Sunday 26 December 2021

परिवार में बलात्कार

                   

परिवार में बलात्कार

            उस वक्त आप कैसा महसूस करते जब कोई आपका अपना परिचित ही आपके साथ यौन उत्पीड़न और बलात्कार जैसे कुकृत्य करता। जी हाँ आपने बिल्कुल सही पढ़ा। आज मैं आपको एक ऐसी ही घटना का वृत्तांत बताने जा रहा हूँ जो किसी के लिए भी जीवन को झंकझोर देनेवाला और अविस्मरणीय हो सकता है।
            हमारे भारतीय समाज में जहाँ पिता के भाई यानी चाचा को भी पिता का ही स्वरूप माना जाता है। उसी समाज में कुछ ऐसे विकृत मानसिकता वाले लोग भी रहते हैं जो इस रिश्ते को भी शर्मसार करते नहीं चूकते। अपनी राक्षसी प्रवृत्ति, पशुता, चरित्रहीनता और अपने वैसिहत के कारण वे लोग भाभी-देवर और चाचा-भतीजा/भतीजी जैसे रिश्तों के मर्यादा को भी लाँघ जाते हैं। अपनी हवस और वासना में लिप्त होकर न जाने कई जिंदगियों को शारीरिक और मानसिक रूप से क्षतिग्रस्त और शर्मसार करते हैं।
        इस कहानी की शुरुआत होती है उत्तरप्रदेश के एक छोटे से गाँव से। जहाँ अनुसूचित जनजातियों के टोले का एक बेहद गरीब परिवार रहता था। परिवार का मुखिया, उसकी पत्नी और पाँच जीवित संतान। जिनमें से दो पुत्र और तीन पुत्रियाँ। जीवित इसलिए कहा गया क्योंकि इनसे पहले कई संतानें काल के गाल में समा चुकी थीं। आजीविका का कोई प्रमुख स्रोत न होने के कारण परिवार का पालन-पोषण मुश्किल से होता था। बस किसी तरह से गुजर-बसर हो जाता। मेहनत-मजूरी करने के कारण बस जीवित भर थे। इसी तरह समय बीतता गया और परिवार का बड़ा बेटा आर्थिक परिस्थिति को भांपते हुए शहर की ओर रुख करने लगा। शिक्षित न होने के कारण शहर में कोई भी काम कर लेता। जिससे दो पैसे मिल जाते थे। खा-पहन कर जो पैसे बचते उसे वह गांव में माँ-पिताजी को भेज देता।
       यह देखकर परिवार बहुत खुश होता था। माँ-पिता को लगता कि जीवन अब सुधर सकता है। पर नियति को तो कुछ और ही मंजूर था। एक ओर बड़ा बेटा दिन-रात मेहनत करता दो पैसे कमाता और बचाता था तो दूसरी ओर छोटा बेटा आवारापन, नाकारा, कुलीनता और न जाने कितने-कितने दुर्गुणों में व्यस्त रहता। आए दिन कोई न कोई ओराहना लगा रहता। परिवार का संबल होना तो दूर वह तो बस नाक कटाता रहता था। बड़े बेटे की मेहतत और लगन देखकर कुछ समय बाद पिता ने उसका ब्याह रचा दिया। अब परिवार में एक और सदस्य बढ़ चुका था यानी जिम्मेदारी और अधिक हो चुकी थी। जिसके कारण उसे अपनी धर्मपत्नी को वहीं गांव में ही छोड़ शहर जाकर काम करना पड़ता। इन सब में उसका छोटा भाई बड़े भाई के न होने से घर में आयी नई बहू यानी अपनी भाभी से हंसी-ठिठोली के बहाने ही दुर्व्यवहार करता, आए दिन कहा-सुनी कर लेता तो कभी हाथ छोड़ देता। इन सबसे अधिक तो कभी स्त्री की गरिमा और मर्यादा के परे जाकर उसे अनचाहा स्पर्श कर देता। इससे तंग आकर  वह अपने पति के साथ शहर आकर रहने लगी। कुछ पल जीवन सुखमय बिता। उसे भी संतान प्राप्ति हुई। अब तक उसकी भी कुल तीन संतानें हो चुकी थीं।  और वहाँ छोटे बेटे की करतूतों से परेशान पिता ने अपने बड़े बेटे से विनती करकर कहा कि इसे भी अपने साथ रख लो। कोई काम-धंधा सिखाकर आदमी बना दो। पिता की आज्ञा को बड़ा बेटा नकार न सका। परंतु इस खबर से उसकी पत्नी जरूर अनमना गई और क्रोधित हुई।
       अब वह आवारा छोटा बेटा भी शहर में बड़े भाई के पास आ चुका था। उसकी करतूत अपनी आँखों से बड़ा भाई दररोज देखता। हालाँकि अब उसकी भाभी न तो उससे कोई मतलब ही रखती थी न ही बोलती-चालती थी। मानो की अब उनमें कोई संबंध ही न हो। शहर आकर बहुत समय हो चुका था पर अब भी वो न सुधरा था। कोई एक काम करने में न दिल लगाता और न मेहनत ही करता। हर रोज आवारागर्दी , कभी किसी से लड़ाई-झगड़ा तो कभी किसी से। अब तो उसके चलते बड़े भाई को थाना, चौकी और दरोगाओं के भी दर्शन हो चुके थे। उसके कुकृत्य इतने बढ़ चुके थे कि आस-पड़ोस की लड़कियों/महिलाओं को भी फांस लेता और अपने मंसूबे पूरे कर लेता। उसे यह सब कुछ बहुत सहज लगने लगा था। उसके इस घिनौने कारनामों की हद तो तब हो गई जब वह अपनी इन्द्रिय तृप्ति के लिए अपने ही घर में अपने बड़े भाई के बच्चों जो कि अभी महज १०-१२ बरस के ही थे। उनके साथ भी बड़ी सहजता से दुष्कर्म करने लगा। वह उन्हें जबरदस्ती नीली-पीली सीडियों के चलचित्र दिखाता और वही कृत्य उनसे भी  हिंसात्मक होकर करवाता। न करने पर गला घोंटता तो कभी बुरी तरह पिटता। इसी तरह मार-पीट और डरा धमका कर उनका मुँह बंद रखवाता था। डर और नासमझी के कारण बच्चे भी कुछ न कह पाते और यह जघन्य अपराध और कुकर्म चुपचाप सहते रहते।और उसकी वासना का शिकार होते रहते। कुछ वर्षों बाद उस मनुष्यरूपी पशु की भी शादी हो जाती है और उसकी पत्नी भी उसके इस आचरण, दुर्व्यवहार और मानसिकता से परेशान होकर अपने ही भाग्य को कोसती रहती।

अब आपसे कुछ सवाल:

१. क्या ऐसे जघन्य अपराध करने वाले लोगों को जीने का अधिकार मिलना चाहिए?
२. क्या इन लोगों के कारण ही आज समाज से रिश्तों-नातों से भरोसा उठ रहा है?
३. इस तरह की घटनाओं से बचने और आगे समाज में ऐसी घटनाएं न हो इसके लिए आपकी क्या राय है?
४. उन बच्चों को ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए था या उनकी जगह आप होते तो क्या करते।
५. क्या इस मामले में देश में कठोरतम कानून की आवश्यकता है?
६. इस तरह के पारिवारिक कुकर्म की घटनाओं को कैसे रोका जा सकता है, अपने विचार बताएं।

अपने विचार जरूर साँझा करें। शायद किसी की जिंदगी नरक होने से बच जाए।

(यह लेख किसी की व्यक्तिगत भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए बिल्कुल नही है। यह सिर्फ कुछ विकृत मानसिकता के लोगों को केंद्रित करते हुए है न कि भारतीय रिश्ते-नातों और सम्बन्धों को शर्मसार करने या नीचा दिखाने के लिए। किसी को लेख के प्रति कोई आपत्ति हो तो जरूर साझा करें।)

