Sunday 26 December 2021

परिवार में बलात्कार

                   

परिवार में बलात्कार

            उस वक्त आप कैसा महसूस करते जब कोई आपका अपना परिचित ही आपके साथ यौन उत्पीड़न और बलात्कार जैसे कुकृत्य करता। जी हाँ आपने बिल्कुल सही पढ़ा। आज मैं आपको एक ऐसी ही घटना का वृत्तांत बताने जा रहा हूँ जो किसी के लिए भी जीवन को झंकझोर देनेवाला और अविस्मरणीय हो सकता है।
            हमारे भारतीय समाज में जहाँ पिता के भाई यानी चाचा को भी पिता का ही स्वरूप माना जाता है। उसी समाज में कुछ ऐसे विकृत मानसिकता वाले लोग भी रहते हैं जो इस रिश्ते को भी शर्मसार करते नहीं चूकते। अपनी राक्षसी प्रवृत्ति, पशुता, चरित्रहीनता और अपने वैसिहत के कारण वे लोग भाभी-देवर और चाचा-भतीजा/भतीजी जैसे रिश्तों के मर्यादा को भी लाँघ जाते हैं। अपनी हवस और वासना में लिप्त होकर न जाने कई जिंदगियों को शारीरिक और मानसिक रूप से क्षतिग्रस्त और शर्मसार करते हैं।
        इस कहानी की शुरुआत होती है उत्तरप्रदेश के एक छोटे से गाँव से। जहाँ अनुसूचित जनजातियों के टोले का एक बेहद गरीब परिवार रहता था। परिवार का मुखिया, उसकी पत्नी और पाँच जीवित संतान। जिनमें से दो पुत्र और तीन पुत्रियाँ। जीवित इसलिए कहा गया क्योंकि इनसे पहले कई संतानें काल के गाल में समा चुकी थीं। आजीविका का कोई प्रमुख स्रोत न होने के कारण परिवार का पालन-पोषण मुश्किल से होता था। बस किसी तरह से गुजर-बसर हो जाता। मेहनत-मजूरी करने के कारण बस जीवित भर थे। इसी तरह समय बीतता गया और परिवार का बड़ा बेटा आर्थिक परिस्थिति को भांपते हुए शहर की ओर रुख करने लगा। शिक्षित न होने के कारण शहर में कोई भी काम कर लेता। जिससे दो पैसे मिल जाते थे। खा-पहन कर जो पैसे बचते उसे वह गांव में माँ-पिताजी को भेज देता।
       यह देखकर परिवार बहुत खुश होता था। माँ-पिता को लगता कि जीवन अब सुधर सकता है। पर नियति को तो कुछ और ही मंजूर था। एक ओर बड़ा बेटा दिन-रात मेहनत करता दो पैसे कमाता और बचाता था तो दूसरी ओर छोटा बेटा आवारापन, नाकारा, कुलीनता और न जाने कितने-कितने दुर्गुणों में व्यस्त रहता। आए दिन कोई न कोई ओराहना लगा रहता। परिवार का संबल होना तो दूर वह तो बस नाक कटाता रहता था। बड़े बेटे की मेहतत और लगन देखकर कुछ समय बाद पिता ने उसका ब्याह रचा दिया। अब परिवार में एक और सदस्य बढ़ चुका था यानी जिम्मेदारी और अधिक हो चुकी थी। जिसके कारण उसे अपनी धर्मपत्नी को वहीं गांव में ही छोड़ शहर जाकर काम करना पड़ता। इन सब में उसका छोटा भाई बड़े भाई के न होने से घर में आयी नई बहू यानी अपनी भाभी से हंसी-ठिठोली के बहाने ही दुर्व्यवहार करता, आए दिन कहा-सुनी कर लेता तो कभी हाथ छोड़ देता। इन सबसे अधिक तो कभी स्त्री की गरिमा और मर्यादा के परे जाकर उसे अनचाहा स्पर्श कर देता। इससे तंग आकर  वह अपने पति के साथ शहर आकर रहने लगी। कुछ पल जीवन सुखमय बिता। उसे भी संतान प्राप्ति हुई। अब तक उसकी भी कुल तीन संतानें हो चुकी थीं।  और वहाँ छोटे बेटे की करतूतों से परेशान पिता ने अपने बड़े बेटे से विनती करकर कहा कि इसे भी अपने साथ रख लो। कोई काम-धंधा सिखाकर आदमी बना दो। पिता की आज्ञा को बड़ा बेटा नकार न सका। परंतु इस खबर से उसकी पत्नी जरूर अनमना गई और क्रोधित हुई।
       अब वह आवारा छोटा बेटा भी शहर में बड़े भाई के पास आ चुका था। उसकी करतूत अपनी आँखों से बड़ा भाई दररोज देखता। हालाँकि अब उसकी भाभी न तो उससे कोई मतलब ही रखती थी न ही बोलती-चालती थी। मानो की अब उनमें कोई संबंध ही न हो। शहर आकर बहुत समय हो चुका था पर अब भी वो न सुधरा था। कोई एक काम करने में न दिल लगाता और न मेहनत ही करता। हर रोज आवारागर्दी , कभी किसी से लड़ाई-झगड़ा तो कभी किसी से। अब तो उसके चलते बड़े भाई को थाना, चौकी और दरोगाओं के भी दर्शन हो चुके थे। उसके कुकृत्य इतने बढ़ चुके थे कि आस-पड़ोस की लड़कियों/महिलाओं को भी फांस लेता और अपने मंसूबे पूरे कर लेता। उसे यह सब कुछ बहुत सहज लगने लगा था। उसके इस घिनौने कारनामों की हद तो तब हो गई जब वह अपनी इन्द्रिय तृप्ति के लिए अपने ही घर में अपने बड़े भाई के बच्चों जो कि अभी महज १०-१२ बरस के ही थे। उनके साथ भी बड़ी सहजता से दुष्कर्म करने लगा। वह उन्हें जबरदस्ती नीली-पीली सीडियों के चलचित्र दिखाता और वही कृत्य उनसे भी  हिंसात्मक होकर करवाता। न करने पर गला घोंटता तो कभी बुरी तरह पिटता। इसी तरह मार-पीट और डरा धमका कर उनका मुँह बंद रखवाता था। डर और नासमझी के कारण बच्चे भी कुछ न कह पाते और यह जघन्य अपराध और कुकर्म चुपचाप सहते रहते।और उसकी वासना का शिकार होते रहते। कुछ वर्षों बाद उस मनुष्यरूपी पशु की भी शादी हो जाती है और उसकी पत्नी भी उसके इस आचरण, दुर्व्यवहार और मानसिकता से परेशान होकर अपने ही भाग्य को कोसती रहती।

