Sunday 29 May 2022

बनारस : एक अद्भुत स्थान

                         बनारस : एक अद्भुत स्थान

           क्या आप कभी बनारस गए हैं? चलिए आज मैं आपको बनारस लिए चलता हूँ। हो सकता है आपमें से कई लोग गए भी हों। तो मैं आज आपकी उस बनारस स्मृति को इस लेख के माध्यम से पुनःजीवित कर देना चाहूँगा।

     बनारस, उत्तरप्रदेश की पावन धरती पर बसा संसार का प्राचीनतम और आध्यात्मिक शहर है। जिसका हिंदू धर्म में विशेष महत्व है और इसका उल्लेख हिन्दू धर्म ग्रन्थों में भी मिलता है। मान्यता है कि बनारस में देह छोड़ने वाले व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्राचीन काल से ही देश विदेश से लोग अपने पूर्वजों का अंतिम संस्कार करने बनारस आते हैं।

            दशाश्वमेध की गंगा आरती, घाटों का लंबा सिलसिला, साधु-संतों का जमघट, मणिकर्णिका की जलती चिताओं की लौ, बाबा काशी विश्वनाथ के जयकारे, सारनाथ की शांति, बनारसी ठाठ, बनारसी भौकाल, बनारसी साड़ी, बनारसी पान, बनारस की सँकरी गलियाँ, ठंडाई, और ऐसे ही न जाने कितने ही मनमोहक दृश्य और भावनाओं का सम्मेलन है ये बनारस। 

            पिछले कुछ वर्षों से राजनैतिक महत्ता बढ़ने से बनारस की चकाचौंध में तो और चार चांद लग गए हैं। जिसने बनारस को प्रगति की ओर अग्रसर करके इस शहर का कायाकल्प कर दिया है। आए दिन राजनेताओं और राजनीतिक पार्टियों का खूंटा बनारस की माटी में गड़ा रहता है। जिससे इसे वैश्विक पटल पर और अत्यधिक मान्यता एवं पहचान मिल रही है।

               आइये हम अपनी यात्रा शुरू करते हैं, बनारस आने के लिए सम्पूर्ण भारत से ट्रेन और हवाई जहाज की सुव्यवस्था है। आप अपनी सुविधा के अनुसार किसी भी तरह यहाँ आ सकते हैं। बनारस आने पर आपको दिन के समय में तो सारनाथ और इत्यादि जगहों पर ही घूम लेना चाहिए। जिससे आप शाम के समय में गंगा जी के घाट पर जा सके और माँ गंगा के दर्शन और स्नान करके खुद को पापमुक्त कर सकें।

                 बाबा काशी विश्वनाथ जी के दर्शन करना अपने आप में ही एक उपलब्धि है। सोने से जड़े बाबा के मंदिर का मनोहर दृश्य देखना हृदय को ही स्वर्णमयी कर देता है। गंगा कॉरिडोर से गंगा जी के दर्शन भी सुलभ हो जाते हैं। रात की जगमग चकाचौंध रोशनी में मंदिर और गंगा जी का दृश्य बहुत ही सुहावना होता है। बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर से लगा हुआ ही ज्ञानवापी मस्जिद भी यहीं पर स्थापित है। जिसे सुरक्षा कारणों से बंद रखा गया था। 

             गंगा जी के किनारों पर बसे प्रत्येक घाटों का अपना एक विशेष महत्त्व है। इन सब घाटों में मणिकर्णिका घाट सबसे महत्वपूर्ण है। जिसमें मृत चिताएं जलाई जाती हैं। माना जाता है कि मणिकर्णिका घाट पर कभी भी चिताओं की अग्नि शांत नहीं होती। यहाँ हमेशा कोई न कोई चिता जलती ही रहती है। इस घाट के पास ही एक प्राचीन मंदिर है जो कि कई वर्षों से झुकी हुई है। फिर भी वह मंदिर उसी अवस्था में बिल्कुल ठीक-ठाक है।
       

    घाटों के इस क्रम में दशाश्वमेध घाट भी प्रमुख है क्योंकि यहीं पर माँ गंगाजी की भव्य आरती होती है। जिसका साक्षी होने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं। गंगा  आरती होने के पश्चात लोग गंगा स्नान करते हैं और गंगा जी का धन्यवाद प्रकट करते हैं। अस्सी घाट और हरिश्चंद्र घाट भी प्रमुख घाट है। राजा हरिश्चंद्र जी के नाम पर ही इस घाट का नाम पड़ा था। आधी रात के वक्त घाट पर बैठ कर केवल अपने भीतर झाँकना और खुद को ईश्वर के समीप पाना ही असली आनंद है। गंगा जी में लहराती छोटी-छोटी नौकाएं मानो किसी इठलाती युवती सी हों जो आपका ध्यान अपनी ओर खींच ही लें।

          बनारस की इसी मनोरमता पर ही तो कई कवियों और लेखकों ने इस पर अपनी कल्पनाओं और अनुभवों से कई काव्य लिख डाले हैं। इसी बनारस के घाट पर बाबा तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस महाकाव्य की रचना की थी। बनारस की आभा में ऐसा जादू है कि यहाँ पर किसी की चेतना का जागृत होना कोई अचरज नहीं। हमारे देश के कई महान विभूतियों का बनारस से अत्यधिक लगाव रहा है।

     हिंदी फिल्म जगत में बनारस पर कई फिल्में चित्रित की गई हैं। कई गीतों के बोल इसी पर आधारित है। संगीत और नृत्य के क्षेत्र में भी बनारसी घराने का विशेष महत्त्व रहा है। इसी बनारस की माटी ने कई दिग्गज कलाकार भी उपजें हैं। गालिब ने बनारस को दुनिया के दिल का नुक़्ता कहना दुरुस्त पाया था। जिसकी हवा मुर्दों के बदन में भी रूह फूँक देती है और जिसकी ख़ाक के जर्रे मुसाफिरों के तलवे से काँटें खींच निकालते हैं। बनारस को एक जगह भर नहीं एक संस्कृति कहा जाता है, जो हमेशा से कला, साहित्य, धर्म और दर्शन के अध्येताओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।

अंत में कुछ पंक्तियाँ:-

सुनो हमसफ़र
चाहे रहो जहाँ,
पर जब भी मुलाकात हो
बस गंगा जी का घाट हो।
होंठ मेरे हो
तुम्हारे ललाट हो,
अनकही एक बात हो
और गंगा जी का घाट हो।
                                      :- संदीप प्रजापति

( बनारस के विषय में लिखना कभी समाप्त होने योग्य नहीं है। लेख को बस इतनी ही भावनाओं में समेटते हुए यहीं रुक जाना ठीक है। लेख के किसी विषय वस्तु में कोई त्रुटि हो तो अवश्य सूचित करें अरबअपने विचार प्रकट करें। आशा करता हूँ कि आपको इस लेख के माध्यम से ही बनारस के जीवंत स्वरूप का दर्शन हुआ है।)

8 comments:

  1. Bahut achha se Banaras ki khubsurti ko pradarshit kiya hai bhai aapne apne sabdo me 👌👌

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  2. Amit Arjun Gautam29 May 2022 at 10:19

    आपने जो सुरुआत में भूमिका बंधी है, उसे पढ़ कर मजा आया और मन किया अब बस जीवन में एक बार तो बनारस जाना ही है।
    बहुत ही सुंदर लेख है....❤❤

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    1. धन्यवाद मेरे भाई🙏 एक बार तो जरूर जाना बहुत सुकून मिलता है🤗

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  3. Har har mahadev

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  4. 🙏👌👌👌

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