Tuesday 26 April 2022

कुछ लिख दूँ...



                           कुछ लिख दूँ...

1.
कभी-कभी सोचता हूँ कि,
एक कविता बस यूँ ही लिख दूँ।
सारी की सारी तारीफें लिख दूँ,
जुल्फें आँखे होंठ गर्दन और तिल।
सब कुछ स्मृतियों में उतारू ,
और फिर तेरा रूप कागज़ पर रख दूँ।
लिख दूँ दिल की वो सारी बातें ,
जो मैं तुझसे कभी कह ही न पाया।
एक एहसास था दिल में,
जो कभी लबों तक न आया।
पहली मुलाक़ातें तेरी बातें,
मेरा इकरार तेरा इनकार लिख दूँ।
मुझ जैसे कई और हैं चाहने वाले तुम कहती थी
फिर भी लिख दूँ तुमको पहला प्यार लिख दूँ।

2.
याद है वो कोचिंग के दिन,
जब तुम मुझसे मदद लेती थी।
किसी सवाल को हल करने के बहाने,
छुपके से उन गोरे हाथों को छू लेता था।
सच कहता हूँ बस एक वो ही दिन थे,
जब मैं भी किसी को ईश्क़ कर लेता था।
है पता वो बस मतलब के दिन थे,
कुछ पल ही थे पर बेहद हसीन थे।
तुम मुझसे कुछ सवाल सीख लेती थी,
मैं तुमको देख नीत नए ख्याल लिख लेता था।

3.
कई बार खूब व्यस्त रहकर भी,
तुझको अहमियत दी थी।
बेमतलब से एक लगाव को भी,
हमने इतनी खासियत दी थी।
एक झलक तेरी देखने को,
तुझको पढ़ाना पड़ता था।
हाय रे कमबख्त ईश्क़,
नौटंकी उठाना पड़ता था।
पर अब खुशी होती है,
किसी के लिए हम भी अजीज थे।
शायद एक उम्मीद थे मीत थे
कुछ न थे पर हर मतलब में करीब थे।


(कुछ ख्यालों को यूँ ही लिख लेना चाहिए। स्मृतिपटल पर चलते कुछ रंगीन नजारों को शब्दों में पिरोकर एक कविता की माला गूंथ ईश्वर को भेंट कर देना भी भक्ति का ही स्वरूप है।)


Monday 25 April 2022

मैंने देखा है...


                             मैंने देखा है...
मैंने देखा है...
बाप बेटे को दुश्मन होते,
भाई भाई को खून पीते।
सम्बंधो को मरते देखा है,
माँ बेटी को लड़ते देखा है।
रिश्तों में वेहसियत देखी है,
सबकी हैसियत देखी है।
सबने सबको लुटा है,
हर रिश्ता यहाँ झूठा है।
एक टुकड़ा जमीन कुछ रुपये,
और अपनी हवस को ही रटते देखा है।
सारे भौतिक सुखों के लिए,
सम्बंधो की तुरपाई को फटते देखा है।
जवानी को नशे में मस्त देखा है,
जीवन सारा अस्त व्यस्त देखा है।
शिक्षा का अभाव देखा है,
गरीबी का प्रभाव देखा है।
झुग्गी झोपड़ी देखी है,
शैतानी खोपड़ी देखी है।
जीवन के कई रंग देखे हैं,
सच्चे झूठे सारे प्रसंग देखे है।
हंसते हंसते एकदम से रोया हूँ,
खुशियों की तलाश में खोया हूँ।
उम्र छोटी है पर कई धूप छांव देखे हैं,
लड़खड़ाते अपने भी पांव देखे हैं।
कुछ आपबीती है कुछ बितनी है,
जिंदगी एक जंग है और जंग जितनी है।
                                               :- संदीप प्रजापति


(अपनी वेदनाओं को व्यक्त करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को किसी माध्यम की आवश्यकता होती है।  संगीत, नृत्य, चित्रकारी या कला का कोई भी स्वरूप वेदनाओं और भावनाओं को प्रकट करने का सबसे उत्तम मार्ग होता है। लेखनी इनमें से ही एक प्रकार है, जो कि व्यक्ति को वो सारी स्वतन्त्रता देती है। व्यक्ति जो कुछ प्रत्यक्ष रूप से सहज नहीं महसूस कर सकता उसे वह अपने लेखन के माध्यम से सहज ही व्यक्त कर सकता है।)
  

Wednesday 20 April 2022

तुम आना जरूर...

                            तुम आना जरूर...

सुनो,
आओगी जब तुम
लेते आना मेरी उन सारी खुशियों को,
जो मैंने तुम्हारे आश में 
तुम पर उधार रखे हैं। 
उन सारी खामोशियों की वजह लेते आना,
जिन्हें मैं बेवजह ही ढो रहा हूँ।
हर उस दर्द का मरहम बनकर आना,
जो मैंने हर किसी से छिपाए हैं।
हर उस उम्मीद की सच्चाई बनकर आना,
जो मैंने तुमसे लगाए हैं।
के मेरे सारे त्यागों प्रतिक्षाओं का, 
तुम हिसाब बन कर आना।
एक वक्त होगा इश्क़ मेरा, 
तुम बेहिसाब बन कर आना।
आना ऐसे की जैसे, 
आती है तुम्हारी स्मृति।
आकर छा जाना मेरे मानस पर
जैसे किसी मरुस्थल में छाती हो वृष्टि।
सुनो, तुम आओगी ना?
सारे ख्वाबों को सच कर जाओगी ना?
न आ सको तो तुम मत आना,
परन्तु आकर फिर न जाना।
मरु को बंजर ही रहने देना
पर झूठा प्रेम उपवन न लगाना।
                                           
                                                :- संदीप प्रजापति

( हिंदी साहित्य जगत में प्रेम रस का अपना एक विशेष महत्त्व है। प्रेम रस की विधा और प्रेम की क्षुधा को जीने का कविताओं से बेहतर कोई दूसरा विकल्प खोज पाना तो शायद ही मुमकिन हो। यह कविता उन सभी हिंदी भाषी पाठक को समर्पित है, जो जीवन में प्रेम की आश को छोड़ना नहीं चाहते।और हाँ शायद छोड़ना भी नहीं चाहिए। क्या पता कब जीवन करवट ले और आपके हिस्से भी प्रेम आ जाए। राधा, रुक्मिणी वाला न सही पर मीरा वाला तो आ ही जाए।)  

पुरुष

                            पुरुष                 पुरुषों के साथ समाज ने एक विडंबना यह भी कर दी की उन्हें सदा स्त्री पर आश्रित कर दिया गया। ...