Friday 26 November 2021

घरवाली


                              घरवाली

काजल बिंदी व कानों में 
एक सूंदर सी बाली होगी...
फटे चीथड़ों के इस दौर में 
सूट सलवार दुपट्टे वाली होगी...
छल कपट चालाकी से परे
सूंदर सुशील भोली भाली होगी...
सबसे न्यारी सबसे प्यारी
उसकी हर एक बात निराली होगी...
मन के सूखे में प्रेम बरसेगा
एक वो ही तो बरसाने वाली होगी...
दोस्त प्रेमिका जीवनसाथी
सब कुछ तो वो घरवाली होगी...
यूँ ही नहीं उसमें पगलाता हूँ
वो तो अप्सरा एक खयाली होगी...
प्रतिक्षाओं का अंत होगा प्रेम अनंत होगा
जब इन होंठों पे उसके होंठों की लाली होगी...
                                        
                                                 :- संदीप प्रजापती

(प्रेम की प्रतीक्षा में अपने प्रेमी के रंग-रूप, हाव-भाव की कल्पना करते हुए अपने चित्त में उसका एक सजीव चित्रण कर लेना और बस उसी चित्र को अपने ऑंखों के सामने हर घड़ी देखना भी एक बेहद ही सुखद अनुभव है।)

Friday 19 November 2021

हम छात्र हैं...


हम छात्र हैं...

हम छात्र हैं,
दया के पात्र हैं।

सम्मान हमें मिलता नहीं,
दर्द इतना की संभलता नहीं।

हर किसी का प्रभाव हम पर है,
पैसों का अभाव हम पर है।

खाली जेब औक़ात दिखाती है,
अरे भाई उम्र भी तो ढली जाती है।

कभी घर की परेशानियों से
तो कभी समाज के तानों से,
हम हार जाते हैं
अपने ही अरमानों से।

कई रातें जागी है, जवानी खपाई है,
आंखें किताबों में गड़ाई है।
फिर भी असफल हुए तो हम नाकारा है,
सफलता की हमने काबिलियत ही नहीं पाई है।

थक जो जाएं किताबों पर सिर रख सोते हैं,
एक सपना जीने को रोज थोड़ा थोड़ा रोते हैं।
बस इस साल मेहनत करलो फिर तो मौज है,
हर रोज यही सुनते सुनते जिंदगी बन गई बोझ है।

छात्र एक परिंदा होगा,
कहीं मुर्दा तो कहीं जिंदा होगा।
न किसी का साथ होगा न कोई कंधा होगा,
हम होंगे हमारा पंखा होगा और गले में फंदा होगा।

परीक्षाएँ तो होंगी मगर छात्र न होंगे,
दया तो होगी मगर दया के ये पात्र न होंगे।

                                                     :- संदीप प्रजापति


(दुनिया की इस पाठशाला में मनुष्य जीवन भर छात्र बना रहता है। मेरी यह कविता छात्र जीवन जी रहे हर उस युवा को समर्पित है, जो सारी जिम्मेदारियों को उठाते हुए भी अपने अंदर के विद्यार्थी को मरने नहीं देता है। अपने किसी विशेष लक्ष्य के लिए पढ़ता रहता है। लोगों की अवहेलना सहता है फिर भी अपने काम में लगा रहता है और फिर एक दिन सफल होकर भी दिखाता है।)


Wednesday 17 November 2021

एक तलाश जारी है...

एक  तलाश जारी है...

ये तुम हो
या मेरे ख्वाबों ने
तुम्हारी तस्वीर उतारी है।

वो मासूम चेहरा
गोरे गाल
और आँखें भी तो कजरारी है।

वो सादगी  मिजाज
गुलाबी होंठ
और बोली भी तो न्यारी  है।

वो अल्हड़ जवानी
गठीला बदन
और चाल भी तो मतवारी है।

वो पतली कमर
ऊँचा कद
और मोहोब्बत भी तो करारी है।

वो चांदनी सुंदरता
बेदाग चरित्र
और पवित्रता भी तो सारी की सारी है।

सच कहना तुम ऐसी ही हो या,
मेरी कल्पनाओं में एक तलाश जारी है।

                                                 :- संदीप प्रजापति


(अपनी कल्पनाओं में प्रेम का एक चेहरा बुनना और उसी से अथाह प्रेम करना भी एक आनन्द है। प्रेम करने के लिए आपके पास किसी के एक वास्तविक शरीर का होना ही आवश्यक नहीं है। आप किसी स्थान, वस्तु, विचारों या स्मृतियों से भी भरपूर प्रेम कर सकते हैं जो आपको ईश्वरीय प्रेम का अनुभाव कराता रहेगा।)








Tuesday 16 November 2021

एक सवाल

                                 एक सवाल


एक सवाल है
जवाब बताओगी क्या...

बंदिशें कितनी ही हो
तुम दौड़ी चली आओगी क्या...
रूठूँ जो कभी तुमसे
तुम प्यार से मनाओगी क्या...

थक जो मैं जाऊँ
सिर गोदी में रखकर सुलाओगी क्या...
प्रेम जितना हो तुममे
सारा प्रेम मुझपर लुटाओगी क्या...

आज ख्वाबों में आई हो
कल बाहों में भी आओगी क्या...
तुम्हारी इन हथेलियों पर
मेहँदी हमारी रचाओगी क्या...

मांग में अपनी 
हमारा सिंदूर सजाओगी क्या...
फेरे पूरे सात लेकर
सात जन्मों का साथ निभाओगी क्या...

मैं जीवन भर इंतज़ार कर लूँ
बस एक बार कह दो तुम आओगी क्या...
सुनो इस बंजर मन में
प्रेम का उपवन लगा के छोड़ जाओगी क्या...

                                                  :- संदीप प्रजापति

(मन मे कुछ आशंकाएं लिए कल्पनाओं की दुनिया में प्रेम का बसेरा ढूंढ रहा एक प्रेमी। प्रेम पा लूँ या प्रेम जी लूँ बस इसी द्वंद्व में उलझा हुआ है। ) 



पुरुष

                            पुरुष                 पुरुषों के साथ समाज ने एक विडंबना यह भी कर दी की उन्हें सदा स्त्री पर आश्रित कर दिया गया। ...