Saturday 26 March 2022

जीवटता की ओर...

संघर्षो से मत भाग तू, अब तो प्यारे जाग तू। उम्र हुई जवानी की, करतब कर दिख लाने की। कभी कभी यात्राएं हमें ऐसे व्यक्तियों से मिलाती है। जिनसे मिलकर या उन्हें देखकर हमारा जीवन जीने का हौसला बढ़ जाता है। उनकी जीवटता के सामने हमारे तकलीफ और अकर्मण्यता कितने तुच्छ हैं, यह हमें तब प्रतीत होता है जब हम अपने सामने ही किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं, जो हमसे भी दयनीय स्थिति में हो फिर भी जीने की ललक न छोड़े। ऐसे लोगों का दिखना कोई संयोग नहीं। ईश्वर इन्हें पूर्वनियोजित तरीके से हमारे सम्मुख उपस्थित करता है, जिससे हम खुद के रुके हुए जीवन में हौसला फूंक सकें। किसी मासूम बच्चे का खिलौने बेचते हुए दिख जाना, किसी विकलांग व्यक्ति द्वारा कोई कलाकृति करना या किसी एकल माँ द्वारा अपने शिशुओं के पालन के लिए सँघर्ष करना। सफर के दौरान ऐसे व्यक्तियों से आए दिन हम अवगत होते हैं। आपने गौर किया हो या न पर शायद इनके जीवन में हमसे अधिक संघर्ष होने के बावजूद ये लोग जीवन को चुनौति देते हैं और जीने की लालसा बरकरार रखते हैं। क्या इन्हें जीवन से कोई शिकायत नहीं होती या इन्होंने इसे ही जीवन मान लिया है। निराशा मनुष्य का जीवन के आनंद से नाता तोड़कर उसे आत्महत्या की ओर उकसाती है, इसीलिए हमें चाहिए कि हम किसी भी परिस्थिति में निराश न हो। अगर अथाह परिश्रम के बाद भी हमें असफलता ही हाथ लग रही है तो भी हमें निराश न होकर प्रयत्न करते रहना चाहिए। हो सकता है ईश्वर हमसे कुछ और अधिक बेहतर करवाना चाह रहे हों। इसीलिए कहा भी गया है :- मन का हो तो अच्छा, मन का न हो तो और भी अच्छा। क्योंकि वो ईश्वर के मन का होता है और ईश्वर किसी का बुरा नही चाहते। हम - आप जैसे लोग जीवन में आने वाली हर छोटी - छोटी तकलीफों से निराश हो जाते हैं तथा अपनी जिंदगी और ईश्वर को कोसने लगते हैं। क्या बगैर मुश्किलों के जीवन में सुख का अनुभव कर पाना सम्भव है? जब तक जीवन में संघर्ष नहीं होगा तब तक हमें परिश्रम का महत्त्व और सफलता का स्वाद समझ नहीं आ सकता। इसीलिए जीवन में आने वाली सभी चुनौतियों को स्वीकार करते हुए एक योद्धा के भांति लड़कर विजय प्राप्त करना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। :- संदीप प्रजापति

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