2021, दिन शनिवार 

षष्ठी तिथि प्रारंभ
27 अगस्त 2021 को शाम 06:50 बजे

षष्ठी तिथि समाप्त
28 अगस्त 2021 को रात्रि 08:55 बजे

मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण जी के भाई बलराम जी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में हलषष्ठी व्रत मनाने की परंपरा है। यह परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। क्योंकि बलराम जी का प्रधान शस्त्र हल और मूसल है। इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है। और उन्हीं के नाम पर इस पावन पर्व का नाम हल षष्ठी पड़ा है।

हल षष्ठी के दिन माताओं को महुआ की दातुन और महुआ खाने का विधान है। इस व्रत में हल से जोते हुए बागों या खेतों के फल और अन्न खाना वर्जित माना गया है। इस दिन दूध, घी, सूखे मेवे, लाल चावल(तिन्नी का चावल),करमुए(नदी ,तालाब में पाए जाने वाला एक प्रकार का साग) आदि का सेवन किया जाता है।

इस व्रत को नवविवाहित स्त्रियां भी संतान की प्राप्ति के लिए करती हैं। और माता संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए इस व्रत को करती हैं।

इस व्रत की पूजा करने से पहले प्रात:काल स्नान आदि से निवृत्त हो जाना चाहिए। और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। और गाय के गोबर से जमीन को लीपकर छठी मैया का स्वरूप पूजा स्थल पर बना लें। इसके बाद वहीं भूमि में महुआ, कुश और पलाश की एक-एक शाखा बांधकर गाड़ दें और उसके बाद इनकी पूजा करें।

विशेष नोट - इस व्रत में कोई भी एसी चीज़ नहीं खाई जा सकती जिसकी पारंपरिक रूप से खेती की जाती है। 

जय छठी मैया।। 
श्री चरणों का दास- सुनील कुमार मिश्रा 

छवि -माता जी द्वारा छठी माता स्थापना और पूजन।

साभार :- सुनील कुमार मिश्रा की पोस्ट से
(रामायण सन्देश)

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