पर हम भी रुतबे वाले
जाना है तुमने ये कहां
दुनिया के जो रखवाले
काले हैं गीता वाले
जिनके हाथों में दो जहाँ
वेदों के अक्षर काले
पूजा के पत्थर काले
काला है तारों का मकान
लाखों में एक हो माना
पर ये तो सोचो जाना
मेरे ही रंग से हो हसीं
जुल्फ़ें लहराती काली
आँखें वो सुरमें वाली
हाथों का धागा देख लो
सोती हो तुम काले में
छिपती हो तुम काले में
फिर हमसे इतना दूर यूँ
आँखें बंद करके देखो
सपनों के पीछे देखो
मेरे ही रंग के साथ हो
चेहरे का नूर बढ़ाये
छोटा जो तिल पड़ जाये
परियां भी देखें आपको
काली नजरों से बचाये
काला टीका जो लगाए
अब तो समझो ना बात को
आओगे तो जानोगे
रहते हो ऐसे दिल में
जैसे हो मेरा सब तेरा।
तुमसे लम्हा जीता हूँ
तुमको खुद में बनता हूँ
अब कैसे दूँ मैं इम्तिहां।
ग़र जाना है तो जाओ
इतराना है इतराओ
इतना कहना पर जो मिलें।
बिजली बादल को छोड़े
पानी झरने को छोड़े
दिन भी रातों को छोड़ दे।
लक्ष्मी, नारायण छोड़ें
गौरी,शंकर को छोड़े
अब क्या बोलोगे बोल दो
आज हैं हम कल ना होंगे
फिर ऐसे पल ना होंगे
जो तुम पर इतना हो फना।
समझो ना समझो तुम पर
अब हैं सब बातें तुम पर
जितना कहना था कह दिया।
:- कवि संदीप द्विवेदी जी
(एक बहुत ही सुंदर कविता , जो किसी के भी हृदय को स्पर्श कर जाए।)