Saturday 10 December 2022

पंक्तियाँ...

सच्चाई अपनी सूरत की है पता,
फिर भी आईने में खुद को सँवार लेता हूँ...

सच सुनकर रिश्ते सारे मर न जाए,
इसीलिए कई दफा लफ्ज़ अपने सुधार लेता हूँ...

कल की फ़िकर नहीं मुझको,
जीवन यूँ ही आज में गुजार लेता हूँ...

कभी चुकाऊंगा कर्ज़ तेरा जिंदगी,
आज मोहलत में चंद साँसें उधार लेता हूँ...

रातें ये जाड़े की जो कटती नहीं,
'संदीप' नाम किसी हमनशीं का पुकार लेता हूँ...

:- संदीप प्रजापति

Monday 21 November 2022

तुम आना...

                       तुम आना...

मैं नहीं जानता तुम कहाँ हो और कब आओगी।
मगर मैं इतना जानता हूँ तुम जरूर आओगी।
और जब तुम आओगी हर वो खुशी अपने साथ लाओगी।
जिसकी प्रतीक्षा मैनें कई सालों की है।
तुम आओगी ऐसे जैसे सूखे पेडों पर पत्ते आते हैं।
जैसे सुने आसमां पर बादल छाते हैं।
जैसे बंजर खेतों में हरियाली आती है।
जैसे भोर भए उजियाला आती है।
तुम सर्द रातों की गर्माहट बनकर आना।
तुम मेरी खामोशियों की आहट बनकर आना।
तुम आना तुम आना जैसे कोई कविता की पंक्ति आती है।
तुम आना जैसे शुद्ध विचारों की संगति आती है।
तुम बरसों के युद्ध की शांति बनकर आना।
तुम जीवन में प्रेम की क्रांति बनकर आना।
तुम आना... तुम आना... सुनो तुम आना जरूर।
तुम सारी उम्मीदों को धूमिल न करना।
तुम आशाओं के सफर को नाकामयाबी की मंजिल न करना।
जो तुम न भी आओ सो लड़ाके बुजदिल न करना।
जो तुम न भी आओ सो लड़ाके बुजदिल न करना।।
                                                                  :- संदीप प्रजापति

( संसार में प्रत्येक व्यक्ति को किसी की प्रतीक्षा है, और वह उसे पाने की जद में लगा है। कोई प्रेम की प्रतीक्षा में है तो कोई सफलता की। मेरी यह कविता ऐसे हर व्यक्ति को समर्पित है जो जीवन में प्रतीक्षा के दौर से गुजर रहा है और आस लगाए बैठा है कि तुम आओगी...अरी वो प्रेमिका , अरी वो सफलता तुम आओगी जरूर; अभी मैंने हिम्मत नहीं हारी है।)

Sunday 23 October 2022

मिट्टी को जब-जब चाक धरा...


              मिट्टी को जब-जब चाक धरा...



मिट्टी को जब-जब चाक धरा,
रच बर्तन में आकार गढ़ा,
बर्तन मिट्टी से बचा धरा,
क्यों मैं कुम्हार लाचार पड़ा?

क्या याद तुम्हें वह गुल्लक है,
पीते लस्सी वह कुल्हड़ है,
रुक पीते पानी मटके का,
क्या याद तुम्हें वह नुक्कड़ है?

अब याद न तुमको है आती,
थी चाय जो कुल्हड़ में भाती,
मिट्टी की खुशबू को लाती,
वह प्यार धरा का बतलाती। 

वह शीतल जल देने वाली,
अब कहाँ सुराही चली गयी,
जगमग मिट्टी के दीपक से,
वह राम दिवाली कहाँ गयी?

अक्सर रोता हूँ रातों में,
अपने पुश्तैनी कामों में,
काम न अब यह काम आता,
त्योहारों पर बस दीप बनाता,

बेच न उनको पूरा पाता,
रौनक झालर सी दे पाता,
हृदय प्रश्न अब अक्सर आता,
क्यों मिट्टी के दिये बनाता?

इस जग से मैं हूँ बहुत लड़ा,
कर रहा प्रतीक्षा हूँ खड़ा,
फिर से मुझ तक तुम आओगे,
मिट्टी के दिये जलाओगे!

