खुशियों के मौसम हुआ करते थे,
न जाने कहाँ से ये बदली छा गई।
अभी घर से कुछ दूर चला ही था,
राह में फिर एक नई मुसिबत आ गई।
जिंदगी आसां होती जो हम नादां होते,
हमको ये हमारी समझदारी खा गई।
सफलता हमारे भी कदमों में होती ,
जाना तुमको हमारी नाकामी भा गई।
मोहोब्बत हमारे भी दिलों में होता 'संदीप'
मगर हमसे तो हमारी आवारगी ना गई।
:- संदीप प्रजापति
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