Friday 10 December 2021

शिक्षा: मजदूर की आँखों का सपना

                 शिक्षा: मजदूर की आँखों का सपना

     एक बालक मात्र १२-१३ की उम्र में बड़े शहरों का रुख करने लगा था। अभी बचपना छूटा ही न था, खेलकूद से मन भरा ही न था कि जिम्मेदारियों का बोझा सिर आ चुका था। साँवला रंग और ढीली-ढाली कद काठी का वह बालक लेकिन ईमानदारी, मेहनती और सच्चाई के गुणों को जानने वाला। निकल पड़ा था अपने गाँव-घर और माँ-बाप से दूर शहरों की ओर मजदूरी दिहाड़ी की तलाश में। जहाँ दो जून का खाना मिलता दो पैसे मिलते वहीं रह लेता मजदूरी कर लेता। कोई ढंग का काम तो मिलने से रहा, शिक्षा से दूर-दूर तक कोई नाता जो न था। इच्छा तो थी शिक्षा पाने की परन्तु आर्थिक हालात ऐसे न थे कि वो शिक्षा पा सके। इसीलिए काम करता और जो पाता उसी में खुश रहता।
       वह कुछ वयस्क हुआ ही था कि उसका ब्याह हो गया। अब सिर पर और एक जिम्मेदारी आ गयी थी। जिम्मेदारी क्या मानो बोझ। खुद के पेट पाले नहीं पल रहे थे कि अब घर गृहस्थी भी बसाना पड़ा। देखते ही देखते अब पुत्र रूप में एक और जिम्मेदारी आ गयी थी। परंतु अब तक वह इतना साहसी तो हो चुका था कि सारी जिम्मेदारियों को निर्भीकता से उठा ले। कुछ समय बिता आर्थिक तंगी अब भी वैसी ही बनी थी परंतु अब पारिवारिक कलह भी होने लगा। मजबूरन अपना परिवार लेकर उसे माँ-पिता से अलग हमेशा के लिए किसी अनजान शहर के एक छोटी-सी झुग्गी-झोपड़ी में बसना पड़ा। जीवन की एक बिल्कुल शुरू से नई शुरुआत हुई। जस-तस गुजर बसर होने लगा। कई मौसम बदले,बरस बदलते गए अब वह तीन संतानों का पिता हो चुका था। परंतु आर्थिक तंगी बरकरार ही थी। शिक्षित न होने का मलाल जीवन भर उसे ज्यों-त्यों सताता रहता था। इसी कारण उसने अब प्रण ले लिया था कि उसे चाहे जीवन भर दुख झेलना पड़े। चाहे जो हो जाए वह अपनी संतानों को जरूर शिक्षित  करेगा। वह उन्हें पढ़ा-लिखा कर एक प्रतिष्ठित व सम्मानजनक व्यक्तित्व वाला जीवन प्रदान करेगा। यह दृढ़ संकल्प सिर्फ उसका ही नहीं बल्कि उसकी पत्नी का भी था। क्योंकि वो भी धेला बराबर भी शिक्षित न थी परंतु गृहस्थी में निपुड थी और शिक्षा का महत्त्व भलीभाँति जानती थी।
               दोनों जी तोड़ अथाह मेहनत करते और उसी से अपना और अपने बच्चों का भरण-पोषण करते। जिंदगी की मूलभूत जरूरतों में कटौती कर अपना पेट काट-काट कर दोनों अपनी संतानों को खूब पढ़ाने का सपना संजोते। उन्होंने कुछ रो-धोकर तो कुछ सिफारिशों के सहारे अपने बच्चों को स्कूल में भर्ती तो करा दिया। पर आए दिन पढ़ाई के खर्चे और  स्कूल के शुल्क अदा कर पाना उनके बस की बात न हो पा रही थी। नतीजतन दाखला रद्द होने की नौकत तक आ गयी। न चाहते हुए भी कर्जा लदकर  बच्चों की पढ़ाई जारी रखी गई। हालाँकि बच्चे भी पढ़ाई-लिखाई में होनहार ही थे। अभावों के चलते बस जीवन के दूसरे आयामों में थोड़ा पीछे थे। मगर शैक्षणिक प्रदर्शन बेहतर था। आए दिन कक्षा में उनका हुनर बोलता था। शिक्षक काफी प्रभावित थे उनकी प्रतिभा से। मगर नियति पग-पग पर इनकी परीक्षा लेती और इन्हें जीवन पथ पर मजबूती से डटे रहने का सबक सिखाती।
                      वक्त के साथ-साथ दोनों दंपति उम्र दराज होते गए। मजदूरी अब किए नहीं जा रही। घरवाली अलग बीमार रहती। घर चलाना मुश्किल होता जा रहा था। परंतु व्यक्ति ने इस पल भी हार न मानी और अपना सपना जीवित रखा। किसी भी परिस्थिति में अपनी संतानों की शिक्षा को बाधित न होने दिया। चूँकि अब सन्तानें भी इतनी बड़ी हो चुकी थीं कि अपनी आर्थिक स्तिथि को समझ सकें और अपनी पढ़ाई का खर्च खुद उठा सकें। परिणामस्वरूप उन बच्चों ने भी कुछ काम करना शुरू कर दिया और साथ ही साथ अपने पिता के सपने को भी जीवित रखा। पैसे कमाने में हाथ बंटाने के साथ साथ वे अपनी पढ़ाई को भी बखूबी जारी रखते और इतना ही नहीं सभी शैक्षणिक मापदण्डों में अव्वल ही रहते। जिससे बूढ़े दम्पत्ति को सांत्वना मिलती की ईश्वर एक न एक दिन उनकी मेहनत का फल जरूर देंगे और उनका सपना भी साकार होगा।
              यह कहानी किसी सफल व्यक्तित्व या किसी  व्यक्ति की असाधरण सफलता की नहीं है बल्कि यह कहानी हमारे देश के सबसे पिछड़े तबके के ऐसे हजारों-लाखों गरीब-मजदूर लोगों के संघर्ष की कहानी है। जिनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य केवल अपनी संतानों को शिक्षित कर देना ही होता है। वे इसमें ही अपने जीवन की सार्थकता को मानते हैं। और बस इसी एक संकल्प के लिए अपनी परंपरागत लीक से हटकर कुछ सपने देखते हैं और उन्हें पूरा करने के लिए जीवन भर जीवनभर संघर्ष करते हैं। हालाँकि उनके सपनों का सच होना न होना यह तो ईश्वर के हाथों ही है। परंतु ऐसे महान विचारधारा वाले हर उस व्यक्ति को मेरा सहृदय नमन है। ईश्वर से प्रार्थना है कि किसी ऐसे ही सपने को पूरा करने का भागीदारी मैं बन सकूँ।

Friday 3 December 2021

मित्र : एक सीख

मित्र : एक सीख

                  "हर सुखी नवविवाहित जोड़े में एक ऐसा तीसरा व्यक्ति भी होता है, जो बेवजह नियती के हाथों का मोहरा बनता है और उसके मृदु हृदय में प्रेम के बदले केवल रह जाती हैं स्मृतियाँ।"
                          जी हाँ आज मैं आपको एक ऐसी ही कहानी बताने जा रहा हूँ जिसमें एक ओर केवल मासूमियत और प्रेम था तो दूसरी ओर केवल छल और उपयोगिता।
                  तो चलिए शुरू करते हैं, तकरीबन पाँच-सात साल पहले की बात है। जब मैं, मेरा घनिष्ठ मित्र और उसकी तथाकथित प्रेमिका हमसब कक्षा नौं या दस में पढ़ते थे। उस वक्त हमारी उम्र लगभग कोई १४-१५ बरस की रही होगी, कोरा बचपन जिसमें केवल उल्हास और उमंग था। मेरा मित्र जो कि कक्षा का सबसे होनहार, शालीन और सर्वश्रेष्ठ दर्जे का विद्यार्थी था। सारे शिक्षक और हमसब सहपाठी उससे काफी प्रभावित थे। एक अच्छा विद्यालयीन माहौल था हम सब में। खेलकूद और पढ़ाई-लिखाई ही जीवन था। इससे अधिक तो हम जानते ही न थे। हालाँकि शायद उसी दौरान हमारी कक्षा में एक नई लड़की का भी प्रेवश हुआ था। उसके परिचय के बारे में कहूँ तो गजब की कद काठी और अलौकिक सुंदरता की धनी थी वो लड़की। वक्त बीतता गया और वह भी हम सब के साथ खूब घूलमिल गई। पर न जाने कहाँ से उस छोटी सी उम्र में ही मेरे मित्र के मन में प्रेम का वास हो गया। उसे वह लड़की खूब भाने लगी। भीतर ही भीतर वह उससे अथाह प्रेम करने लगा। और एक रोज उसने  अपने प्रेम का इजहार उस लड़की के सामने कर ही दिया। परंतु शायद कोई संतोषजनक प्रतिक्रिया न मिली और ये एक तरफा प्रेम ही चलता रहा।सच कहूँ तो उसका एक तरफा प्रेम कभी दो तरफा हो ही न पाया। बस मित्रता की आड़ में केवल उपयोगिता ही निभाई गई।
                         पर वह इस एक तरफा प्रेम में ही खुश था क्योंकि इसी बहाने वह उसकी मित्र तो थी। इसी निश्छल और मासूम प्रेम के वसीभूत होकर वह उस लड़की के लिए कुछ भी कर बैठता था। कभी कक्षा के उपद्रवी बच्चों से उसकी खातिर लड़ जाता तो कभी उसकी उत्तर पुस्तिकाएँ खुद ही जाँच लेता था। कभी परीक्षा केंद्र में उसकी परीक्षाएँ भी खुद ही लिख देता ताकि वह उत्तीर्ण हो सके। इन सबके लिए हम सारे दोस्त उसका खूब उपहास करते उसकी हँसी उड़ाते। कभी-कभी उसे सलाह भी देतें की यह सब मत कर वह लड़की केवल तेरा इस्तेमाल कर रही है। पर हम सब तो ठहरे मूर्ख हमारे भीतर तो कभी प्रेम का वास ही न हुआ तो हम ये कैसे जानते कि प्रेम में व्यक्ति खुद के बारे में नहीं सोच सकता। मेरा वह मित्र हमारे सारे अपमानों को सह जाता और प्रेम पथ पर अड़िग रहता। धीरे-धीरे हमारी दसवीं की परीक्षाएँ नजदीक आ गयीं। मेरा होनहार मित्र अपनी पढ़ाई को दरकिनार कर दिन-दिन भर सिर्फ उस लड़की को पढ़ाता रहता ताकि वो अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो सके। अंततः परीक्षाएँ हुई और परिणाम भी आ गए। वह लड़की तो  अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो गई। परंतु मेरा मित्र अपने और हमारे विद्यालय के उम्मीदों पर खरा न उतर सका। उसके अंक कम हो गए और वह पहले जिस तरह कक्षा में प्रथम आता था इस बार प्रथम न आ सका। अध्यापक और हम सब मित्र तो उससे नाराज थे। परंतु वह अपने से खूब खुश था क्योंकि वह जानता था कि उसकी मेहनत सफल हुई है। उसकी प्रेमिका अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुई है।
                    विद्यालयीन दौर खत्म हुआ हम सब ने महाविद्यालयों में प्रवेश किया। मेरे और उस लड़की के विषय एक ही होने के कारण हमारी कक्षाएँ भी फिर एक बार एक ही थीं। परंतु मेरे मित्र की शाखा अलग होने के कारण वह हमसे अलग था। मतलब मेरे मित्र के लिए इस समय केवल मैं ही उसके और उसके तथाकथित प्रेमिका के बीच जरिया था। उसने पुनः चाहा कि वह किसी तरह उससे प्रेम पा सके। हालाँकि  अभी तक उस लड़की ने न ही प्रेम प्रस्ताव की स्वीकृति ही कि थी और न ही नकारा था। केवल मित्रता के नाम पर स्वार्थसिद्धि करवाती रही। इन सभी ऊहापोह में मेरे मित्र की शैक्षणिक योग्यता खराब होती गई। वह निरंतर हर कक्षाओं में अनुत्तीर्ण होता रहा। किसी कारणवश एक रोज उन दोनों में किसी बात को लेकर अनबन हो गई जो बढ़ती ही जा रही थी। अतः सुलह और समझौते के तौर पर मुझे भी इस बीच में जाना पड़ा। उसी दौरान उस लड़की ने बड़ी ही अभद्रता और अपमानजनक शब्दों में कहा कि उसे मेरे उस मित्र से किसी भी प्रकार का कोई रिश्ता नहीं रखना। न मित्रता न ही कुछ और। और यह सब सुन हम दोनों मैं और मेरा मित्र हक्के-बक्के रह गए। हालाँकि उसके बाद मेरे मित्र की शैक्षणिक योग्यता और अधिक खराब होती गई। उसने पढ़ाई ही छोड़ देने का निश्चय ले लिया। परंतु एक बात थी उसने कभी गलत रास्ता नहीं चुना, खुदको अवसाद का शिकार नहीं होने दिया। कुछ समय बाद उसने स्वास्थ्य और व्यायाम के क्षेत्र की ओर रुख किया। अपने अंदर कौशल विकसित किया। साल दर साल खूब मेहनत की और आज वह एक अच्छे प्रशिक्षित स्वास्थ्य सलाहकार के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहा है। और हम सब मित्रों के लिए एक बेहतरीन उदाहरण के तौर पर है।
              यह कहानी बताने का मेरा सिर्फ यह उद्देश्य था कि कभी-कभी हम हमारे आसपास की जिन चीजों और घटनाओँ को मामूली समझते हैं। उनका हमारे जीवन पर बेहद महत्वपूर्ण असर होता है। ये सारी घटनाएँ हमें बहुत कुछ अमूल्य बातें सीखा जाती हैं। जैसे कि मैंने अपने इस मित्र से बहुत कुछ सीखा।