- कवि बीरेन्द्र कुमार

Copied

(इन मार्मिक पंक्तियों को अपने ब्लॉग पर कॉपी करने से खुद को रोक न पाया।)

कुम्हारी एक कला थी, हमसे छूट गई।
ख्वाइशें माटी की, माटी में ही टूट गई।।
:- संदीप प्रजापति

Friday 26 August 2022

मेरी पहली किताब : एहसासों की जुबां

 मेरी पहली किताब : एहसासों की जुबां


            'एहसासों की जुबां'  यह मेरी पहली ही किताब है। जिसे शाश्वत पब्लिकेशन  के द्वारा प्रकाशित की गई है। मैं पूर्ण आदर और प्रेम सहित शाश्वत पब्लिकेशन परिवार का धन्यवाद करना चाहूँगा। जिन्होंने मुझे यह अवसर प्रदान किया और मेरे विचारों को सचमुच एक अमूर्त शाश्वत स्वरूप दिया।
          'एहसासों की जुबां' इस किताब में मैंने संघर्ष, प्रेम, विचारों, कल्पनाओं और भावनाओं जैसे मानवीय गुणों को एकत्रित करके कुछ काव्य और पंक्तियाँ संग्रहित की हैं। जो मैं आप ईश्वर समान पाठकगण को भोग स्वरूप अर्पित करना चाहूँगा। मैं चाहूँगा की आप केवल इसके रस का आस्वादन करें और मुझ अज्ञानी से कोई भूल हुई हो तो क्षमा कर दें।
             चूँकि यह मेरी पहली ही किताब है, मुझे प्रकाशन का अधिक ज्ञान और अनुभव भी न था। इसीलिए मैं चाहूँगा की कोई त्रुटि हो तो अबोध जानकर आप सभी लोग मुझे क्षमा कर देंगे और अपना प्रेम और विश्वास प्रदान करेंगे।
धन्यवाद!

 
                                                        आपका,
                                                        संदीप प्रजापति



   

Sunday 24 July 2022

खुशियों के मौसम हुआ करते थे,
न जाने कहाँ से ये बदली छा गई।

अभी घर से कुछ दूर चला ही था,
राह में फिर एक नई मुसिबत आ गई।

जिंदगी आसां होती जो हम नादां होते,
हमको ये हमारी समझदारी खा गई।

सफलता हमारे भी कदमों में होती ,
जाना तुमको हमारी नाकामी भा गई।

मोहोब्बत हमारे भी दिलों में होता 'संदीप'
मगर हमसे तो हमारी आवारगी ना गई।

:- संदीप प्रजापति


Wednesday 13 July 2022

जब खुद से प्रेम नहीं हुआ तो दूसरों से कैसे होगा?

     जब खुद से प्रेम नहीं हुआ तो दूसरों से कैसे होगा?


       प्यार में गिरने या प्रेम में पड़ने को अंग्रेजी में कहते हैं- फॉल इन लव वास्तव में सच्चा प्रेम हमें गिराता नहीं, वह तो हमारे जीवन को ऊंचा उठाता है। जीवन प्रेम को जीने और प्रेम से जीने के लिए है। हमारे अनुभवों को सुखद और बेहतरीन बनाने के लिए है। देखा जाए तो दैहिक प्रेम स्वार्थी, सीमित और अल्पकालीन होते हैं। जबकि आत्मिक स्नेह निःस्वार्थ और दीर्घकालीन होते हैं। शारीरिक स्नेह या दैहिक संबंध हमें बंधन में डालता है। जबकि रूहानी स्नेह या संबंध हमें सारे सांसारिक कर्म बंधनों से मुक्त कर देता है। रूहानी स्मृति, दृष्टि और वृत्ति हमारे संबंधों को मधुर, सहनशील तथा संपूर्ण बनाती है।

       असल में हम कोई भी संबंध प्रेम देने और पाने के लिए बनाते हैं। प्रेम भावनात्मक पूर्णता का स्रोत है। सच्चा प्रेम हमारे जीवन में प्रगति का मार्गदर्शक बन जाता है। कई बार कोशिश के बावजूद हम प्रेम से वंचित रह जाते हैं। पर जब हम निर्मल प्रेम के चिरंतन स्रोत परमात्मा से अपनी अंतरात्मा जोड़ लेते हैं, तब हमारे जीवन में प्रेम की कोई कमी नहीं रहती। सबसे श्रेष्ठ आत्मिक और परमात्म प्रेम है। इससे प्रेम के मार्ग में आने वाली बाधाएं हट जाती हैं। संकीर्ण विश्वासों से ऊपर उठ कर हम सच्चे प्रेम के वाहक बन जाते हैं। साथ ही, इस प्रेम को महसूस करना और कराना हमारे लिए सहज और स्वाभाविक हो जाता है।

