Monday 21 November 2022

तुम आना...

                       तुम आना...

मैं नहीं जानता तुम कहाँ हो और कब आओगी।
मगर मैं इतना जानता हूँ तुम जरूर आओगी।
और जब तुम आओगी हर वो खुशी अपने साथ लाओगी।
जिसकी प्रतीक्षा मैनें कई सालों की है।
तुम आओगी ऐसे जैसे सूखे पेडों पर पत्ते आते हैं।
जैसे सुने आसमां पर बादल छाते हैं।
जैसे बंजर खेतों में हरियाली आती है।
जैसे भोर भए उजियाला आती है।
तुम सर्द रातों की गर्माहट बनकर आना।
तुम मेरी खामोशियों की आहट बनकर आना।
तुम आना तुम आना जैसे कोई कविता की पंक्ति आती है।
तुम आना जैसे शुद्ध विचारों की संगति आती है।
तुम बरसों के युद्ध की शांति बनकर आना।
तुम जीवन में प्रेम की क्रांति बनकर आना।
तुम आना... तुम आना... सुनो तुम आना जरूर।
तुम सारी उम्मीदों को धूमिल न करना।
तुम आशाओं के सफर को नाकामयाबी की मंजिल न करना।
जो तुम न भी आओ सो लड़ाके बुजदिल न करना।
जो तुम न भी आओ सो लड़ाके बुजदिल न करना।।
                                                                  :- संदीप प्रजापति

( संसार में प्रत्येक व्यक्ति को किसी की प्रतीक्षा है, और वह उसे पाने की जद में लगा है। कोई प्रेम की प्रतीक्षा में है तो कोई सफलता की। मेरी यह कविता ऐसे हर व्यक्ति को समर्पित है जो जीवन में प्रतीक्षा के दौर से गुजर रहा है और आस लगाए बैठा है कि तुम आओगी...अरी वो प्रेमिका , अरी वो सफलता तुम आओगी जरूर; अभी मैंने हिम्मत नहीं हारी है।)

No comments:

Post a Comment

पुरुष

                            पुरुष                 पुरुषों के साथ समाज ने एक विडंबना यह भी कर दी की उन्हें सदा स्त्री पर आश्रित कर दिया गया। ...