१) जब आप विद्यार्थी हो तो आप केवल विद्यार्थी हो। अपना सर्वश्रेष्ठ शिक्षा को ही दो।
२) जब आप प्रेमी हो तो आप केवल प्रेमी हो। अपना सारा प्रेम निःस्वार्थ भाव से लूटा दो।
३) अंतिम एवं सबसे मुख्य जब भी जीवन में किसी भी क्षेत्र में असफलता हाथ लगे तो उससे अपने आप को बरबाद न कर बैठें बल्कि एक सकारात्मक ऊर्जा और उत्साह के साथ जीवन को एक नई दिशा दें। एक नई शुरुआत करें।

                  और हाँ, इस पूरे चार-पाँच साल की प्रेमकहानी में मुझे व्यक्तिगत तौर पर जो बात सबसे ज्यादा भाती है, वो यह है कि मेरा वह मित्र इतना ज्यादा नैतिकतावादी था कि कभी उसने उस लड़की को न ही बुरी नजर से देखा और न ही कभी छुआ। जबकि उसके पास कई बार ऐसे मौके आए थे कि वह उसके साथ सारी इच्छाओं की पूर्ति कर सके। और हाँ कई बार तो कई मित्रों ने उसे सलाह तक दे दिया था कि तू भी उसका इस्तेमाल कर ले। पर वो तो ठहरा प्रेमी। उसने अपनी प्रेमिका का सम्मान और अपने प्रेम की गरिमा बनाए रखी।
                     कभी-कभी सोचता हूँ कि क्या उस मित्र की जगह मैं होता तो क्या मैं भी ऐसा कर पाता। शायद नहीं...और यही चीज हमेशा कचोटती है कि उस छोटी सी उम्र में ही जीवन का एक अटल सत्य और अनमोल गुण मेरे मित्र ने मुझसे पहले ही सिख लिया था। हालाँकि हम सारे दोस्त अभी संघर्षों के दौर में ही हैं। पर वह लड़की हाल के ही कुछ समय में एक सुव्यवस्थित युवक से विवाह कर सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रही है।




(लेख काफी बड़ा हो जाने के कारण बहुत कुछ बातें,यादें और किस्से अलिखित ही रह गए हैं, परंतु मैं जानता हूँ कि आप सब एक प्रेमी की भावनाओं का बखूबी समझेंगे। आशा करता हूँ कि कहानी अच्छी लगी होगी और हम सब में एक सकारात्मक ऊर्जा प्रेरित करेगी। गोपनीयता और निजता के कारण किसी का व्यक्तिगत परिचय नहीं दिया गया है।)

            

Thursday 2 December 2021

परिवार से अलग एक पुरुष

                    परिवार से अलग एक पुरुष

                           अकेले रहना कष्टदायी तो होता है, खास कर उन पुरुषों के लिए जो किसी कारणवश अपने परिवार से अलग हैं। पर यही अकेलापन इन पुरुषों को आगामी जीवन के लिए तैयार करता है। जो इन्हें एक आदर्श पुरुष बनाता है। मेरे ख्याल में अकेले रहने में कोई हीन भावना नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह अकेलेपन का दौर ही मनुष्य को उसके जीवन के सारे बहुमूल्य सबक सिखाता है और परिपक्व, आत्मनिर्भर, स्वावलम्बी एवं कर्मठ बनाता है। इस प्रकार के पुरूष कच्ची उम्र से ही जीवन के गूढ़ रहस्य को समझने लगते हैं और वास्तविकता में जीते हैं न कि ढोंग और चमक दमक में।
                       खुद ही खुद से प्रेम करना, सारी दुख तकलीफों में खुद को खुद से सम्भाल लेना, कभी जी भर रो लेना तो कभी बेवजह मुस्कुरा देना। एक आदर्श जीवन के ऐसे कई गुण इन पुरुषों में स्वाभाविक तौर से विकसित हो जाते हैं। पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, मानसिक और न जाने कई परेशानियों को झेलते हुए भी ये लोग जीवन को सुचारू ढंग से चलाते हैं और जीवन की जीवटता को मिटने नहीं देते। इस प्रकार का अकेलापन एक पुरुष हो उसके वास्तविक में पुरुष होने का बोध कराता है और उसे उसके दायित्वों का निर्वहन करने की क्षमता प्रदान करता है।
           "और हाँ एक अंतिम परन्तु मुख्य बात की ऐसे पुरुषों को पेट की भूख  के लिए कभी किसी स्त्री पर निर्भर नहीं होना पड़ता।"


(अपने परिवार से अलग, माँ-बहन, प्रेमिका-पत्नी से दूर रह रहे सभी मित्र भाइयों को समर्पित एक छोटा सा लेख। आशा करता हूँ कि भावनाएं आपके दिल तक जरूर पहुचेंगी।)

Friday 26 November 2021

घरवाली


                              घरवाली

काजल बिंदी व कानों में 
एक सूंदर सी बाली होगी...
फटे चीथड़ों के इस दौर में 
सूट सलवार दुपट्टे वाली होगी...
छल कपट चालाकी से परे
सूंदर सुशील भोली भाली होगी...
सबसे न्यारी सबसे प्यारी
उसकी हर एक बात निराली होगी...
मन के सूखे में प्रेम बरसेगा
एक वो ही तो बरसाने वाली होगी...
दोस्त प्रेमिका जीवनसाथी
सब कुछ तो वो घरवाली होगी...
यूँ ही नहीं उसमें पगलाता हूँ
वो तो अप्सरा एक खयाली होगी...
प्रतिक्षाओं का अंत होगा प्रेम अनंत होगा
जब इन होंठों पे उसके होंठों की लाली होगी...
                                        
                                                 :- संदीप प्रजापती

(प्रेम की प्रतीक्षा में अपने प्रेमी के रंग-रूप, हाव-भाव की कल्पना करते हुए अपने चित्त में उसका एक सजीव चित्रण कर लेना और बस उसी चित्र को अपने ऑंखों के सामने हर घड़ी देखना भी एक बेहद ही सुखद अनुभव है।)

Friday 19 November 2021

हम छात्र हैं...


हम छात्र हैं...

हम छात्र हैं,
दया के पात्र हैं।

सम्मान हमें मिलता नहीं,
दर्द इतना की संभलता नहीं।

हर किसी का प्रभाव हम पर है,
पैसों का अभाव हम पर है।

खाली जेब औक़ात दिखाती है,
अरे भाई उम्र भी तो ढली जाती है।

कभी घर की परेशानियों से
तो कभी समाज के तानों से,
हम हार जाते हैं
अपने ही अरमानों से।

कई रातें जागी है, जवानी खपाई है,
आंखें किताबों में गड़ाई है।
फिर भी असफल हुए तो हम नाकारा है,
सफलता की हमने काबिलियत ही नहीं पाई है।

थक जो जाएं किताबों पर सिर रख सोते हैं,
एक सपना जीने को रोज थोड़ा थोड़ा रोते हैं।
बस इस साल मेहनत करलो फिर तो मौज है,
हर रोज यही सुनते सुनते जिंदगी बन गई बोझ है।

छात्र एक परिंदा होगा,
कहीं मुर्दा तो कहीं जिंदा होगा।
न किसी का साथ होगा न कोई कंधा होगा,
हम होंगे हमारा पंखा होगा और गले में फंदा होगा।

परीक्षाएँ तो होंगी मगर छात्र न होंगे,
दया तो होगी मगर दया के ये पात्र न होंगे।

                                                     :- संदीप प्रजापति


(दुनिया की इस पाठशाला में मनुष्य जीवन भर छात्र बना रहता है। मेरी यह कविता छात्र जीवन जी रहे हर उस युवा को समर्पित है, जो सारी जिम्मेदारियों को उठाते हुए भी अपने अंदर के विद्यार्थी को मरने नहीं देता है। अपने किसी विशेष लक्ष्य के लिए पढ़ता रहता है। लोगों की अवहेलना सहता है फिर भी अपने काम में लगा रहता है और फिर एक दिन सफल होकर भी दिखाता है।)


Wednesday 17 November 2021

एक तलाश जारी है...

