मैंने देखा है...
मैंने देखा है...
बाप बेटे को दुश्मन होते,
भाई भाई को खून पीते।
सम्बंधो को मरते देखा है,
माँ बेटी को लड़ते देखा है।
रिश्तों में वेहसियत देखी है,
सबकी हैसियत देखी है।
सबने सबको लुटा है,
हर रिश्ता यहाँ झूठा है।
एक टुकड़ा जमीन कुछ रुपये,
और अपनी हवस को ही रटते देखा है।
सारे भौतिक सुखों के लिए,
सम्बंधो की तुरपाई को फटते देखा है।
जवानी को नशे में मस्त देखा है,
जीवन सारा अस्त व्यस्त देखा है।
शिक्षा का अभाव देखा है,
गरीबी का प्रभाव देखा है।
झुग्गी झोपड़ी देखी है,
शैतानी खोपड़ी देखी है।
जीवन के कई रंग देखे हैं,
सच्चे झूठे सारे प्रसंग देखे है।
हंसते हंसते एकदम से रोया हूँ,
खुशियों की तलाश में खोया हूँ।
उम्र छोटी है पर कई धूप छांव देखे हैं,
लड़खड़ाते अपने भी पांव देखे हैं।
कुछ आपबीती है कुछ बितनी है,
जिंदगी एक जंग है और जंग जितनी है।
:- संदीप प्रजापति
(अपनी वेदनाओं को व्यक्त करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को किसी माध्यम की आवश्यकता होती है। संगीत, नृत्य, चित्रकारी या कला का कोई भी स्वरूप वेदनाओं और भावनाओं को प्रकट करने का सबसे उत्तम मार्ग होता है। लेखनी इनमें से ही एक प्रकार है, जो कि व्यक्ति को वो सारी स्वतन्त्रता देती है। व्यक्ति जो कुछ प्रत्यक्ष रूप से सहज नहीं महसूस कर सकता उसे वह अपने लेखन के माध्यम से सहज ही व्यक्त कर सकता है।)
Bahut achha likha hai Sandeep bhai
ReplyDeleteDhanywad dost 🙏
ReplyDelete