अब आपसे कुछ सवाल:

१. क्या ऐसे जघन्य अपराध करने वाले लोगों को जीने का अधिकार मिलना चाहिए?
२. क्या इन लोगों के कारण ही आज समाज से रिश्तों-नातों से भरोसा उठ रहा है?
३. इस तरह की घटनाओं से बचने और आगे समाज में ऐसी घटनाएं न हो इसके लिए आपकी क्या राय है?
४. उन बच्चों को ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए था या उनकी जगह आप होते तो क्या करते।
५. क्या इस मामले में देश में कठोरतम कानून की आवश्यकता है?
६. इस तरह के पारिवारिक कुकर्म की घटनाओं को कैसे रोका जा सकता है, अपने विचार बताएं।

अपने विचार जरूर साँझा करें। शायद किसी की जिंदगी नरक होने से बच जाए।

(यह लेख किसी की व्यक्तिगत भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए बिल्कुल नही है। यह सिर्फ कुछ विकृत मानसिकता के लोगों को केंद्रित करते हुए है न कि भारतीय रिश्ते-नातों और सम्बन्धों को शर्मसार करने या नीचा दिखाने के लिए। किसी को लेख के प्रति कोई आपत्ति हो तो जरूर साझा करें।)

No comments:

Post a Comment

पुरुष

                            पुरुष                 पुरुषों के साथ समाज ने एक विडंबना यह भी कर दी की उन्हें सदा स्त्री पर आश्रित कर दिया गया। ...