Sunday 3 July 2022

याद आता है...


                      याद आता है...

तन्हाइयों को कहाँ दफनाया जाए,
उसके न होने पर उसका होना याद आता है।

गम न होते तो चेहरे हमारे भी मुस्कुराते,
इन रुसवाइयों में तो बस रोना याद आता है।

रात थी खाब थे नींद थी बस सो न सके,
सहर हुआ तो वो तकिया बिछौना याद आता है।

बस आज ही की तो बात है कल तलक भुला देंगें,
सारी जिंदगी कहाँ किसी को खोना याद आता है।

कलम का रोना कागज भिगोना याद आता है,
'संदीप' उसके जिस्म का हर कोना याद आता है।

:- संदीप प्रजापति

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