Friday 3 December 2021

मित्र : एक सीख

मित्र : एक सीख

                  "हर सुखी नवविवाहित जोड़े में एक ऐसा तीसरा व्यक्ति भी होता है, जो बेवजह नियती के हाथों का मोहरा बनता है और उसके मृदु हृदय में प्रेम के बदले केवल रह जाती हैं स्मृतियाँ।"
                          जी हाँ आज मैं आपको एक ऐसी ही कहानी बताने जा रहा हूँ जिसमें एक ओर केवल मासूमियत और प्रेम था तो दूसरी ओर केवल छल और उपयोगिता।
                  तो चलिए शुरू करते हैं, तकरीबन पाँच-सात साल पहले की बात है। जब मैं, मेरा घनिष्ठ मित्र और उसकी तथाकथित प्रेमिका हमसब कक्षा नौं या दस में पढ़ते थे। उस वक्त हमारी उम्र लगभग कोई १४-१५ बरस की रही होगी, कोरा बचपन जिसमें केवल उल्हास और उमंग था। मेरा मित्र जो कि कक्षा का सबसे होनहार, शालीन और सर्वश्रेष्ठ दर्जे का विद्यार्थी था। सारे शिक्षक और हमसब सहपाठी उससे काफी प्रभावित थे। एक अच्छा विद्यालयीन माहौल था हम सब में। खेलकूद और पढ़ाई-लिखाई ही जीवन था। इससे अधिक तो हम जानते ही न थे। हालाँकि शायद उसी दौरान हमारी कक्षा में एक नई लड़की का भी प्रेवश हुआ था। उसके परिचय के बारे में कहूँ तो गजब की कद काठी और अलौकिक सुंदरता की धनी थी वो लड़की। वक्त बीतता गया और वह भी हम सब के साथ खूब घूलमिल गई। पर न जाने कहाँ से उस छोटी सी उम्र में ही मेरे मित्र के मन में प्रेम का वास हो गया। उसे वह लड़की खूब भाने लगी। भीतर ही भीतर वह उससे अथाह प्रेम करने लगा। और एक रोज उसने  अपने प्रेम का इजहार उस लड़की के सामने कर ही दिया। परंतु शायद कोई संतोषजनक प्रतिक्रिया न मिली और ये एक तरफा प्रेम ही चलता रहा।सच कहूँ तो उसका एक तरफा प्रेम कभी दो तरफा हो ही न पाया। बस मित्रता की आड़ में केवल उपयोगिता ही निभाई गई।
                         पर वह इस एक तरफा प्रेम में ही खुश था क्योंकि इसी बहाने वह उसकी मित्र तो थी। इसी निश्छल और मासूम प्रेम के वसीभूत होकर वह उस लड़की के लिए कुछ भी कर बैठता था। कभी कक्षा के उपद्रवी बच्चों से उसकी खातिर लड़ जाता तो कभी उसकी उत्तर पुस्तिकाएँ खुद ही जाँच लेता था। कभी परीक्षा केंद्र में उसकी परीक्षाएँ भी खुद ही लिख देता ताकि वह उत्तीर्ण हो सके। इन सबके लिए हम सारे दोस्त उसका खूब उपहास करते उसकी हँसी उड़ाते। कभी-कभी उसे सलाह भी देतें की यह सब मत कर वह लड़की केवल तेरा इस्तेमाल कर रही है। पर हम सब तो ठहरे मूर्ख हमारे भीतर तो कभी प्रेम का वास ही न हुआ तो हम ये कैसे जानते कि प्रेम में व्यक्ति खुद के बारे में नहीं सोच सकता। मेरा वह मित्र हमारे सारे अपमानों को सह जाता और प्रेम पथ पर अड़िग रहता। धीरे-धीरे हमारी दसवीं की परीक्षाएँ नजदीक आ गयीं। मेरा होनहार मित्र अपनी पढ़ाई को दरकिनार कर दिन-दिन भर सिर्फ उस लड़की को पढ़ाता रहता ताकि वो अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो सके। अंततः परीक्षाएँ हुई और परिणाम भी आ गए। वह लड़की तो  अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो गई। परंतु मेरा मित्र अपने और हमारे विद्यालय के उम्मीदों पर खरा न उतर सका। उसके अंक कम हो गए और वह पहले जिस तरह कक्षा में प्रथम आता था इस बार प्रथम न आ सका। अध्यापक और हम सब मित्र तो उससे नाराज थे। परंतु वह अपने से खूब खुश था क्योंकि वह जानता था कि उसकी मेहनत सफल हुई है। उसकी प्रेमिका अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुई है।
                    विद्यालयीन दौर खत्म हुआ हम सब ने महाविद्यालयों में प्रवेश किया। मेरे और उस लड़की के विषय एक ही होने के कारण हमारी कक्षाएँ भी फिर एक बार एक ही थीं। परंतु मेरे मित्र की शाखा अलग होने के कारण वह हमसे अलग था। मतलब मेरे मित्र के लिए इस समय केवल मैं ही उसके और उसके तथाकथित प्रेमिका के बीच जरिया था। उसने पुनः चाहा कि वह किसी तरह उससे प्रेम पा सके। हालाँकि  अभी तक उस लड़की ने न ही प्रेम प्रस्ताव की स्वीकृति ही कि थी और न ही नकारा था। केवल मित्रता के नाम पर स्वार्थसिद्धि करवाती रही। इन सभी ऊहापोह में मेरे मित्र की शैक्षणिक योग्यता खराब होती गई। वह निरंतर हर कक्षाओं में अनुत्तीर्ण होता रहा। किसी कारणवश एक रोज उन दोनों में किसी बात को लेकर अनबन हो गई जो बढ़ती ही जा रही थी। अतः सुलह और समझौते के तौर पर मुझे भी इस बीच में जाना पड़ा। उसी दौरान उस लड़की ने बड़ी ही अभद्रता और अपमानजनक शब्दों में कहा कि उसे मेरे उस मित्र से किसी भी प्रकार का कोई रिश्ता नहीं रखना। न मित्रता न ही कुछ और। और यह सब सुन हम दोनों मैं और मेरा मित्र हक्के-बक्के रह गए। हालाँकि उसके बाद मेरे मित्र की शैक्षणिक योग्यता और अधिक खराब होती गई। उसने पढ़ाई ही छोड़ देने का निश्चय ले लिया। परंतु एक बात थी उसने कभी गलत रास्ता नहीं चुना, खुदको अवसाद का शिकार नहीं होने दिया। कुछ समय बाद उसने स्वास्थ्य और व्यायाम के क्षेत्र की ओर रुख किया। अपने अंदर कौशल विकसित किया। साल दर साल खूब मेहनत की और आज वह एक अच्छे प्रशिक्षित स्वास्थ्य सलाहकार के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहा है। और हम सब मित्रों के लिए एक बेहतरीन उदाहरण के तौर पर है।
              यह कहानी बताने का मेरा सिर्फ यह उद्देश्य था कि कभी-कभी हम हमारे आसपास की जिन चीजों और घटनाओँ को मामूली समझते हैं। उनका हमारे जीवन पर बेहद महत्वपूर्ण असर होता है। ये सारी घटनाएँ हमें बहुत कुछ अमूल्य बातें सीखा जाती हैं। जैसे कि मैंने अपने इस मित्र से बहुत कुछ सीखा।