        हम अपने संबंधों के दायरे में निस्संदेह सभी से प्रेम करते हैं। सवाल है कि क्या हम उन्हें बिना शर्त प्रेम करते हैं? शायद नहीं क्योंकि हम अपनी अंतरात्मा के मूल गुण शांति, प्रेम और प्रसन्नता को अनुभव या व्यवहार में नहीं ला पाते हैं। फलस्वरूप जब हमारा मन व्याकुल होता है, तब हम स्थिर मन से उत्तर भी नहीं दे पाते हैं प्यार के बारे में सोचना तो दूर की बात रही। अक्सर हम अपनी दुर्दशा के लिए दूसरों या हालात को दोषी ठहराते हैं। कभी हम दूसरों के लिए जजमेंटल होते हैं। कभी हम किसी को अपनी तरह काम न करते देख नाराज होते हैं। कभी दूसरे हमें स्वीकार नहीं करते। ये सब बातें हमारे प्रेम के प्रवाह में बाधा पैदा करती हैं। तब हम अंतरात्मा के मूल गुण प्रेम का अनुभव करना बंद कर देते हैं, और सामने वाले से उस प्यार को पाने की अपेक्षा करते हैं। हम भूल जाते हैं कि हम अपनी अंतरात्मा से जुड़ कर ही प्रेम के अनंत स्रोत परमात्मा तक पहुंच सकते हैं।

       दूसरी बात, बहुत से लोग केवल अपनी शर्तों पर ही प्रेम करते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि वे इसे बाहर खोजते हैं। असल में प्रेम का अनुभव आपसे ही आरंभ होता है। अगर आप खुद से प्रेम नहीं करते हैं, तो आप के लिए दूसरों से प्यार करना संभव ही नहीं है। जब आप खुद को प्रेम करने लगते हैं, तो उसे दूसरों को देना सहज हो जाता है। तब आप आसानी से मोह, अपेक्षा, स्वामित्व भाव या दूसरों को नियंत्रित करने जैसी प्रेम विरोधी भावनाओं का परित्याग कर पाते हैं। जब मन में अपने और दूसरों के प्रति स्नेह का भाव साफ हो, तो संबंधों में पैदा होने वाली ऊर्जा शुद्ध होती है। तब दया, करुणा और सहयोग जैसी श्रेष्ठ भावनाएं प्रेम का प्रवेश द्वार बन जाती हैं हम दूसरों के प्रेम को पाने की अपेक्षा से हट कर जीवन को बदलने वाली परमात्म प्राप्ति की ओर बढ़ पाते हैं।
:- ब्रह्मा कुमारी शिवानी

(नवभारत टाइम्स के लेख से)

Sunday 10 July 2022

प्रेम रिक्ति

                            प्रेम रिक्ति


पूज्य थी जो सूलोचनी
जाने वो किस ओर चली।
मेरे इस देवालय को
सूना देवहीन छोड़ चली।।

जाने वो किस ठौर चली
शीशा एक दिल तोड़ चली।
रहे खुश आबाद रहे 
मुझ निर्बल का तो राम ही बली।।

उसकी देह से खूबसूरत
उसका मन जाना था।
हाँ हाँ मैंने जाना था 
उसको अपना तन मन जाना था।।

गोल गोल थी गोरी बाहें
रूप और जौबन की वो मूरत।
भूलूँ जग सारा भूलूँ भगवन
जब लखूँ निष्ठुर की मोहनी वो सूरत।।

पूजूँ मैं अब किसको पूजूँ
किसको दूँ मैं प्रेम धूप दीप।
नाम एक उसी का जानूँ मैं
दूजा नाम किसका भजूँ 'संदीप'।।

दोष धरूँ न मैं उसपर
रोष करूँ न मैं उसपर
मेरे तो तुम हो प्रेमनिधि राम
तुमसे अधिक प्रेम करूँ मैं किसपर।

देव दो संबल इतना
उसके संग की यादें बिसरुँ।
रोऊँ सिसकूँ हिम्मत बाँधूं
और फिर मैं हीरे सा निखरुँ।।

जाऊँ जिधर सो कीर्ति हो
इतनी सहज सरल प्रकृति हो।
दे दो निज पग प्रेम प्रभु इतना
मेरे हिए प्रेम रिक्ति की परिपूर्ति हो।।
       
                                             :- संदीप प्रजापति

( प्रस्तुत कविता लेखक के अपने निजी भाव और कल्पना की प्रस्तुति है। पाठक को कोई त्रुटि नजर आए तो अवश्य सुझाव दें। आशा है कि आप मेरी इस कविता को अपना आशीर्वाद और प्रेम देंगें।)

Wednesday 6 July 2022

नर से नारी तक

                          नर से नारी तक...


