आकर मेरी पीठ थपथपाना...
साथ मेरे उड़ान न भर सको,
मत भरना।
मैं अकेले उड़ान भर लूँगा,
मुझे आसमाँ छूना है।
मैं बिन पंख ही उड लूँगा...
हाथ मेरा थाम न चल सको,
मत चलना।
मैं अकेले ही चल लूँगा,
ईश्वर का दीया हूँ।
मैं बिन तेल ही जल लूँगा...
मंजिल मेरी न बन सको,
मत बनना।
मैं खुद ही मंजिल बन लूँगा,
अंधेरों का मुसाफिर हूँ।
मैं बिन पांव ही दौड़ लूँगा...
रास्ते के कांटे मेरे न बीन सको,
मत बीनना।
मैं खुद ही चून लूँगा,
सपनों का सौदागर हूँ।
मैं बिन आंख ही ख्वाब बून लूँगा...
मुफ़लशी में मेरे न आ सको,
मत आना।
मैं खुद ही पार पा लूँगा,
वीरों का वंशज हूँ।
मैं बिन अनाज घास की रोटी खा लूँगा...
दुख के दिनों में न सही
दुख मैं अकेला ही काट लूँगा,
मगर सुख में तो आ सही
सुख मैं सबमें बाँट लूँगा।
मत आना मेरे संघर्षों में
जो गिरू मैं तो मत उठाना,
मगर आ जाना मेरे उत्कर्षों में
आकर मेरी पीठ थपथपाना।
आकर मेरी पीठ थपथपाना।।
:- संदीप प्रजापति
बेहतरीन व अनुकरणीय👌👌👍
ReplyDeleteधन्यवाद मित्र😌
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