१) जब आप विद्यार्थी हो तो आप केवल विद्यार्थी हो। अपना सर्वश्रेष्ठ शिक्षा को ही दो।
२) जब आप प्रेमी हो तो आप केवल प्रेमी हो। अपना सारा प्रेम निःस्वार्थ भाव से लूटा दो।
३) अंतिम एवं सबसे मुख्य जब भी जीवन में किसी भी क्षेत्र में असफलता हाथ लगे तो उससे अपने आप को बरबाद न कर बैठें बल्कि एक सकारात्मक ऊर्जा और उत्साह के साथ जीवन को एक नई दिशा दें। एक नई शुरुआत करें।

                  और हाँ, इस पूरे चार-पाँच साल की प्रेमकहानी में मुझे व्यक्तिगत तौर पर जो बात सबसे ज्यादा भाती है, वो यह है कि मेरा वह मित्र इतना ज्यादा नैतिकतावादी था कि कभी उसने उस लड़की को न ही बुरी नजर से देखा और न ही कभी छुआ। जबकि उसके पास कई बार ऐसे मौके आए थे कि वह उसके साथ सारी इच्छाओं की पूर्ति कर सके। और हाँ कई बार तो कई मित्रों ने उसे सलाह तक दे दिया था कि तू भी उसका इस्तेमाल कर ले। पर वो तो ठहरा प्रेमी। उसने अपनी प्रेमिका का सम्मान और अपने प्रेम की गरिमा बनाए रखी।
                     कभी-कभी सोचता हूँ कि क्या उस मित्र की जगह मैं होता तो क्या मैं भी ऐसा कर पाता। शायद नहीं...और यही चीज हमेशा कचोटती है कि उस छोटी सी उम्र में ही जीवन का एक अटल सत्य और अनमोल गुण मेरे मित्र ने मुझसे पहले ही सिख लिया था। हालाँकि हम सारे दोस्त अभी संघर्षों के दौर में ही हैं। पर वह लड़की हाल के ही कुछ समय में एक सुव्यवस्थित युवक से विवाह कर सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रही है।




(लेख काफी बड़ा हो जाने के कारण बहुत कुछ बातें,यादें और किस्से अलिखित ही रह गए हैं, परंतु मैं जानता हूँ कि आप सब एक प्रेमी की भावनाओं का बखूबी समझेंगे। आशा करता हूँ कि कहानी अच्छी लगी होगी और हम सब में एक सकारात्मक ऊर्जा प्रेरित करेगी। गोपनीयता और निजता के कारण किसी का व्यक्तिगत परिचय नहीं दिया गया है।)

            

3 comments:

  1. आज भी वो दौर याद आता है जब उस लड़की की एक झलक देखने को वह हम सब मित्रों को रात भर उस लड़की के गली मोहल्ले में घुमाया करता तो कभी उसकी पहरेदारी करवाता और रातों रात जगाया करता था।♥️

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  2. कबीर के दोहे(काल)

    प्रेम पियाला सो पिये शीश दक्षिना देय
    लोभी शीश ना दे सके, नाम प्रेम का लेय।

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