Saturday 10 December 2022

पंक्तियाँ...

सच्चाई अपनी सूरत की है पता,
फिर भी आईने में खुद को सँवार लेता हूँ...

सच सुनकर रिश्ते सारे मर न जाए,
इसीलिए कई दफा लफ्ज़ अपने सुधार लेता हूँ...

कल की फ़िकर नहीं मुझको,
जीवन यूँ ही आज में गुजार लेता हूँ...

कभी चुकाऊंगा कर्ज़ तेरा जिंदगी,
आज मोहलत में चंद साँसें उधार लेता हूँ...

रातें ये जाड़े की जो कटती नहीं,
'संदीप' नाम किसी हमनशीं का पुकार लेता हूँ...

:- संदीप प्रजापति

No comments:

Post a Comment

पुरुष

                            पुरुष                 पुरुषों के साथ समाज ने एक विडंबना यह भी कर दी की उन्हें सदा स्त्री पर आश्रित कर दिया गया। ...