Monday 2 November 2020

RAPE MUKT SANSAAR

#बलात्कार😰😰

#Rape......😢😢

आज एक बच्चा भी जानता है कि रेप क्या होता है? कैसे होता है? हाँ लेकिन किन कारणों से होता है, कारण नहीं जानता। सच कहें तो ये कोई नही जानता न जानने का प्रयत्न करता।

खैर लोग कहते हैं कि रेप क्यों होता है??? कौन जिम्मेदार है इसका! लड़कियों का पाश्चात्य पहनावा, लडकों की घटिया मानसिकता या सरकार की सुस्त नीतियाँ??
लेकिन क्या मात्र यही सब इन बढ़ती रेप औऱ acid attack जैसी घटनाओं के जिम्मेदार है।
कहते हैं रेप का कारण लड़कों की मानसिकता है लेकिन वो आयी कहाँ से???
बीते समय में शुरुआती 4-5 साल का बच्चे क्या देखते सुनते बड़े होते थे, बुजुर्गों की बातें, टीवी पर माल गुडी डेज, शक्तिमान, चित्रहार, रामायण, महाभारत। और आज उसी उम्र के बच्चे क्या देख सुन रहे है? टीवी पर आइटम न०(कुंडी मत खड़काओ राजा, मुन्नी बदनाम, प्यार दो प्यार लो आदि) अश्लीलता की हद्द पार करती हुई फिल्में(सभी वाकिफ हैं), double meaning vulger comedy, सीरियल आदि...
और बची कुची कसर ये विज्ञापन पूरी कर देते हैं, पूरा दिन प्रचार के लिए बेहद घटिया विडियो क्लिप टैग लाइन्स के साथ Set wet gel(नही लगाया तो लड़की नही पटेगी), close-up(पास आने का मौका), innerwear(खुशबू वाली), body sprey(कोई दूर न रह पाए), neha swaha-sneha swaha(ठंडी में गर्मी का एहसास) आदि हद से ज्यादा....
इनसे भी और अलग पाखंड ज्योतिषी विद्या- बाबा बंगाली, तंत्र, मनचाहा प्यार पाए, स्त्री वशीकरण आदि के विज्ञापन।।

*Over all जब हर विज्ञापन हर फ़िल्म, सीरियल, गाने में केंद्र बिंदु और भोगविलास की वस्तु लड़की होती है। तो ऐसे में इन कृत्यों को बढ़ावा मिलना निश्चित है। ऐसी घटनाओं के पीछे निश्चित रूप से ये बाज़ारवाद जिम्मेदार है।

कुल मिलाकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में कुछ भी परोसा जाता है। और उसे सभी सहर्ष स्वीकारते हैं।
लेकिन गलती इनकी भी नहीं है क्योंकि आप ख़रीददार हैं। इनके दर्शक हैं, आपका मनोरंजन करना इनका काम है जिसमे बर्बाद होने के लिए पैसे भी आप अपनी जेब से देते हो।
लेकिन ये सब देख के हमारा खून नही खौलता, तब हमें गुस्सा नहीं आता?? इसका विरोध हम कभी नहीं करते क़भी कैंडलमार्च नहीं करते।

हमें लगता है रेप, acid attack, harrasmant  रोकना सरकार, पुलिस  प्रशासन और न्याय व्यवस्था की जिम्मेदारी है।। क्यों??? रेपिस्ट बनाये ये टीवी, फ़ोन,  बॉलीवुड, सोशल मीडिया,आपका आस पास का माहौल और जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की? क्या समाज, मीडिया, और हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं?? इन सबकी जड़ टीवी चैनल्स, बॉलीवुड, मीडिया को कुछ नही कहेंगे आप। क्योंकि वो मनोरंजन करते हैं आपका??

हम सरकार पर गुस्सा ऐसे निकालते हैं जैसे उसने ही रेप एजेंट छोड़ रखे हैं समाज में। और जिस तरह ये वारदातें बढ़ रही हैं, एक लड़की के साथ रेप की वारदात पर हम क्रोधित हो जाते हैं, जोर शोर से सोशल मीडिया पर हल्ला मचाते हैं, dp बदल लेते हैं, कैंडिल मार्च निकालते हैं, न्याय की मांग करते हैं, और सजा के तौर पर रेपिस्ट की फांसी औऱ अनकॉउंटर पर खुश हो जाते हैं पटाख़े फोड़ते हैं कुल मिलाकर दिल को ये तसल्ली देते हैं कि न्याय हुआ, पर क्या ये काफी और सही है?????

