आत्मग्लानि
आत्मग्लानि... जी हाँ आत्मग्लानि। आप में से काफी लोग सोच रहे होंगे कि ये क्या है? तो मैं आपको बता दूं कि यह पूरा लेख पढ़ने के बाद आप खुद ही इस आत्मग्लानि का अर्थ समझ जाएंगे या हो सकता है आपमें से कुछ को इसका अनुभव भी हो जाए।हालांकि इस लेख में कुछ आपत्तिजनक शब्द और भाषा का प्रयोग हुआ है। ऐसा इसलिए क्योंकि लेख का मुद्दा ही कुछ ऐसा है जिसकी सत्यता और परिपूर्णता के लिए इस प्रकार की लेखनी अपनानी पड़ी ताकि लेख को सचमुच में युवावर्ग के दर्पण के रूप में प्रस्तुत किया जा सके।
चलिए शुरुआत करते हैं... अक्सर छात्र १६-१७ की आयु में जब स्कूली शिक्षा समाप्त कर कॉलेजों में प्रवेश करते हैं। कॉलेजों की चकाचौंध और कुछ अनचाही आधुनिकता की दौड़ में फंस जाते है। उन्हें शिक्षा से अधिक महत्वपूर्ण कॉलेज के आधुनिक और भोगी जीवन में बना रहना ज्यादा पसंद आता है और ऐसा करने के लिए वे किसी भी हद तक चले जाते हैं। इन्हीं शौकों में से एक है बॉयफ्रैंड या गर्लफ्रैंड बनाना।जिसका वास्तविक मकसद केवल सेखी बघारना और मौज-मस्ती ही होता है। जिसमें प्रेम का कोई स्थान नहीं होता। हालांकि कुछ साल साथ बिताने और बढ़ती उम्र में हार्मोन्स के खेल से यही तथाकथित प्रेमी आगे चलकर केवल और केवल अपनी शारीरिक संतुष्टि के लिए छुप-छुपाकर सम्भोग भी कर लेते हैं। जो कि एक सभ्य समाज में निषेध है, हालांकि आज का युवा वर्ग इसे मानता तो नहीं है और कॉलेजों में बने सच्चे-झूठे प्रेमी से संभोग कर ही लेते हैं। कुछ जोड़े एक-दूसरे को बहला-फुसलाकर यह सब करते हैं तो कुछ पहले से ही एक प्रकार का करारनामा कर लेते हैं कि जब तक एक-दूसरे की शारिरिक जरूरत है तब तक हम साथ हैं वरना नहीं। कहने का तात्पर्य यह है कि इसी दौरान कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इसको जीवन का आदर्श प्रेम मानकर अपना तन-मन सौंपते हैं और अपने साथी को अपना जीवन सौंपने को तैयार हो जाते हैं। तो इनमें से ही कुछ ऐसे भी होते हैं जिनके लिए यह सब केवल एक खेल और मौज-मस्ती होती है उन्हें किसी आदर्श और निष्ठा से कोई मतलब नहीं होता।
अच्छा अब जब तक कॉलेज जीवन था तब तक तो यह सब ठीक लगता है इन्हें। परन्तु जैसे ही उम्र २२-२४ की होती है आगे एक लंबा जीवन, भविष्य और जिम्मेदारी दस्तक देती है। उसी वक्त ये तथाकथित प्रेमी जोड़े अपना असली रंग दिखाना शुरू करते हैं। जब बात इनके प्रेम को विवाह का रूप देने की आती है तब इनके घरवाले नहीं मानते तो कभी जात-पात आड़े आती है। कभी सफलता-विफलता तो कभी करियर। अब जो पिछले ५-६ सालों से कसमें खा रहे थे। दिन-रात साथ-साथ सो-उठ रहे थे। वो सब याद नहीं आता। अब इन्हें ये समझ क्यों नहीं आता कि उस समय भी तो हमारी जात एक नहीं थी जब हम साथ बिस्तर में थे। उस समय भी तो हमारे परिजन नहीं मानते हमारा रिश्ता। और अंततः केवल अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कॉलेजों में शुरू की गई प्रेम कहानी या शारिरिक रिश्ते का अंत होता है। अब उस व्यक्ति के लिए तो यह सब कुछ काफी सरल था जिसने शुरू से ही इसे एक खेल माना होगा। अब चाहे वो लड़की हो या कोई लड़का। पर यह सब उस व्यक्ति के लिए एक जबरदस्त आघात की तरह होता है जिसने इसे प्रेम मानकर अपना तन और मन सौंप दिया था और संबंध या कहें की संभोग के लिए सहमति दी थी। क्योंकी एक वक्त के बाद जब बात किसी और व्यक्ति के साथ उसके विवाह की होती है तो वह अपने आप से उलझ जाता है और यही वो दौर है जहां से शुरू होती है उसे आत्मग्लानि।