एक  तलाश जारी है...

ये तुम हो
या मेरे ख्वाबों ने
तुम्हारी तस्वीर उतारी है।

वो मासूम चेहरा
गोरे गाल
और आँखें भी तो कजरारी है।

वो सादगी  मिजाज
गुलाबी होंठ
और बोली भी तो न्यारी  है।

वो अल्हड़ जवानी
गठीला बदन
और चाल भी तो मतवारी है।

वो पतली कमर
ऊँचा कद
और मोहोब्बत भी तो करारी है।

वो चांदनी सुंदरता
बेदाग चरित्र
और पवित्रता भी तो सारी की सारी है।

सच कहना तुम ऐसी ही हो या,
मेरी कल्पनाओं में एक तलाश जारी है।

                                                 :- संदीप प्रजापति


(अपनी कल्पनाओं में प्रेम का एक चेहरा बुनना और उसी से अथाह प्रेम करना भी एक आनन्द है। प्रेम करने के लिए आपके पास किसी के एक वास्तविक शरीर का होना ही आवश्यक नहीं है। आप किसी स्थान, वस्तु, विचारों या स्मृतियों से भी भरपूर प्रेम कर सकते हैं जो आपको ईश्वरीय प्रेम का अनुभाव कराता रहेगा।)








Tuesday 16 November 2021

एक सवाल

                                 एक सवाल


एक सवाल है
जवाब बताओगी क्या...

बंदिशें कितनी ही हो
तुम दौड़ी चली आओगी क्या...
रूठूँ जो कभी तुमसे
तुम प्यार से मनाओगी क्या...

थक जो मैं जाऊँ
सिर गोदी में रखकर सुलाओगी क्या...
प्रेम जितना हो तुममे
सारा प्रेम मुझपर लुटाओगी क्या...

आज ख्वाबों में आई हो
कल बाहों में भी आओगी क्या...
तुम्हारी इन हथेलियों पर
मेहँदी हमारी रचाओगी क्या...

मांग में अपनी 
हमारा सिंदूर सजाओगी क्या...
फेरे पूरे सात लेकर
सात जन्मों का साथ निभाओगी क्या...

मैं जीवन भर इंतज़ार कर लूँ
बस एक बार कह दो तुम आओगी क्या...
सुनो इस बंजर मन में
प्रेम का उपवन लगा के छोड़ जाओगी क्या...

                                                  :- संदीप प्रजापति

(मन मे कुछ आशंकाएं लिए कल्पनाओं की दुनिया में प्रेम का बसेरा ढूंढ रहा एक प्रेमी। प्रेम पा लूँ या प्रेम जी लूँ बस इसी द्वंद्व में उलझा हुआ है। ) 



Saturday 30 October 2021

याद

                     याद

वो पहला स्पर्श याद आया होगा,
वो पहला निष्कर्ष याद आया होगा।
वो पहली बरसात याद आयी होगी,
वो पहली मुलाकात याद आयी होगी।
वो पहला चुम्बन याद आया होगा,
वो पहला क्रंदन याद आया होगा।
वो पहली दफा राहों में आना याद आया होगा,
वो पहली दफा बांहों में आना याद आया होगा।
वो पहले यार का याराना याद आया होगा,
वो पहले प्यार का खजाना याद आया होगा।
लाखों होंगे उसके चाहने वाले अब भी,
फिर भी उसे गुजरा जमाना याद आया होगा।
जब भी वो किसी नए आशिक़ से मिलती होगी,
बस वही आशिक़ पुराना याद आया होगा।

                                                       :- संदीप प्रजापति

(प्रेम में पूर्णतः समाहित एक व्यक्ति हमेशा इसी कल्पना में रहता है कि शायद उसके प्रेमी ने जीवन में एक न एक बार तो किसी न किसी अवसर पर उसे याद तो जरूर किया होगा या किसी घटना ने उसे उसकी याद दिला दी होगी और कुछ भूली बिसरी स्मृतियों ने उसके भी हृदय को गुदगुदाया होगा। वो एक ही आश में रहता है कि हम दोनों एक ही दुनिया में है, जीवन के किसी न किसी छोर पर भेंट तो होगी ही फिर पूछूंगा कभी मेरी याद आयी थी?)


Thursday 28 October 2021

प्यार में लड़के

                           प्यार में लड़के



            लड़कियों तुमको भी किसी लड़के से प्यार तो हुआ ही होगा। पर क्या तुमको कभी किसी लड़के के शर्ट से,पैंट से,घड़ी से,बालों से या उससे जुडी किसी भी चीज से कभी प्यार हुआ है?
नहीं न।
हम लड़को को हुआ है।
       तुमसे भी हुआ है और तुम्हारी हर उस चीज़ से हुआ है जो तुमसे होकर गुजरती हो। तुम्हारे कपड़ों से लेकर जूते ,चप्पलों को भी हम लड़के इतनी बारीकी से प्यार कर जाते हैं जैसे उसमें भी तुम ही समाई हो। तुम्हारे इश्क़ को पाने में तुमसे जुड़ी हर उस चीज़ से इश्क़ कर बैठते हैं, जिसका लड़कों के जीवन में कभी कोई महत्त्व ही न हो। पर क्या करें एक तुमको रिझाने में ये सब भी करना पड़ता है। कभी तुम्हारे टूटे बालों को ही सहेज लेना तो कभी तुम्हारे होंठो की लाली का रंग याद कर लेना भी हमें तुम्हारे प्यार का भागी बना देता है। तुम्हारी दिनचर्या को रटने में अपनी दिनचर्या भूला बैठते है,क्या करें तुमसे प्यार जो कर बैठते हैं। कभी तुमको एक झलक देख लेने के लिए सारा दिन गवां देने में भी किसी दिहाडी के मजदूर सी खुशी को पा लेते हैं जिसके दिन भर की मजदूरी तुम्हारी एक झलक जैसी हो। तो कभी भीड़ से गुजरते हुए भी तुम्हारी इत्र की खुशबू को पहचान लेते हैं। तुम्हारे जुड़ों से लेकर जूतों तक कि सारी चीज़ों की महीनता को याद कर जाते हैं, बस एक दफा मुस्कुराकर देख लोगी इसी आश में जवानी बर्बाद कर जाते हैं। गिनाने को तो ऐसी बहुत सी चीजें है जो लड़के सिर्फ तुमसे आकर्षित होकर ही कर जाते हैं। खैर तुमने कभी इन बातों को न जाना हो मगर एक तुमको चाहने में लड़के तुम्हारे साथ साथ सब कुछ चाहने लग जाते हैं।


(प्रेम या आकर्षण में आकर ऐसी कई बेतुकी बातें है जो लड़के किसी लड़की के लिए कर जाते हैं परंतु एक निश्चित कालावधि के बाद उनको स्वतः ही बोध हो जाता है कि वो कितना बचकाना और मूर्खतापूर्ण व्यवहार किसी लड़की के आकर्षण में कर गए थे।)

Sunday 24 October 2021

पहली मोहोब्बत

                           पहली मोहोब्बत


बांहो में सिमटकर 
जब सीने से लगाया होगा,
पागलपन सिर्फ मेरा ही नही
इश्क़ ने पागल तुम्हे भी बनाया होगा।

दिल सिर्फ मेरा ही नही बैठा होगा
कदम तुम्हारे भी डगमगाए होंगे,
प्रेम कहानी अधूरी लिखने में
हाथ तुम्हारे भी थरथराए होंगे।

यूँ ही नही चांदनी रात में
तुम सिर्फ अलविदा कहने आयी होगी,
उस आखिरी चुम्बन पर 
आँखें तो तुम्हारी भी भर आयी होगी।

कहीं और से तुमने भी
पहली मोहोब्बत का एहसास पाया होगा,
मेरी पहली मोहोब्बत तुम ही थी जानोगी तब 
जब मेरे बाद तुमको मेरा प्यार समझ आया होगा।

                                              :- संदीप प्रजापति

Saturday 9 October 2021

नौकरी

नौकरी


काम पसन्द हो न हो,
फिर भी काम कराती है।
ऊंचे ऊंचे लाखों सपनों को,
चंद रुपयों से मार गिराती है।
कभी घर परिवार से तो,
कभी अपनों से दूर कराती है।
कई अनजान चेहरों से मिलाती है,
हाय... ये नौकरी क्या क्या कराती है।

न मरने देती है,
न ही जिलाती है।
भर दिन दौड़ाती है,
नींद कहाँ आने देती है।
सैकड़ों झूठ बुलाती है,
सहपाठियों से लड़ाती है।
बाबूओं के तलवे भी चटाती है,
हाय... ये नौकरी क्या क्या कराती है।

कुछ जिंदगी से लड़ने को,
तो कुछ जिम्मेदारियों के नाते।
गैरों की चाकरी करते हैं,
हाँ हम भी नौकरी करते हैं।
पर इन सब से दूर,
हमने भी कई सपने पाल रखे हैं।
जीवन भर यूँ ही,
नौकरी ही न करते रहने का ख्याल रखे हैं।
कुछ कठोर फैसलें होंगें,
हालातों से ऊंचे हमारे हौसलें होंगे।
एक दिन हम भी बाबू साहब होंगे,
हमारी भी लोग नौकरी करेंगें।

                                           :- संदीप प्रजापति


(हालातों के चलते न चाहते हुए भी मन मार के नौकरी करने वाले सभी लोगों को समर्पित।)

Tuesday 14 September 2021

आईना होना चाहता हूँ...

आईना होना चाहता हूँ...

