रिश्तों के इस बाजार में
मैं भी एक कोना चाहता हूं,
खेल सकूँ किसी के दिल से
मैं भी एक खिलौना चाहता हूँ।
त्याग सभी लक्ष्यों को
मैं भी बाबू शोना चाहता हूँ,
हंसती खेलती जिंदगी में
मैं भी रंडी रोना चाहता हूँ।
वादे निभा न सकूँ
पर साथ सोना चाहता हूँ,
सौ थालियों में खाऊँ
पर कह दूं कि सिर्फ तेरा होना चाहता हूँ।
शब्द मेरे है पर
मैं ये भावना खोना चाहता हूँ।,
सच कहता हूँ मैं तो
बस समाज का आईना होना चाहता हूँ।
:- संदीप प्रजापति
( व्यक्तिगत भावनाओं को आहत करना उद्देश्य नहीं है।)