उसे हर पल लगने लगता है की उसने जीवन में कुछ तो गलत कर दिया है। उसके जीवन में कुछ तो ऐसा था जो उसने एक गलत व्यक्ति को सौंप दिया था या उसके साथ साँझा किया था और अब वही वो दुबारा एक नए व्यक्ति के साथ फिर से साँझा नहीं कर सकता क्योंकि अब उसे उसने खो दिया है। अब वो उतनी ही निर्भीकता से यह नहीं स्वीकार कर पाता की वो अभी भी पहले की तरह ही है। जी हाँ... यहां बात की जा रही है वर्जिनिटी या यूँ कहें की लॉयल्टी की। उसे महसूस होने लगता है की अब जिस व्यक्ति के साथ उसका विवाह होने जा रहा है। जिसके साथ उसे अब अपना सम्पूर्ण जीवन निर्वाह करना है। सारे सुख-दुख का भागी होना है। असल में सिर्फ उसी व्यक्ति का मेरे तन-मन पर अधिकार होना चाहिए था जो की मैनें तो पूर्व में ही किसी और को सौंप दिया था। बहरहाल कुछ लोगों के विषय में यह केवल अपवाद है क्योंकि उनके अंतर्मन में कभी भी आत्मग्लानि नहीं उत्त्पन्न हो सकती। ऐसा इसलिए की उनका एकमात्र उद्देध्य सम्भोग होता है। अब वो किस के साथ हो रहा है और किस उम्र या अवस्था में हो रहा है। उन्हें इन सब से कोई फर्क नही पड़ता। परन्तु एक सहृदय और प्रेमी व्यक्ति के लिए उसके जीवन में यह एक बहुत महत्तवपूर्ण बात होती है। एक सच्चे प्रेमी मनुष्य के पास अपने तन-मन (जो की सबसे पवित्रम वस्तु है) के अलावा और कुछ नहीं होता अपने जीवनसाथी को उपहार स्वरूप भेंट करने को और वो उसे भी खो चुका होता है, एक ऐसे प्रेमी के लिए जिसका प्रेम से कोई दरकार ही न हो।
हालांकि संभव है की ऐसा कुछ न भी होता हो। परन्तु संसार में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके साथ ऐसी घटनाएं होती हैं और उनमें आत्मग्लानि उत्त्पन्न होती है और ऐसा होनी भी चाहिए। क्योंकि पछतावा भी केवल उसी व्यक्ति को हो सकता है जिसके हृदय में ईश्वररूपी प्रेम का वास हो।
अंत में कुछ पंक्तियां:-
खाते हैं जुठन,
थाली में निवाला अपने हिस्से का जानकर।
कुछ शख्स जीते है ,
विवाह को ही सच्ची मोहोब्बत का पर्याय मानकर।
यूँ देह की चाह में
मोहोब्बतों को बदनाम न करो।
बंदिशों से खुलकर साथ दे न सको तो
यूँ बन्द कमरों में मोहोब्बतों को अंजाम न करो।
(नोट:- लेख के विषय में आपके क्या विचार है कमेंट्स में जरूर साँझा करें। किसी को लेख के विषय वस्तु या शब्दावली से कोई आपत्ति हो तो जरूर सूचित करें। यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इसका किसी व्यक्ति, वर्ग या समूह से कोई सरोकार नही है। सभी की अपनी निजी जिंदगी है जो जैसा चाहे वैसा जी सकता है।)
धन्यवाद!
:- संदीप प्रजापति
यह है आज-कल के modern प्रेमी जोड़े जो सम्भोग को प्रेम का रुप देते है।
ReplyDeleteबहुत आछा लेख है।🙏🙏
Sad reality 🥺🥺
ReplyDeleteOr jahi duniya ki sachai hai
ReplyDeleteLines����
ReplyDeleteThanks guys
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