रिश्तों के इस बाजार में
मैं भी एक कोना चाहता हूं,
खेल सकूँ किसी के दिल से 
मैं भी एक खिलौना चाहता हूँ।

त्याग सभी लक्ष्यों को
मैं भी बाबू शोना चाहता हूँ,
हंसती खेलती जिंदगी में
मैं भी रंडी रोना चाहता हूँ।

वादे निभा न सकूँ 
पर साथ सोना चाहता हूँ,
सौ थालियों में खाऊँ
पर कह दूं कि सिर्फ तेरा होना चाहता हूँ।

शब्द मेरे है पर
मैं ये भावना खोना चाहता हूँ।,
सच कहता हूँ मैं तो
बस समाज का आईना होना चाहता हूँ।
:- संदीप प्रजापति

( व्यक्तिगत भावनाओं को आहत करना उद्देश्य नहीं है।)

Sunday 29 August 2021

ललही छठ पूजा

       मुख्यतः बिहार के सुप्रसिद्ध छठ महापर्व के बारे में तो हम सब जानते हैं , लेकिन आज मैं आपको एक और छठ पूजा के बारे में बताऊँगा जिसे ललही छठ के नाम से भी जाना जाता है जो कि उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में बड़े ही आस्था से मनाया जाता है।
    बचपन से ही माता जी को छठी मैया का व्रत करते देखते आ रहे हैं।  बाल्य काल में तो व्रत का अर्थ सुबह सुबह खुरपी लेकर पापा के साथ उनकी साईकिल पर बैठकर कुश, पलाश और महुआ के पत्तों को(शहर् में कुश और पलाश को ढूँढना किसी पहाड़ तोड़ने से कम नहीं है) ढूँढ कर लेकर आना बड़ा ही रोमांचक अनुभव रहता था।  फिर सुबह पूजा में मिलने वाला प्रसाद और  दोपहर के समय मां के बनाए हुए देशी घी में बने तिन्नी के चावल का खाना बहुत ही अविस्मरणीय अवसर हुआ करता था। वक्त बदल गया आने जाने के साधन बदल गए बस नहीं बदला तो मां का वह हर वर्ष है षष्ठी पर रखे जाने वाला व्रत। 

आज संपूर्ण देश में हल षष्ठी(बलराम जयंती) का पर्व मनाया जा रहा है। बलराम जयंती हर वर्ष भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को बलराम जयंती मनायी जाती है। यह व्रत माता अपने पुत्रों की दीर्घायु के लिए करती हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में हलषष्ठी को कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे लह्ही छठ, हर छठ, हल छठ, पीन्नी छठ या खमर छठ भी कहा जाता है।

बलराम जयंती 2021

हलषष्ठी व्रत
28 अगस्त 2021, दिन शनिवार 

षष्ठी तिथि प्रारंभ
27 अगस्त 2021 को शाम 06:50 बजे

षष्ठी तिथि समाप्त
28 अगस्त 2021 को रात्रि 08:55 बजे

मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण जी के भाई बलराम जी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में हलषष्ठी व्रत मनाने की परंपरा है। यह परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। क्योंकि बलराम जी का प्रधान शस्त्र हल और मूसल है। इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है। और उन्हीं के नाम पर इस पावन पर्व का नाम हल षष्ठी पड़ा है।

हल षष्ठी के दिन माताओं को महुआ की दातुन और महुआ खाने का विधान है। इस व्रत में हल से जोते हुए बागों या खेतों के फल और अन्न खाना वर्जित माना गया है। इस दिन दूध, घी, सूखे मेवे, लाल चावल(तिन्नी का चावल),करमुए(नदी ,तालाब में पाए जाने वाला एक प्रकार का साग) आदि का सेवन किया जाता है।

इस व्रत को नवविवाहित स्त्रियां भी संतान की प्राप्ति के लिए करती हैं। और माता संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए इस व्रत को करती हैं।

इस व्रत की पूजा करने से पहले प्रात:काल स्नान आदि से निवृत्त हो जाना चाहिए। और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। और गाय के गोबर से जमीन को लीपकर छठी मैया का स्वरूप पूजा स्थल पर बना लें। इसके बाद वहीं भूमि में महुआ, कुश और पलाश की एक-एक शाखा बांधकर गाड़ दें और उसके बाद इनकी पूजा करें।

विशेष नोट - इस व्रत में कोई भी एसी चीज़ नहीं खाई जा सकती जिसकी पारंपरिक रूप से खेती की जाती है। 

जय छठी मैया।। 
श्री चरणों का दास- सुनील कुमार मिश्रा 

छवि -माता जी द्वारा छठी माता स्थापना और पूजन।

साभार :- सुनील कुमार मिश्रा की पोस्ट से
(रामायण सन्देश)

🙏पोस्ट कॉपी करने के लिए क्षमा प्रार्थि🙏

Wednesday 21 July 2021

जिसने प्रेम को खोया है...

                        जिसने प्रेम को खोया है...

उनसे क्या पूछना
जिसने जिस्मों को पाया है,
प्रेम का अर्थ उनसे पूछो 
जिसने प्रेम को खोया है।

लोकबाग में हंसकर 
चाँदनी रातों में रोया है,
दिन रैन जागकर
नम आँखों में सोया है।

एक पल मिलने को
अपना सारा दिन गंवाया है,
एक झलक दिखने को
अपना सारा खून जलाया है।

अपमानित होकर भी
जिसने प्रेम निभाया है,
प्रेमिका की खुशी के लिए
जिसने प्रेम बलि चढ़ाया है।

उनसे क्या पूछना
जिसने जिस्मों को पाया है,
प्रेम का अर्थ उनसे पूछो 
जिसने प्रेम को खोया है।
जिसने प्रेम को खोया है।।
















क्या वो प्यार भुला पाओगे...

                      क्या वो प्यार भुला पाओगे...

जिसकी खातिर
गलियों का 
चक्कर लगाया 
उसी ने
ठुकराया 
छोड़ हाथ 
मोहोब्बत का
उसने
पैसों को अपनाया 
जाओ 
खुश रहना 
इस दौलत में
मगर जान लो
तरस जाओगे
किसी की 
सच्ची मोहोब्बत में
सब कुछ 
तो पा जाओगे
लेकिन वो
प्यार कहाँ
से लाओगे
जब प्यास जगेगी
मोहोब्बत की 
तब भी 
क्या तुम 
पैसे ही खाओगे
सच कहना 
हमको तो 
भूल जाओगे
पर क्या वो
प्यार भुला पाओगे।

Sunday 11 July 2021

एक दौर जवानी है...


                            एक दौर जवानी है...


कुछ बिखर गए 
कुछ निखर गए,
कुछ ने इसकी ही जिद ठानी है
इसकी सबपे मनमानी है।
एक दौर जवानी है।।

किसी में जोश जगाए
किसी के होश उड़ाए,
किसी की ये ख्वाहिश पुरानी है
इसकी सबपे मनमानी है।
एक दौर जवानी है।।

कुछ के खेलकूद छूटे
कुछ के हिस्से जिम्मेदारियां फूटे,
कुछ के बचपने की विदा निशानी है
इसकी सबपे मनमानी है।
एक दौर जवानी है।।

कहीं दिल धड़काए
कहीं दिमाग आजमाए,
कहीं तो बस इसकी ही रवानी है
इसकी सबपे मनमानी है।
एक दौर जवानी है।।

कभी प्रौढ़ता का कदम
कभी हार जीत का परचम,
कभी जिंदगी की खूबसूरत कहानी है
इसकी सबपे मनमानी है।
एक दौर जवानी है।।

कभी छूटता आँगन
कभी पकड़ता कफ़न,
कभी आंखों का बहता पानी है
इसकी सबपे मनमानी है।
एक दौर जवानी है।।

कुछ जूझ गए
कुछ बुझ गए,
कुछ तो इससे रूठ गए
पर इसने कहाँ सबको मनानी है।
इसकी सबपे मनमानी है
एक दौर जवानी है,
सबको आनी है
आकर चली जानी है।
एक दौर जवानी है।।

                                          :- संदीप प्रजापति

( ऊर्जा, उल्हास और उत्तेजना से भरी जवानी का
हम के जीवन में प्रवेश होता है, जो जिंदगी को और खूबसूरत बना देती है। जवानी जिंदगी को एक नए आयाम पर पहुंचाने का मौका और साहस प्रदान करती है। जो व्यक्ति इसका सही इस्तेमाल कर ले जाता है, वो जीवन में सफल हो जाता है और जो इसका इस्तेमाल केवल कामना पूर्ति के लिए करता है, वो स्वयं अपना नाश करने का रास्ता खोज लेता है।)

Friday 25 June 2021

ये बारिश...


                               ये बारिश...

