परिवार से अलग एक पुरुष
अकेले रहना कष्टदायी तो होता है, खास कर उन पुरुषों के लिए जो किसी कारणवश अपने परिवार से अलग हैं। पर यही अकेलापन इन पुरुषों को आगामी जीवन के लिए तैयार करता है। जो इन्हें एक आदर्श पुरुष बनाता है। मेरे ख्याल में अकेले रहने में कोई हीन भावना नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह अकेलेपन का दौर ही मनुष्य को उसके जीवन के सारे बहुमूल्य सबक सिखाता है और परिपक्व, आत्मनिर्भर, स्वावलम्बी एवं कर्मठ बनाता है। इस प्रकार के पुरूष कच्ची उम्र से ही जीवन के गूढ़ रहस्य को समझने लगते हैं और वास्तविकता में जीते हैं न कि ढोंग और चमक दमक में।
खुद ही खुद से प्रेम करना, सारी दुख तकलीफों में खुद को खुद से सम्भाल लेना, कभी जी भर रो लेना तो कभी बेवजह मुस्कुरा देना। एक आदर्श जीवन के ऐसे कई गुण इन पुरुषों में स्वाभाविक तौर से विकसित हो जाते हैं। पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, मानसिक और न जाने कई परेशानियों को झेलते हुए भी ये लोग जीवन को सुचारू ढंग से चलाते हैं और जीवन की जीवटता को मिटने नहीं देते। इस प्रकार का अकेलापन एक पुरुष हो उसके वास्तविक में पुरुष होने का बोध कराता है और उसे उसके दायित्वों का निर्वहन करने की क्षमता प्रदान करता है।
"और हाँ एक अंतिम परन्तु मुख्य बात की ऐसे पुरुषों को पेट की भूख के लिए कभी किसी स्त्री पर निर्भर नहीं होना पड़ता।"
(अपने परिवार से अलग, माँ-बहन, प्रेमिका-पत्नी से दूर रह रहे सभी मित्र भाइयों को समर्पित एक छोटा सा लेख। आशा करता हूँ कि भावनाएं आपके दिल तक जरूर पहुचेंगी।)
Bahut khub sundar hai likha hai
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