           घरेलू औरत क्या होती है जानने के लिए आपको जीना होगा औरतों का सा जीवन। आपको अपनी निजी इच्छाओं को मारकर सबके लिए एक बिना मेहनताना वाला मजदूर होना होगा। आपको होना होगा सबकी खुशी का जरिया और सबकी जरूरतों का पिटारा। और हाँ इतना सब कुछ करने के बाद भी निश्चित नहीं कि आप अपने औरत होने पर खरे उतर पाए। 
        पुरुषों के लिए जरूरी है कि वो अपने पुरुषार्थ के बल से अपने भीतर नारीत्व को भी जानने की कोशिश करें। जिस पुरुष ने अपने भीतर बसे नारीत्व को नहीं जाना वो कभी संसार एवं प्रकृति को नहीं जान सकता। वो कभी एक श्रेष्ठ पुरुष कहलाने के योग्य नहीं हो सकता है। जब तक पुरुष अपने में नारीत्व को नहीं जानेगा तब तक न वो अपने सहज भावों को जान सकेगा और न ही अपने दुखों पर स्वछंद रो सकेगा। 
                          :- संदीप प्रजापति

(यह अनुच्छेद लेखक के निजी विचार है। किसी वर्ग विशेष से इसका कोई सरोकार नहीं है।)

Sunday 3 July 2022

इजहार...

                               इजहार...

क्या एक तुम ही हो 
बला की खूबसूरत,
या कोई और सूरत
मैं इन आँखों में नहीं भरता।

बेबाक मैं कह न सका
प्रेम भाव तुमने जाना नहीं,
ठुकरा दो या स्वीकार करलो 
इन बेरुखियों से जीवन नहीं चलता।

यूँ हँसने मुस्कुराने बातें भर
कर लेने से जी नहीं भरता,
दिल तुम्ही को चाहता है
किसी और पर क्यों नहीं मरता।

चाहो न चाहो आजादी है
यूँ तिरछी चाल चलो नहीं,
प्रेम करो सो जीवन दो
यूँ प्रेम में किसी को छलो नहीं।

प्रेम तुम्हे मानता हूँ
सो अब इंतजार कर रहा हूँ,
न चाँदनी रात है न कभी गुलाब दिया
बस कविताओं से इजहार कर रहा हूँ।
                                            :- संदीप प्रजापति

याद आता है...


                      याद आता है...

तन्हाइयों को कहाँ दफनाया जाए,
उसके न होने पर उसका होना याद आता है।

गम न होते तो चेहरे हमारे भी मुस्कुराते,
इन रुसवाइयों में तो बस रोना याद आता है।

रात थी खाब थे नींद थी बस सो न सके,
सहर हुआ तो वो तकिया बिछौना याद आता है।

बस आज ही की तो बात है कल तलक भुला देंगें,
सारी जिंदगी कहाँ किसी को खोना याद आता है।

कलम का रोना कागज भिगोना याद आता है,
'संदीप' उसके जिस्म का हर कोना याद आता है।

:- संदीप प्रजापति

Sunday 29 May 2022

बनारस : एक अद्भुत स्थान

                         बनारस : एक अद्भुत स्थान

           क्या आप कभी बनारस गए हैं? चलिए आज मैं आपको बनारस लिए चलता हूँ। हो सकता है आपमें से कई लोग गए भी हों। तो मैं आज आपकी उस बनारस स्मृति को इस लेख के माध्यम से पुनःजीवित कर देना चाहूँगा।

     बनारस, उत्तरप्रदेश की पावन धरती पर बसा संसार का प्राचीनतम और आध्यात्मिक शहर है। जिसका हिंदू धर्म में विशेष महत्व है और इसका उल्लेख हिन्दू धर्म ग्रन्थों में भी मिलता है। मान्यता है कि बनारस में देह छोड़ने वाले व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्राचीन काल से ही देश विदेश से लोग अपने पूर्वजों का अंतिम संस्कार करने बनारस आते हैं।

            दशाश्वमेध की गंगा आरती, घाटों का लंबा सिलसिला, साधु-संतों का जमघट, मणिकर्णिका की जलती चिताओं की लौ, बाबा काशी विश्वनाथ के जयकारे, सारनाथ की शांति, बनारसी ठाठ, बनारसी भौकाल, बनारसी साड़ी, बनारसी पान, बनारस की सँकरी गलियाँ, ठंडाई, और ऐसे ही न जाने कितने ही मनमोहक दृश्य और भावनाओं का सम्मेलन है ये बनारस। 

