Monday 10 January 2022

ईश्वरीय आकर्षण और विकर्षण के सिद्धांत

जीवन में जाना कहां है, यह आपको ही तय करना है।

          अस्तित्व में आकर्षण और विकर्षण का भाव सन्निहित है। इसे विज्ञान की भाषा में गुरुत्वाकर्षण कहा गया है। यह आकर्षण केवल धरतो ग्रह और मनुष्य में हो नहीं होता। यह हमारी प्रकृति और अस्तित्व का भी केंद्रीय भाव है। ईश्वरीय चेतना में यह दोहरा भाव होता है। गुरुत्वाकर्षण एक ओर का चिाव नहीं है, बल्कि दो वस्तुओं के बीच का खिंचाव है। गुरुत्वाकर्षण के नियम को ठीक से समझ लेते हैं तभी ईश्वरीय खिंचाव या आकर्षण को सही तरीके से समझ सकते हैं।

             चांद और पृथ्वी के संदर्भ में पृथ्वी की शक्ति ज्यादा है तो वह वस्तुओं को अपनी और ज्यादा तेजी से खींच पाती है। हर दो वस्तुओं में आकर्षण और उसमें एक दूसरे को अपनी ओर खींचने या आकर्षित करने की इच्छा सन्निहित होती है। जीवन में प्रत्येक चीज इंद्र के बिना घटती नहीं है। जैसे कि पेड़ से फल नीचे गिरता है, उसी प्रकार पेड़ पर फल और फूल भी आते हैं। न्यूटन के समकालीन चिंतक रस्किन ने इस पर सवाल उठाया कि आखिर यह किस कारण से आते हैं। ये ऊपर कैसे पहुंच जाते है? इतना ही नहीं बांस और ताड़ जैसे पांच सौ फोट लंबे पेड़ों पर ऊपर पत्तियों में जल कैसे पहुंचता है?

             ईश्वर अपने अनुग्रह से अनुगृहित करने के लिए नदी बनते हैं, ताकि उसके समीप आनेवालों को जल रूपी अमृत का पान करा सकें। कभी वह पर्वत बन जाते हैं ताकि प्रेम के शिखर का दर्शन करा सकें, प्रेम की विशालता के लिए सागर बन जाते हैं। फिर उस ईश्वर का दैवीय प्रेम अनंत आत्माओं के हृदय में क्रियाशील होकर धड़कता रहता है। ईश्वर का प्रसाद फूलों में सुगंध, पक्षियों में कलरव, दूसरों के हृदय में प्रेम को बढ़ाता है तो उसका अनुग्रह प्रकट होता है। सुबह से रात में सोने तक ईश्वर का प्रसाद मिलता है लेकिन यह सूक्ष्म और रहस्यमय होता वह प्रतिदिन भोजन से मोस, रक्त, मज्जा, हड्डी और मस्तिष्क का निर्माण करता है, हमारा विकास करता है। लेकिन हम समझते हैं कि भोजन के कारण ही हम जीवित है।

             सृष्टि में आकर्षण का नियम अंतनिहित है। जब दो वस्तुएं हिलने के लिए स्वतंत्र हो और ये एक दूसरे की ओर खिंचे तो गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव दिखाई देता है। भौतिक विज्ञान को परिभाषा बताती है कि गुरुत्वाकर्षण यह शक्ति है जो दो भौतिक पिंडों के बीच होती है और जिसके कारण प्रत्येक पिंड दूसरे पिंड को एक-दूसरे की ओर खींचते हैं। यह नियम सार्वभौमिक है। पृथ्वी सूर्य तथा आकाश सहित सभी वस्तुओं में समान रूप से यह बल होता है। इस कारण आकाश के सूर्य, चंद्र, तारे और अन्य खगोलीय पिंड एक-दूसरे के इर्द-गिर्द चक्कर काटते रहते हैं और अपनी और दूसरे पिंडों को भी खींचते हैं। बाद में वैज्ञानिकों ने खोज कर निकाला कि नीचे खींचने की शक्ति प्रैविटेशनल फोर्स है जबकि ऊपर खींचने की शक्ति लैविटेशनल फोर्स है। अध्यात्म में संतों ने इस शक्ति को प्रसाद कहा।

          ठीक इसी प्रकार ईश्वर अपनी अनंत चेतना के प्रसाद के माध्यम से अपनी ओर खींचते हैं, तो दूसरी ओर माया यानी हमारी अज्ञानता दूसरी ओर खींचती है। मुहता कारण हम ईश्वरीय आकर्षण के विभिन्न केंद्रों की उपेक्षा करते हैं और अपने को नीचा गिराते हैं। हम अपनी इच्छाओं और ऐट्रिक सुख के करण जन्म-मरण के अनंत चक्र में फंसे रह जाते हैं, ईश्वर से दूर होते जाते हैं।

:-मयंक मुरारी

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