Tuesday 12 December 2023

पुरुष

                           पुरुष 

              पुरुषों के साथ समाज ने एक विडंबना यह भी कर दी की उन्हें सदा स्त्री पर आश्रित कर दिया गया। पुरुषों के भौतिक, दैहिक व आत्मीय सारे सुखों को केवल स्त्री तक  ही सीमित कर दिया गया। पेट की भूख से लेकर देह की भूख तक सभी का साधन स्त्री। और इनके चलते ही आज पुरुष की स्तिथि मात्र एक कुत्ते की भांति है, जिसे स्त्री रूपी मांस के लोथड़े नाच नचा रहे हैं। पुरुष की मानसिक चेतना को केवल एक सुंदर कामी स्त्री की प्राप्ति तक केंद्रित किया गया।

           जबकि होना तो यह चाहिए था कि पुरुषों को आत्मकेंद्रित, स्वावलंबी एवं सदाचारी होने देते। किशोरावस्था से ही उन्हें घरेलू कार्यों के लिए किसी भी स्त्री पर निर्भर होने के बजाए स्वावलंबी होने देते। उन्हें स्त्री का पूरक होने देते, अर्धनारेश्वर होने देते। युवावस्था में उन्हें स्त्री का केवल उपभोगी न होकर सहभागी भी होने देते। नर से नारायण होने देते। पुरुषों की अपार क्षमता, पौरुष, वीर्य, तेजस और ओजस सब को केवल स्त्री का दास होने की ओर बढ़ाया गया। जिसके जिम्मेदार फूहड़ सिनेमा और कुत्सित समाज के हम सभी सभ्य लोग ही हैं।
   :- संदीप प्रजापति

(नोट : यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं, जिससे किसी का कोई सरोकार नहीं है। लेख के माध्यम से किसी की भावनाएं आहत होती हों तो लेखक क्षमा प्रार्थी हैं और सुझावों का सआदर सम्मान है।)

Saturday 6 May 2023

प्रेम अभिलाषा

                               प्रेम अभिलाषा

"रंगभेद, जात-पात, ऊंच-नीच, अमीरी-गरीबी; सब कुछ भलीभाँति जानता था। हालाँकि फिर भी मेरे हृदय ने कभी तुम्हारी आश न छोड़ी थी। एक उम्मीद सी लगभग जगी रहती ही थी, की एक दिन मैं तुम्हारा हाथ माँग ही लूँगा और प्रेम के अनंत गगन में उड़ चलूँगा।"
              परंतु ये सामाजिक मान्यताएँ क्या मेरी कल्पनाओं को पूर्ण होने देंगी? क्या मिथिला की बेटी फिर कभी अवध की ओर ब्याह दी जाएंगी? और ब्याह भी दे दी गई तो क्या नियती उन्हें सुखी जीवन दे पाएगी। या फिर बस उन्हें सारा जीवन प्रेम परीक्षाओं की कसौटियों पर ही कसा जाएगा?

:- संदीप प्रजापति
                  
( राम-सीता विवाह प्रसंग द्वारा कुछ कल्पनाएँ जागृत हुई, जो उक्त पंक्तियों में पिरोने से खुद को रोक न पाया।)
सीताराम🙏🚩

Thursday 26 January 2023

राम राम


राम राम 

सुन्दर स्त्री बाद में शूर्पणखा निकली।
सोने का हिरन बाद में मारीच निकला।
भिक्षा माँगने वाला साधू बाद में रावण निकला।
लंका में तो निशाचर लगातार रूप ही बदलते दिखते थे।
हर जगह भ्रम, हर जगह अविश्वास, हर जगह शंका लेकिन बावजूद इसके जब लंका में अशोक वाटिका के नीचे सीता माँ को रामनाम की मुद्रिका मिलती है तो वो उस पर 'विश्वास' कर लेती हैं।
वो मानती हैं और स्वीकार करती हैं कि इसे प्रभु श्री राम ने ही भेजा है।
जीवन में कई लोग आपको ठगेंगे, कई आपको निराश करेंगे, कई बार आप भी सम्पूर्ण परिस्थितियों पर संदेह करेंगे लेकिन इस पूरे माहौल में जब आप रुक कर पुनः किसी व्यक्ति, प्रकृति या अपने ऊपर 'विश्वास' करेंगे तो रामायण के पात्र बन जाएंगे।
राम और माँ सीता केवल आपको 'विश्वास करना' ही तो सिखाते हैं। माँ कठोर हुईं लेकिन माँ से विश्वास नहीं छूटा, परिस्थितियाँ विषम हुई लेकिन उसके बेहतर होने का विश्वास नहीं छूटा, भाई-भाई का युद्ध देखा लेकिन अपने भाइयों से विश्वास नहीं छूटा, लक्ष्मण को मरणासन्न देखा लेकिन जीवन से विश्वास नहीं छूटा, सागर को विस्तृत देखा लेकिन अपने पुरुषार्थ से विश्वास नहीं छूटा, वानर और रीछ की सेना थी लेकिन विजय पर विश्वास नहीं छूटा और प्रेम को परीक्षा और वियोग में देखा लेकिन प्रेम से विश्वास नहीं छूटा।
भरत का विश्वास, विभीषण का विश्वास, शबरी का विश्वास, निषादराज का विश्वास, जामवंत का विश्वास, अहिल्या का विश्वास, कोशलपुर का विश्वास और इस 'विश्वास' पर हमारा-आपका अगाध विश्वास।
सच बात यही है कि जिस दिन आपने ये 'विश्वास' कर लिया कि ये विश्व आपके पुरुषार्थ से ही खूबसूरत बनेगा उसी दिन ही आप 'राम' बन जाएंगे और फिर लगभग सारी परिस्थितियाँ हनुमान बनकर आपको आगे बढ़ाने में लग जाएंगी।
यहाँ हर किसी की रामायण है, आपकी भी होगी। जिसमें आपके सामने सब है - रावण, शंका, भ्रम, असफलता, दुःख। बस आपको अपनी तरफ 'विश्वास' रखना है.. आपका राम तत्व खुद उभर कर आता जायेगा।

"सभी को अपने जीवन का संघर्ष स्वयं करना पड़ता है।"

जय श्री राम
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पुरुष

                            पुरुष                 पुरुषों के साथ समाज ने एक विडंबना यह भी कर दी की उन्हें सदा स्त्री पर आश्रित कर दिया गया। ...