किसी को हंसाती है
किसी को रुलाती है,
किसी को अपनों की याद दिलाती है
ये बारिश जाने क्या क्या खाब दिखाती है।

किसी के आँशुओं को धोती है
किसी के साथ साथ रोती है,
किसी को सपनों से मिलाती है
ये बारिश जाने क्या क्या खाब दिखाती है।

किसी को प्यार में भीगाती है
किसी को गमों में डुबाती है,
किसी को बूँदों से रिझाती है
ये बारिश जाने क्या क्या खाब दिखाती है।

किसी का दिल दरिया कर आती है
किसी का समंदर भी सूना कर जाती है,
किसी को चंचल नदियों सा बहाती है
ये बारिश जाने क्या क्या खाब दिखाती है।

किसी को धानी चुनरिया ओढ़ाती है
किसी को जीते जी कफन चढ़ाती है,
किसी का पतझड़ भी सावन कराती है
ये बारिश जाने क्या क्या खाब दिखाती है।
ये बारिश जाने क्या क्या खाब दिखाती है।।

ये बारिश ही तो है
जो सब कुछ याद कराती है, जो हमको रुलाती है।
ये बारिश ही तो है
जो फिर से एक आश जगाती है, जो तुमसे मिलाती है।



(आशा है आप सब के जीवन में सदा प्रेम की बारिश होती रहे। ठाकुर जी सबको प्रेम प्रदान करें। जैसे धरती से उठी पानी की बूंद ,बारिश के रूप में फिर से आ धरती में मिलती है। वैसे ही ईश्वर का दिया जीवन ईश्वर में प्रेमपूर्वक मिलें।)
             🙏राधे राधे🙏




Sunday 20 June 2021

Father's Day

 

FATHER'S DAY

            जैसा कि हम जानते हैं आज Father's Day है, एक ऐसा दिन जो जग के सारे पिताओं को समर्पित है। वैसे तो माता-पिता के लिए कोई एक दिन होना काफी नहीं इनके तो होने से ही सारे दिन है। फिर भी जैसे ईश्वर सर्वस्व होते हुए भी एक विशिष्ट दिन पर अत्यधिक पूजे जाते हैं। वैसे ही आज के युग में माता- पिताओं का सम्मान करने के लिए एक विशिष्ट दिन का होना भी आवश्यक है, ताकि इन्हें भरपुर सम्मान और स्नेह मिल सके।
         पिता वो शख्स है जिसने हमें अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया, जिसने हमें चलना, दौड़ना गिरना और गिर कर फिर उड़ना सिखाया। पर हार मानना कभी न सिखाया। पिता घर की वो छत है जिसके सायें में सब महफूज है। पिता का होना जैसे आँगन में नीम का होना ऊपर से कड़वाहट लेकिन बहुत फायदेमंद। पिता नारियल के उस फल के समान है जो बाहर से तो बहोत कठोर दिखता है, लेकिन भीतर से बिल्कुल मुलायम होता है। पिता के लिए ऐसी कई उपमाएँ भी कम पड़ जाए। पिता की हर किसी के जीवन में बहुत ही अहम भूमिका होती है। पिता जीवन का आधार है, पिता जीवन का सार है।
        पिता का न होना जैसे छत के बिन घर का होना, जिसे न जाने कब कोई लूट ले। पिता का न होना परिवार को सामाजिक और आर्थिक रूप से झंकझोर देता है।

एक शेर है वो
मैं उसके कदमों की आहट हूँ,
क्या लिखूँ मैं उसके लिए
मैं खुद ही जिसकी लिखावट हूँ।

बाप को गले लगाने के लिए
बेटे को उस लायक बनना पड़ता है,
इसी  एक तमन्ना के लिए
हर रोज खुद से लड़ना पड़ता है।

:- SANDEEP PRAJAPATI


(पिता के विषय में उत्पन्न सारी भावनाओं को लेख में उतार देना आसान नहीं फिर भी कुछ कोशिश की है।आप भी अपने विचारों को, पिता के लिए अपनी भावनाओं को हमारे साथ अवश्य सांझा करे। आपकी प्रतिक्रिया इन्तजार रहेगा।)


बेबाक मोहोब्बत

                         बेबाक मोहोब्बत

वक्त दर वक्त बीतता गया और
मोहोब्बत कुछ यूं गहरी हुई है,
तोड़कर सारे बन्धनों को
रूह ये मेरी तेरे लिए ही बावरी हुई है।

काटे तुझ बिन जो  पल
अब फिर हो न वो दुबारा,
बिछड़े जो अब की तो
छीन लाऊं रब से तुझको ओ यारा।

जमाने के रोके न रुकूँ
तोड़कर बन्धन मज़हबों के,
इस दुनिया में न सही
तो आ मिलूं जहाँ में ख्वाबों के।

मुझमें मेरे राम बसे
तुझमें तेरे ख़्वाजा,
मोहोब्बत से सजी रहे हमारी ये दुनिया
कभी न बंद हो चाहतो का ये दरवाजा।

जिंदगी के हर मोड़ पर साथ तुम्हारा हो।
हाथों में मेरे बस हाथ तुम्हारा हो।।

                                                                                 :- Sandeep Prajapati


To join me on



 





 

Saturday 19 June 2021

माथेरान हिल स्टेशन

   

    क्या कहा...आपको भी पहाड़ों, वादियों,घाटियों और प्रकृति से प्रेम है। तब तो आप बिल्कुल सही लेख पढ़ रहे हैं। आइए मैं आपको ले चलता हूँ ऐसी ही एक पहाड़ी पर जहाँ से लौट के आने को आपका जी बिल्कुल भी नहीं करेगा। अरे हाँ हाँ भाई है ऐसी भी एक जगह है। आज मैं आपको ले चल रहा हूँ महाराष्ट्र के माथेरान हिल स्टेशन , आइए चलते हैं।


         "माथेरान" जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट होता है, 'पर्वतों के माथे पर बसा अरण्य'।  एक ऐसा प्राकृतिक क्षेत्र जिसके अनुभव से आपका चित्त एकदम शांत और प्रसन्न हो जाए। माथेरान महाराष्ट्र राज्य के रायगढ़ जिले में स्तिथ है और यहाँ का सबसे निकटतम रेल्वे स्टेशन नेरल है। मुम्बई और पुणे से सटे होने के कारण इन महानगरों में बसे शहरी लोगों के लिए सप्ताहांत छुट्टियां मनाने के लिए माथेरान एक लोकप्रिय स्थल है। शहरों की भागदौड़ भरी जिन्दगी से दूर सुकून के कुछ पल बिताने के लिए माथेरान बिल्कुल उपयुक्त विकल्प है।


         नेरल तक आप ट्रेनों या अपने निजी वाहनों से आ सकते हैं। मगर हाँ इसके आगे का सफर आप किसी भी प्रकार के वाहन से नहीं कर सकते हैं। ऐसा इसलिए ताकि वाहनों के प्रदूषण से यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता और वातावरण खराब न हो। नेरल से आगे हिल स्टेशन की ओर जाने के लिए आप पैदल, घोड़ागाड़ी, रिक्शा या यहाँ की सुप्रसिद्ध टॉय ट्रेन का इस्तेमाल कर सकते हैं। टॉय ट्रेन जो कि अपनी खूबसूरती और यादगार यात्रा के लिए जानी जाती है। धीमी गति से आगे बढ़ती यह ट्रेन आपको पूरे हिल स्टेशन पर चढ़ती उतरती नजर आ जाएगी। जिसमें बैठकर आप आराम से खूबसूरत प्राकृतिक नजारों का लुत्फ उठा सकते हैं। माथेरान में प्रवेश करते ही यहाँ का वातावरण और शुद्ध हवा मन को ताजगी और स्फूर्ति से भर देता है।
           वैसे तो इस हरे-भरे हिल स्टेशन पर साल भर पर्यटकों का तांता लगा रहता है। लेकिन यहाँ इसकी बाँह में  आने का सबसे अच्छा मौसम हैं मानसून यानि की बरसात। बरसात के दिनों यहाँ चारों तरफ हरियाली, घाटियों में फैला कोहरा, हवा में तैरते बादल और भीगा-भीगा सा मौसम एक अलग ही समाँ पैदा करते हैं। बरसात के दिनों में यह स्थान और भी सुहावना हो जाता है।
          एक बार माथेरान हिल स्टेशन में प्रवेश कर लेने के बाद आप खुद को ही प्रकृति  के सबसे करीब पाएंगे। जहाँ तक नजर जाए वहाँ तक बस दूर तक फैले ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और चारो तरफ हरियाली ही हरियाली नजर आती है। पहाड़ों के पास बने गणपति जी की प्रतिमा भी काफी लोकप्रिय और देखने योग्य है।  यहाँ की खूबसूरती का आनंद लेने के लिए यहाँ पर कई सारे दृश्य स्थल हैं। जहाँ से आप पूरी की पूरी घाटी को एक अलग ही रोमांच के साथ देख सकते हैं और वादियों में फैली सुंदरता को आंखों में बसा सकते हैं। इनमें से कुछ दृश्य स्थल काफी दुर्लभ है जहां का नजारा आपको कहीं और नहीं मिलेगा।
        मैं आपको ऐसे ही कुछ दृश्य स्थलों के बारे में बताता हूँ। जैसे कि माउंट बेरी स्थल यहाँ से आप नेरल से आती हुई ट्रैन का दृश्य देख सकते हैं। पहाड़ों पर हरियाली के बीच से घूम-घूम कर आती ट्रैन का दृश्य वाकई अभिभूत कर देता है। ऐसे ही एक है हनीमून पॉइंट यहाँ से घाटी का विहंगम दृश्य दिखाई देता है, जो कि अविस्मरणीय है।
             पेनोरोमा पॉइंट  यहाँ से उगते सूरज को देखते ही बनता है। पेनोरोमा पॉइंट से सूर्योदय के दृश्य देखना बेहद ही सुंदर और काल्पनिक है। वैसे ही यहाँ से सूर्यास्त का नजारा भी बहुत नाटकीय और मनोरम होता है।
                वन ट्री हिल पॉइंट, हार्ट पॉइंट, मंकी पॉइंट, पोर्क्युपाईन पॉइंट, रामबाघ पॉइंट, खंडाला पॉइंट, लुईसा पॉइंट  इत्यादि पॉइंट्स ये सारी जगह यहाँ की खूबसूरती को निहारने केे सबसे के अच्छे स्रोत हैं।
                  और हां एको पॉइंट  तो और भी आकर्षक है यहाँ से आप अपनी ही ध्वनि की प्रतिध्वनि वादियों से टकराकर लौटते हुए सुन सकते हैं। लव पॉइंट , हार्ट पॉइंट, हनीमून पॉइंट और एको पॉइंट प्रेमी जोड़ों में काफी लोकप्रिय दृश्य स्थल है। मंकी पॉइंट पर तो आप बन्दरों की भरमार देख सकते हैं। बन्दरों के अलावा यहाँ पर  खच्चर, घोड़े, हाथी इत्यादि प्राणी भी पाए जाते हैं। यहाँ आप घुड़सवारी का भी आनंद ले सकते हैं। इसके अलावा एलेक्सजेंडर पॉइंट, लिटिल चौक पॉइंट, ओलंपिया रेसकोर्स, लॉर्ड्स पॉइंट इत्यादि स्थानों पर जाकर प्रकृति की खूबसूरती का एहसास कर सकते हैं। प्रकृति प्रेमियों के लिए यह स्थान किसी स्वर्ग से कम नहीं है।
                 और तो और यहाँ की सबसे खूबसूरत जगह शारलेट लेक  अपने अगल-बगल हरियाली लिए हुए, पानी से लबालब भरी हुई यहाँ की खूबसूरती को और निखार देती है। इस झील का नजारा और इसके पास बैठने का सुकून काफी आनंददायक है।
           इतनी खूबसूरत जगह से किसी का भी वापस जाने को मन नहीं करता। इसीलिए यहाँ पर ठहरने की भी व्यवस्था है, जो कि किफायती दरों पर उपलब्ध होती है। दिन भर का थका व्यक्ति इन होटलों में रात्रि विश्राम कर सकता है और पुनः सुबह प्रकृति की गोद में जग कर प्रकृति को जी सकता है। वैसे भी एक दिन में इस जगह को जी पाना संभव नहीं है इसीलिए यहाँ रुकने की सुव्यवस्था है।
            और फिर अंत में न चाहते हुए भी जब लौटने का वक्त हो जाए। फिर से वही रोजमर्रा की भागदौड़ भरी जिंदगी बुलाए तो लौटना पड़ता है। मानस में अनेकों स्मृतियाँ लिए अलविदा कहना पड़ता है।

