इजहार...
क्या एक तुम ही हो
बला की खूबसूरत,
या कोई और सूरत
मैं इन आँखों में नहीं भरता।
बेबाक मैं कह न सका
प्रेम भाव तुमने जाना नहीं,
ठुकरा दो या स्वीकार करलो
इन बेरुखियों से जीवन नहीं चलता।
यूँ हँसने मुस्कुराने बातें भर
कर लेने से जी नहीं भरता,
दिल तुम्ही को चाहता है
किसी और पर क्यों नहीं मरता।
चाहो न चाहो आजादी है
यूँ तिरछी चाल चलो नहीं,
प्रेम करो सो जीवन दो
यूँ प्रेम में किसी को छलो नहीं।
प्रेम तुम्हे मानता हूँ
सो अब इंतजार कर रहा हूँ,
न चाँदनी रात है न कभी गुलाब दिया
बस कविताओं से इजहार कर रहा हूँ।
:- संदीप प्रजापति
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