Saturday 5 March 2022

त्रिवेणी संगम : एक अविस्मरणीय यात्रा

त्रिवेणी संगम : एक अविस्मरणीय यात्रा


मैं हिंदू मेरे हिंदुत्व का परचम हो तुम।

मैं प्रयाग मेरे तीर्थराज का संगम हो तुम।।

                                                    :-संदीप प्रजापति



आज मैं आपको इन पंक्तियों के लिखने का कारण बताऊँगा,जिसको जीना अपने आप में ही गर्व है।

     यों तो हम जीवनभर कई यात्राएँ करते हैं। जिनमें से कुछ पूर्वनिर्धारित होती हैं तो कुछ आकस्मिक। कुछ यात्राएँ हमें याद ही नहीं रहती तो वहीं कुछ यात्राएँ हमें जीवन भर याद रहती है और जीवन के सुंदर होने का एहसास करवाती हैं। मैं आपको एक ऐसी ही अविस्मरणीय यात्रा का वृत्तांत इस ब्लॉग के माध्यम से साँझा करने जा रहा हूँ। आशा करता हूँ कि आप इस ब्लॉग के माध्यम से ही इस अलौकिक स्थान के सुंदरतम दर्शन सुलभ ही कर पाएँगे।


       वैसे तो समाज की मान्यता के अनुसार और सुरक्षा की दृष्टि से यात्राएँ परिजनों के साथ समूह में ही करनी चाहिए ताकि किसी भी यात्रा का आनंद दोगुना हो जाए। परंतु मेरे लिए यह केवल अपवाद मात्र है। यदि आप एकल यात्रा को चुनते हैं तो आप अत्यधिक जिम्मेदार, जागरूक, निडर और साहसी बनते हैं। साथ ही साथ आपको आपका संपूर्ण समय केवल अपने लिए अपनी इच्छानुसार जीने का मौका मिलता है तथा प्रकृति माता द्वारा अत्यधिक ज्ञान अर्जित करने का अवसर प्राप्त होता है।


       तो चलिए हम अपने ब्लॉग की ओर चलते हैं। आज मैं आपको भारत के तीर्थराज यानी प्रयागराज ले चल रहा हूँ। वैसे तो पौराणिक हिंदू मान्यताओं के अनुसार यह नगर अत्यधिक पवित्र और खास अहमियत रखता है। हिंदू धर्म में इस जगह का महत्व और उल्लेख मिलता है। उत्तरप्रदेश राज्य में बसा यह नगर पूरे भारत से जुड़ा हुआ है। प्रयागराज में त्रिवेणी या संगम क्षेत्र यहाँ की सबसे सुंदर जगह है। मान्यता के अनुसार यहीं पर तीन पवित्र नदियों गंगाजी, यमुनाजी और सरस्वतीजी का मिलन होता है। जिसके कारण ही इसका नाम त्रिवेणी या संगम पड़ा। यहीं पर पापनाशिनी माँ गंगा मनुष्य के पापों को नष्ट करती है।


         संगम पर भक्तों और श्रद्धालुओं का तांता साल भर लगा रहता है। लेकिन कुछ प्रमुख त्योहारों और कुम्भ मेलों पर यहाँ होने वाली भीड़ का कोई सानी नहीं। प्रत्येक १२ वर्ष में यहाँ पर महाकुम्भ मेले का आयोजन होता है। इसी प्रकार प्रत्येक वर्ष माघ मेले का भी आयोजन होता है। जिसमें श्रद्धालु कल्पवास के लिए आते हैं। इस वर्ष माघ मेले में मैंने भी संगम आने का निश्चय किया और गंगा मईया की कृपा से उनके दर्शन भी हुए। प्रयागराज में जैसे ही आप शास्त्री ब्रिज से संगम का विहंगम दृश्य देखते हैं एक क्षण के लिए खुद को पृथ्वी का सबसे सौभाग्यशाली व्यक्ति समझने का गौरव होना कोई अचरज नहीं। लाखों की संख्या में मनुष्यों का जमावड़ा, न जाने कितने सारे छोटे छोटे अस्थायी झोपडें, साधु-संत-महात्मा, भक्तिमय वातावरण, आरती-पूजा, शंखनाद, भजन इत्यादि आपको अपनी ओर आकर्षित करेंगे ही।

 