बैठे हो किस सोच में, आइए माथेरान।
कुछ पल जी लो, प्रकृति की गोद मे।।

स्रोत:- स्वानुभव एवं इंटरनेट

(इस लेख में व्यक्तिगत विचार और अनुभव साझा किये गए हैं। किसी को भी कोई सुझाव देना हो, कोई त्रुटि बतानी हो या कोई और सहायता करनी हो तो आपका स्वागत है।)

Friday 18 June 2021

आकर मेरी पीठ थपथपाना...

आकर मेरी पीठ थपथपाना...


साथ मेरे उड़ान न भर  सको,

मत भरना।

मैं अकेले उड़ान भर लूँगा,

मुझे आसमाँ छूना है।

मैं बिन पंख ही उड लूँगा...

हाथ मेरा थाम न चल सको,

मत चलना।

मैं अकेले ही चल लूँगा,

ईश्वर का दीया हूँ।

मैं बिन तेल ही जल लूँगा...

मंजिल मेरी न बन सको,

मत बनना।

मैं खुद ही मंजिल बन लूँगा,

अंधेरों का मुसाफिर हूँ।

मैं बिन पांव ही दौड़ लूँगा... 

रास्ते के कांटे मेरे न बीन सको,

मत बीनना।

मैं खुद ही चून लूँगा,

सपनों का सौदागर हूँ।

मैं बिन आंख ही ख्वाब बून लूँगा...

मुफ़लशी में मेरे न आ सको,

मत आना।

मैं खुद ही पार पा लूँगा,

वीरों का वंशज हूँ।

मैं  बिन अनाज घास की रोटी खा लूँगा...


दुख के दिनों में न सही

दुख मैं अकेला ही काट लूँगा,

मगर सुख में तो आ सही

सुख मैं सबमें बाँट लूँगा।

मत आना मेरे संघर्षों में

जो गिरू मैं तो मत उठाना,

मगर आ जाना मेरे उत्कर्षों में

आकर मेरी पीठ थपथपाना।

आकर मेरी पीठ थपथपाना।।


                                               :- संदीप प्रजापति





Thursday 17 June 2021

प्राण बिन एक देह छोड़ गई हो...

प्राण बिन एक देह छोड़ गई हो...


वो मन्दिर के कायदे

वो जन्मों जन्मों के वायदे,

वो साथ होने की रसमें

वो सच्ची झूठी कसमें।

सब कुछ तो तोड़ गई हो,

प्राण बिन एक देह छोड़ गई हो।

वो रिमझिम सी बरसातें

वो अधजगी सी रातें,

वो कदमों की आहट

वो बाहों की चाहत।

सब कुछ तो तोड़ गई हो,

प्राण बिन एक देह छोड़ गई हो।

वो साँसों का तेज होना

वो बालों की छांव में सोना,

वो कानों की बाली का घूमना

वो होंठों की लाली का चूमना।

सब कुछ तो तोड़ गई हो,

प्राण बिन एक देह छोड़ गई हो।

वो नजर भर देख लेने की जिद

वो बगैर आस की एक उम्मीद,

वो पाने की फरमाइश

वो  छूने की ख्वाहिश।

सब कुछ तो तोड़ गई हो,

प्राण बिन एक देह छोड़ गई हो।

प्राण बिन एक देह छोड़ गई हो।।

                                                 :- संदीप प्रजापति






Tuesday 1 June 2021

मरीन ड्राइव

मरीन ड्राइव

       "Marine drive is not only a place. It is an emotion."


        हाँ आपने बिल्कुल ठीक पढ़ा। मरीन ड्राइव यह मात्र एक जगह नहीं है यह तो मुम्बईवासियों के लिए एक पूर्ण भावना है। एक ऐसी भावना जिसके अंत का पता ही नहीं। एक ओर विशाल समुद्र तो दूसरी ओर गगनचुंबी इमारतों के बीच बसा यह रास्ता अपने भीतर न जाने कितनी ही कहानियाँ और भावनाएँ समेटे हुए है। दिन-रात समंदर के थपेड़ों को झेलते हुए और अपनी भूजाओं पर आकर्षक इमारतों, होटलों और अस्पतालों को थामे हुए ये कभी नहीं थकता। न जाने कितनी मोटरगाड़ियाँ प्रतिदिन इस पर से गुजरती है पर इसने कभी टिस न भरी। कई दुर्घटनाओं और हादसों को अपने ऊपर झेले हुए आज भी यह हमारे सपनों के शहर की शोभा बढ़ाए हुए है। मानो मुम्बई अगर दिल हो तो उसकी धड़कन मरीन ड्राइव ही है जो हर मुम्बईवासियों में धड़कती है। मुम्बई अगर सपने पूरे करती है तो उन सपनों को देखने का सिलसिला और पूरा करने का हौसला मरीन ड्राइव से ही शुरू होता है। अपनी विशिष्ट शोभा के कारण ही इसे "क्वीन्स नेकलेस" भी कहा जाता है।


         कुछ बच्चे तो अपनी आजीविका के लिए इसी पर निर्भर हैं जो सूंदर-सूंदर गुलाब और गुब्बारे बेचकर अपना जीवन यापन करते हैं। वहीं कुछ लोग यहाँ मोटा पैसा भी कमाते है। खुशी हो, दुख हो या हो कोई उत्सव मुंबईवासी उसे मरीन ड्राइव के साथ जरूर साझा करते है। दीवाली और नए साल जैसा उत्सव तो यहाँ देखने योग्य होता है। बरसात के दिनों में तो मानो ये कोई फिल्मी नजारा ही बन जाता हो। चारों ओर रिमझिम बरसात का आनंद लेते हुए प्रेमी युगल यहाँ कईयों की संख्या में देखने को मिल जाएंगे।



       भोर से लेकर रात्रि तक यहाँ की अपनी एक अलग ही शोभा है जो हर किसी का मन मोह ले। सबेरे का मन को आल्हादित कर देने वाला दृश्य आहाहा ; पंक्षियों की चहचहाहट तो कुछ हवाओं की सरसराहट तो कहीं एक ओर समंदर की खामोशी मनुष्य को आत्मीय शांति का अनुभव करा देती है। योग-व्यायाम करते लोग तो कुछ दौड़ लगाते लोग देखकर मन एक नई ऊर्जा से भर जाता है। यहाँ की चिलचिलाती दुपहरिया भी कुछ कम नहीं है और इस भरी दुपरिया में बर्फ के गोलों, नारियल पानी, पैरों के नीचे गर्म रेत, सिर पर खुले आसमान और मोतियों सी चमकती लहरों का अपना ही आनंद है।



           परन्तु अगर बात की जाए यहाँ की शाम की तो इससे मनमोहक और कुछ नहीं हो सकता। साँझ ढलते ही मोटर गाड़ियों की सरपट दौड़ और लोगों की भीड़ से यह पूरी तरह भर जाता है। मानों कोई उत्सव सा हो। मरीन ड्राइव पर बैठे हुए धीरे-धीरे ढलते सूरज को निहारना, गुलाबी शाम को महसूस करना, समुद्री लहरों से निर्मित मधुर संगीत का रसपान करना और शीतल हवाओं को चेहरे से छूकर गुजरते देना एक बेहद सुखद अनुभव प्राप्त करवाता है। ऐसे सुखद दृश्य को अनुभव करने के लिए यहाँ पर प्रेमी जोड़ों का उमड़ना तो लाजमी ही है, जो अपने प्रेम की सार्थकता के लिए प्रकृति के इस प्रेमलीला को देखने और समझने की कोशिश करते हैं कि कैसे दिन भर का आग बबूला सूर्य शाम होते ही शांत समंदर में जा मिलता है, कैसे समंदर अपनी बाहों को पसारे सूर्य को अपने हृदय में समाहित कर लेता है। कुछ इसी तरह प्रेमी जोड़े भी प्रेम में समाहित हो जाने की कामना करते हुए यहाँ आते हैं और इसका आनंद लेते हैं।



    हाँ तो इसी तरह कुछ सपनों के सौदागर जुझारू लोग जो केवल अपने सपनों के लिए जीते हैं, वे भी इसी सुहानी शाम का अनुभव अपने अंदाज में करते हैं। उनके लिए सूर्य का समंदर को पाना अपने जीवन के लक्ष्य को पाने के समान होता है। वे खुद को सूर्य और समंदर को अपना जीवन लक्ष्य मानकर कर्मपथ पर चलने का सपना देखते हुए इस सुहानी शाम का आनंद लेते हैं।


