Thursday 17 June 2021

प्राण बिन एक देह छोड़ गई हो...

प्राण बिन एक देह छोड़ गई हो...


वो मन्दिर के कायदे

वो जन्मों जन्मों के वायदे,

वो साथ होने की रसमें

वो सच्ची झूठी कसमें।

सब कुछ तो तोड़ गई हो,

प्राण बिन एक देह छोड़ गई हो।

वो रिमझिम सी बरसातें

वो अधजगी सी रातें,

वो कदमों की आहट

वो बाहों की चाहत।

सब कुछ तो तोड़ गई हो,

प्राण बिन एक देह छोड़ गई हो।

वो साँसों का तेज होना

वो बालों की छांव में सोना,

वो कानों की बाली का घूमना

वो होंठों की लाली का चूमना।

सब कुछ तो तोड़ गई हो,

प्राण बिन एक देह छोड़ गई हो।

वो नजर भर देख लेने की जिद

वो बगैर आस की एक उम्मीद,

वो पाने की फरमाइश

वो  छूने की ख्वाहिश।

सब कुछ तो तोड़ गई हो,

प्राण बिन एक देह छोड़ गई हो।

प्राण बिन एक देह छोड़ गई हो।।

                                                 :- संदीप प्रजापति






8 comments:

  1. दिल छुलिया आप की ये कविता "प्राण बिन एक देह छोड़ गई हो।" मुझे किसी की याद दिलाती है,यह कविता।
    याद आ गई कुछ बुली भाटकी यादे ।
    अमित गौतम

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    1. अमित भाई🙏
      मेरे दोस्त तुम्हारी ये प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत कीमती है।ईश्वर के मार्गदर्शन से मेरा छोटा सा प्रयास किसी के दिल को छू जाए इससे बेहतर उपहार मेरे लिए नही हो सकता।

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  2. विशाल स. विश्वकर्मा17 June 2021 at 09:07

    अद्भुत, अविश्वसनीय इतनी सुंदर कविता जो लफ्जो के मार्ग से हृदय में उतर जाए। शीर्षक(प्राण बिन एक देह छोड़ गई हो) अति सुंदर������❤️

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