इन सब में कुछ पाना तो दूर हम खो क्या रहे हैं क्या कभी ग़ौर किया???? खो रहे हैं हम अपने देश का भविष्य, एक रेपपीडिता लड़की, और एक रेपिस्ट लड़का, जो कल को इस देश का भविष्य बनते। रेपिस्ट के लिए अखंड गुस्सा वहीं पीड़िता के लिए सहानुभूति,, पर क्या वो लड़का ये सब सीख के धरती पर आया था ?? क्या उसके द्वारा किये कुकृत्य की जड़ वो स्वयं था?? वो थी आज के भागदौड भरे जीवन की ओछी मनोस्थिति। उसे ऐसा बनाया इस बाज़ारवाद ने, परिवार ने...

बच्चों के सामने उभरते ये निंदनीय मुद्दे, खो रहे हैं हम अपने देश की शांति व्यवस्था, दिन रात यहीं सब टीवी, मीडिया, सोशल साइट, आस पास यही बाते। भारत कितना ही विकास कर ले लेकिन इन् घटनाओँ के चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर में उसकी साख बनना नामुमकिन है।

आज बच्चों का बचपन दादी दादी के साथ कहानी सुनते हुए नहीं ये सब बातें सुनते हुए बीत रहा है, आज वो सामूहिक परिवार मे नहीं रहते बल्कि अकेलेपन को दूर करने के लिए फोन पर विडियो, और फ़िज़ूल लोगों का सहारा लेते हैं।(helo, azar, tinder, finder)
आज बच्चे अपनेपन का मतलब नहीं अकेलेपन का मतलब जानते हैं।। और उसे ही दूर करने के लिए इन सबमें फसते जाते हैं।

आप कितने ही कठोर सख्त कानून बना लीजिये जब ये सब आज हमारे माहौल और समाज का हिस्सा है तो ये घटनाएं न रुकी हैं, न रुकेंगी।
*बल्कि दुःख हो रहा है कहते हुए कि ये तो शुरुआत है अभी।*

अगर अपनी बेटियों को बचाना है तो सरकार कानून से निकलकर ये भड़काऊ सोशल मीडिया साइट्स की गंदगी साफ करने की जरूरत है।
*मैं किसी के पहनावे को गलत नहीं कहता लेकिन अच्छा पहनना और फूहड़, बेहुदा पहनना दो अलग बाते हैं।*  जगह के अनुसार पहनें और खुद को ढालें। औऱ इसी तरह लड़कों को भी समझना पड़ेगा कि हर लड़की मौका नही जिम्मेदारी है। उसे निभाने की कोशिश तो करें। *(स्वयं की मोमबत्ती जलाने के लिए दूसरों के घर न जलाएं।)*

रेप रोकना सरकार का काम नहीं आपके परिवार में मिले संस्कारों का है। चाहे लड़का हो या लड़की सीमाएं और नियम दोनों के लिए बराबर हों।

सुधरने की जरूरत न सिर्फ सरकार को है ना लड़कों को है ना लड़कियों को है, समाज खुद से भी अपनी समस्या का समाधान कर सकती है।

अब वक्त की मांग है कि सभी अपने आप को अपने स्तर पर सुधारें। क्योंकि ये घटनायें किसी एक आयु वर्ग तक सीमित नहीं हैं अपितु हर आयु वर्ग की नारी इससे जूझ रही है।

जितना गुस्सा और विरोध एक बलात्कारी व्यक्ति के लिए होता है उसका आधा भी हम इस सोशल मीडिया और ओछे बॉलीवुड की फैलाई दुष्प्रवृत्तियों के खिलाफ दिखाये तो समस्या का कुछ हद्द तक निदान हो सकता है।
*कदम उठाने से ही रास्ते तय होते हैं, सोचने से मंजिले पास नही आती।*

वादा करिये खुद से कि किसी न किसी रूप में अपनी *मानसिकता, अपने समाज को ऊंचा व साफ रखेंगे।

जीवन में सुधार निर्णय करने से नहीं निश्चय करने से होते हैं। क़्योंकि युद्ध बंदूकों से नही उन कन्धों से जीते जाते हैं जो उन्हें चलाते हैं।।*

*मौत भले ही आँकड़ों का खेल होती हो पर जिंदा लोग आँकड़े नही होते वो धड़कते हुए सपने होते हैं, उम्मीदें होती हैं क्योंकि वो जिंदा होते हैं।*

(यहाँ किसी की भावनाओं को आहत करने का उद्देश्य नहीं है, न ही किसी के फेवर में कही बात है, तो कृपया शब्दों से ज्यादा भावना को समझने का प्रयत्न करें।)
(COPIED)

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