          यहाँ की रात तो और भी रोमांचक होती है, क्योंकि कहा जाता है कि यह शहर कभी सोता नहीं है। रात में सड़कों किनारे जगमगाते सैकड़ों लाइटें  आसमान में टिमटिमाते सितारों से प्रतीत होते हैं जैसे कि कोई सितारा बिल्कुल ठीक हमारे सिर के ऊपर ही आ चमका हो। तेज रफ्तार गाड़ियों का शोर और ठंड बहती हवाओं का जोर अच्छे-अच्छे सूरमाओं के भी कँपकँपी छुड़वा दे। रात्रि के एक पहर के बाद मन्द हवाएं ,समंदर की हल्की आवाज़ और कुछ सन्नाटा मन को सुकून का आभास करवाता है और दिन भर के थकान को मिटाता है। कुछ इस तरह एक पूरा दिन मरीन ड्राइव पर आनंदमय बिताया जा सकता है।


   हालांकि फिलहाल प्रतिबंधित होने के कारण यहाँ की शोभा में कुछ कमी जरूर आ गयी है लेकिन आशा करता हूँ कि जल्द ही हालात सामान्य होंगे और हम सभी ये आनंद पुनः भोग पाएंगे।


(कोई व्यक्ति इस लेख से सम्बंधित अपना व्यक्तिगत अनुभव, सुझाव, विचार या मार्गदर्शन देना चाहे तो उसका सहृदय स्वागत है।)

Image Source :- Internet and Self Clicked

Sunday 9 May 2021

माँ

                                     माँ
      
कहा जाता है,
माँ के होने से ही दुनिया की सारी खुशी होती है,
पर उनका क्या जिनकी माँ ही नहीं होती है।
हाँ ये सच है कि हम सब के जीवन में माँ का एक अहम हिस्सा होता है, या यूं कहें कि माँ के बिन जीवन एक बेजान सा किस्सा होता है। माँ के होने मात्र से जीवन की सब तकलीफें दूर हो जाती हैं। 
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धुंधले जीवन में चमकता एक दर्पण जैसी माँ
घोर अंधेरे में भी आशा की एक किरण जैसी माँ
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माँ बिन घर का हर कोना सुना
माँ बिन जीवन में दुख दो गुना
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जीवन के हर पल में दुख और अपमान को पिए है,
सदा वन्दनीय है वो सन्तान जो माँ बिन जिए है।
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माँ की ममता हर किसी को नसीब नहीं होती।
पर नसीब उनका भी होता है,
जिनकी माँ नहीं होती।
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सिर रख गोद में माँ के 
हर कोई चैन की नींद सो नहीं पाता ,
हर किसी की माँ होती है
पर हर कोई माँ का हो नहीं पाता।
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जीवन में माँ का न होना 
जैसे सांस बिन प्राण का होना
जैसे जीव बिन ब्रह्मांड का होना
जैसे जल बिन मछली का होना
जैसे फूल बिन तितली का होना
जैसे आत्मा बिन कंकाल का होना
जैसे परमात्मा बिन संसार का होना
जीवन में माँ का होना सब दिन चांदी सोना
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(प्रत्येक के जीवन में माँ के इतने पहलू होते हैं कि माँ पर किसी एक तरह से लिख पाना नामुमकिन सा लगता है।)


Saturday 1 May 2021

पहला प्यार

 


♥️ पहला प्यार ♥️


     
           पहला प्यार एक ऐसा शब्द जिसे सुनते ही जेहन में कुछ हो सा जाता हो मानो रगों में रक्त दोगुनी रफ्तार से दौड़ गया हो, दिल की धड़कनें तेज हो गयी हो और सांसे अटक सी गयी हो और फिर अचानक से आंखों के सामने एक ऐसा चेहरा आ जाना जिसे हम चाहकर भी न भूलना चाहे। 
           पहला प्यार हर इंसान के जीवन में एक खास एहमियत रखता है, चाहे वो किसी भी उम्र में हुआ हो। पहले प्यार की वो बचकानियाँ, नादानियाँ और वो फुले न समाने की भावना भला कौन बिसर सकता है। पहले प्यार का अनुभव होते ही खुद को सातवें आसमान पर देखना, चाँद - तारों से बातें करना और मौसम का अत्यधिक सुहाना होना ये सब तो पहले प्यार को और सुखद बनाती है। पहला प्यार चाहे जीवन भर साथ रहे या न रहे मगर उसकी वो मीठी सी यादें जरूर जीवन भर साथ रहती हैं और जीवन को एक नया ही आनंद प्रदान करती रहती है।

Monday 1 March 2021

प्रेम और समर्पण

                एक लड़का था जो कि अपनी परेशानियों में ही अकेला मस्त था। उसे अकेलेपन में ही खुशी मिलती, दुनिया के झमेलों से वो दूर ही रहता। प्यार, इश्क़,मोहोब्बत की कहानियाँ उसे  पसंद तो बहुत थी पर खुद ही खुदको इन सब से बहुत दूर रखता था। डरता था वो खोने से व्यक्ति को नहीं अपने अंदर निहित प्रेम को खोने से। इसीलिए उसने खुद को किसी के प्रेम में पड़ने और किसी को प्रेम करने से बचा के रखा था। 
            एक सामान्य और अच्छा जीवन बीत रहा था। तभी उसे उसकी एक सहपाठी से प्रेम हो जाता है। उसने अपने प्रेम का इज़हार भी किया और उसे ये जानकर अत्यधिक प्रसन्नता भी हुई की वो भी उससे प्रेम करती है। दोनों का प्रेम प्रसंग काफी अच्छा चल रहा था और दोनों ही बहुत ज्यादा खुश और आनंदित थे। एक सामान्य प्रेमी जोडे की तरह दोनों एक दूसरे से बेहद प्रेम करते। परन्तु ये सब कुछ ज्यादा दिनों तक न चला धीरे-धीरे  लोगों को पता चलने लगा और उन पर पाबन्दियाँ लग गयीं। अब न वो एक दूसरे से बात कर सकते और न मिल ही सकते। कुछ समय तक दूरियाँ ऐसे ही बनी रही है।
                   इसी बीच एक दिन एकाएक लड़के को पता चलता है कि उसकी प्रेमिका ने किसी और से सगाई कर ली है और कुछ ही समय में शादी भी हो जाएगी। वह तो एकदम से चौंक कर ही रह गया। उसे कुछ नही सूझता की अब वो क्या करे। उसकी हालत जल बिन तड़प रहे किसी मछली सी हो गयी। बुरी हालत तो उसकी तब होती जब वो अपनी प्रेमिका को अपने सामने ही देखता लेकिन उससे बात तक नहीं कर सकता ताकि उसे लोकलाज से बचा सके। प्रेमिका ने भी अपना किरदार बखूबी निभाया एक बेदर्दी की तरह उसे खूब तड़पाया। इन सब से सहम कर लड़के ने इसे ही अपना भाग्य समझ लिया और मन ही मन अपनी प्रेमिका की खुशी की कामना करते हुए अपने भीतर निहित ईश्वरीय प्रेम का गला घोंट दिया और खुद को प्रेम में हारा हुआ व्यक्ति समझने लगा।


(दोस्तों कहानी छोटी जरूर है परंतु सन्देश गहरा है और मुझे पूरा विश्वास है कि आप लोग जरूर समझोगे।)

(जीवन में हमेशा जरूरी नहीं कि हम जिससे प्रेम करते हैं वो व्यक्ति भी हमसे उतना ही प्रेम करे जितना कि हम उससे करते हैं या मान  लो की वो करता भी है फिर भी ये तो जरुरी नही की वो ही आपका जीवनसाथी हो या वो जीवन भर आपका साथ निभाए। और अगर सच्चा प्रेम पा लेना इतना ही आसान होता तो भगवान श्रीकृष्ण राधारानी को न पा लेते क्या। इसीलिए हमें मान लेना चाहिए कि ईश्वर के कुछ फैसले हमें वर्तमान में तो बहुत दुख देते हैं पर वो हमारे भविष्य के लिए एकदम ठीक होते हैं।)

(दोस्तों आपसे एक सवाल आपको क्या लगता है उस लड़के ने ठीक किया या फिर उसे अपना प्रेम पाने के लिए लड़की से वाद-विवाद करना चाहिए था ताकि हंगामा हो और उसकी शादी में बाधा पड़ सके। दोस्तों जवाब जरूर दीजियेगा और हाँ कमेंट में अपना नाम लिखना मत भूलना जिससे मैं आपको जान सकूँ।)

धन्यवाद🙏
राधे राधे
जय श्रीकृष्ण

Thursday 7 January 2021

तू भी जीत जाएगा...

 तू भी जीत जाएगा...


क्या पता था कि 
जीवन में एक दौर ऐसा भी आएगा ,
न हम किसी के अपने रहेंगे
और न कोई हमारा सगा रह जाएगा।

जिंदगी की उठा पटक में 
कोई दोस्त कोई साथी काम न आएगा ,
सुख दुख की सौगात में
जीवन का ये सफर ऐसे यूँही गुजर जाएगा।

लाख घना अंधेरा हो
फिर एक नया सबेरा जरूर आएगा,
रख हौंसला इस पल
इन उलझनों से क्या तू हार जाएगा।

एक दिन ऐसा होगा
तू भी इतिहास रच आएगा,
लोगों की भीड़ से परे
जग में तू भी जाना जाएगा।

फिर तू मुस्कुराएगा।
फिर तू जीत जाएगा।।
                                             
                                              :- संदीप

पुरुष

                            पुरुष                 पुरुषों के साथ समाज ने एक विडंबना यह भी कर दी की उन्हें सदा स्त्री पर आश्रित कर दिया गया। ...