       संगम को जी भर जीने के लिए आपको कम से कम एक दिन-रात की आवश्यकता पड़ती है और एक स्थाई जगह जहाँ आप ठहर सकें। संगम पहुँचते ही मैं सबसे पहले बड़े हनुमान मंदिर, लेटे हुए हनुमान मंदिर और श्री आदि शंकर विमान मण्डपम मंदिरों में ईश्वर के दर्शन के लिए गया। जिससे मुझे ईश्वर के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। श्री आदि शंकर मण्डपम की रचना शैली, भव्यता और सुंदरता ने तो मन ही मोह लिया था। और तो और इस मंदिर के ऊपरी मंजिले से पूरे संगम का अलौकिक दृश्य देखना किसी स्वप्न से कम नहीं। दूर दूर तक जगमगाती लाईटें, ब्रिज, गंगा मईया, भक्तिमय वातावरण, ठंडी हवाएं, इलाहाबाद फोर्ट और तिरंगा। आहा...।


         मंदिरों के दर्शन के बाद मैं वहाँ से निकलकर गंगा जी के दर्शन, आरती और स्नान के लिए गया। संगम की बलुई मिट्टी, गंगा जी की कलकल की ध्वनि, घाटों की सुंदरता और नाव, पानी में तैरते दीप, गंगाजल के डिब्बे, इत्यादि मन को आल्हादित कर देते हैं। गंगा जी के दर्शन कर मैं गंगा आरती का साक्षी बना। फिर मैंने गंगा जी में स्नान कर जाने-अनजाने हुए पापों के लिए क्षमा याचना की और सभी के उज्ज्वल भविष्य की कामना की। इतनी ठंड रात में गंगा जी में स्नान करना आसान तो नहीं पर जहाँ श्रद्धा,आस्था और भक्ति हो वहाँ कुछ मुश्किल नहीं होता। चारों तरफ भक्ति का वातावरण, हर कोई धार्मिक कर्मकांड करते हुए नजर आना, अपने परिचितों का अंतिम संस्कार, मुंडन, इत्यादि कितना कुछ देखने और सिखने को मिला। शायद किसी अच्छे कर्म के कारण ही इन सब का साक्षी होने का मौका मुझे मिला। सारे धार्मिक कर्म करने के पश्चात कुछ देर शांति से गंगाजी के पास बैठना परम् सुख की अनुभूति करवाता है।



      इसके बाद मैंने मेले की ओर रुख किया। मेले की रौनक देखते ही बनती थी। तरह तरह की धार्मिक और घरेलू वस्तुएं , पहनने-ओढ़ने  की चीजें, खाद्यपदार्थों के स्टाल कितना कुछ था। हालांकि मुझे मेले में अत्यधिक रुचि नहीं सो मैं वहाँ से निकल गया। अरे हाँ, मैं तो 'नमामि गंगे' और 'रामायण जी' के ऐतिहासिक प्रदर्शनी के बारे में बताना ही भूल गया। यहाँ पर आयोजित प्रदर्शनी जिसमें 'नमामि गंगे प्रोजेक्ट' और 'रामायण जी' को बहुत ही सुंदर और वैज्ञानिक तरीके से प्रस्तुत किया गया था इस प्रकार की प्रदर्शनी का आयोजन करना युवा वर्ग को भारत से रूबरू करवाने के लिए आवश्यक है।



       संगम से ब्रिज को देखते ही कुछ पंक्तियां याद आने लगती है:

एक जंगल है तेरी आँखों में

मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ।

तू किसी रेल-सी गुजरती है

मैं किसी पूल-सा थरथराता हूँ।


और हाँ सुना है कि संगम दो बार आना चाहिए। तो देखते हैं दुबारा कब बुलावा आता है।

      संगम में इतना कुछ है कि जिसको लिखना मेरे बस का नहीं। इसीलिए कहूंगा कि संगम को अनुभव करना होगा और जीना होगा।


      अंत में उन मित्रों का सहृदय धन्यवाद जिन्होंने अपने पास ठहरने की उचित व्यवस्था प्रदान की और स्वनिर्मित स्वादिष्ट भोजन से आतिथ्य किया। उनके आतिथ्य का सदा ऋणी रहूंगा।

(नोट:- सभी से एक आग्रह है। यदि आपको धर्म में आस्था न हो तो भी एक बार इस प्रकार की जगह पर जरूर जाएं। इस तरह की जगहों का संबंध केवल धर्म से जोड़ना उचित नहीं। इन जगहों पर जीवन जीने की कला का दर्शन होता है। जिससे आप अपने जीवन को एक नई दिशा दे पाएंगे।)


1 comment:

  1. लेख के विषय वस्तु में कोई त्रुटि, अपना अनुभव या सुझाव अपनी पहचान के साथ अवश्य प्रस्तुत करें।

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