            पिछले कुछ वर्षों से राजनैतिक महत्ता बढ़ने से बनारस की चकाचौंध में तो और चार चांद लग गए हैं। जिसने बनारस को प्रगति की ओर अग्रसर करके इस शहर का कायाकल्प कर दिया है। आए दिन राजनेताओं और राजनीतिक पार्टियों का खूंटा बनारस की माटी में गड़ा रहता है। जिससे इसे वैश्विक पटल पर और अत्यधिक मान्यता एवं पहचान मिल रही है।

               आइये हम अपनी यात्रा शुरू करते हैं, बनारस आने के लिए सम्पूर्ण भारत से ट्रेन और हवाई जहाज की सुव्यवस्था है। आप अपनी सुविधा के अनुसार किसी भी तरह यहाँ आ सकते हैं। बनारस आने पर आपको दिन के समय में तो सारनाथ और इत्यादि जगहों पर ही घूम लेना चाहिए। जिससे आप शाम के समय में गंगा जी के घाट पर जा सके और माँ गंगा के दर्शन और स्नान करके खुद को पापमुक्त कर सकें।

                 बाबा काशी विश्वनाथ जी के दर्शन करना अपने आप में ही एक उपलब्धि है। सोने से जड़े बाबा के मंदिर का मनोहर दृश्य देखना हृदय को ही स्वर्णमयी कर देता है। गंगा कॉरिडोर से गंगा जी के दर्शन भी सुलभ हो जाते हैं। रात की जगमग चकाचौंध रोशनी में मंदिर और गंगा जी का दृश्य बहुत ही सुहावना होता है। बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर से लगा हुआ ही ज्ञानवापी मस्जिद भी यहीं पर स्थापित है। जिसे सुरक्षा कारणों से बंद रखा गया था। 

             गंगा जी के किनारों पर बसे प्रत्येक घाटों का अपना एक विशेष महत्त्व है। इन सब घाटों में मणिकर्णिका घाट सबसे महत्वपूर्ण है। जिसमें मृत चिताएं जलाई जाती हैं। माना जाता है कि मणिकर्णिका घाट पर कभी भी चिताओं की अग्नि शांत नहीं होती। यहाँ हमेशा कोई न कोई चिता जलती ही रहती है। इस घाट के पास ही एक प्राचीन मंदिर है जो कि कई वर्षों से झुकी हुई है। फिर भी वह मंदिर उसी अवस्था में बिल्कुल ठीक-ठाक है।
       

    घाटों के इस क्रम में दशाश्वमेध घाट भी प्रमुख है क्योंकि यहीं पर माँ गंगाजी की भव्य आरती होती है। जिसका साक्षी होने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं। गंगा  आरती होने के पश्चात लोग गंगा स्नान करते हैं और गंगा जी का धन्यवाद प्रकट करते हैं। अस्सी घाट और हरिश्चंद्र घाट भी प्रमुख घाट है। राजा हरिश्चंद्र जी के नाम पर ही इस घाट का नाम पड़ा था। आधी रात के वक्त घाट पर बैठ कर केवल अपने भीतर झाँकना और खुद को ईश्वर के समीप पाना ही असली आनंद है। गंगा जी में लहराती छोटी-छोटी नौकाएं मानो किसी इठलाती युवती सी हों जो आपका ध्यान अपनी ओर खींच ही लें।

          बनारस की इसी मनोरमता पर ही तो कई कवियों और लेखकों ने इस पर अपनी कल्पनाओं और अनुभवों से कई काव्य लिख डाले हैं। इसी बनारस के घाट पर बाबा तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस महाकाव्य की रचना की थी। बनारस की आभा में ऐसा जादू है कि यहाँ पर किसी की चेतना का जागृत होना कोई अचरज नहीं। हमारे देश के कई महान विभूतियों का बनारस से अत्यधिक लगाव रहा है।

     हिंदी फिल्म जगत में बनारस पर कई फिल्में चित्रित की गई हैं। कई गीतों के बोल इसी पर आधारित है। संगीत और नृत्य के क्षेत्र में भी बनारसी घराने का विशेष महत्त्व रहा है। इसी बनारस की माटी ने कई दिग्गज कलाकार भी उपजें हैं। गालिब ने बनारस को दुनिया के दिल का नुक़्ता कहना दुरुस्त पाया था। जिसकी हवा मुर्दों के बदन में भी रूह फूँक देती है और जिसकी ख़ाक के जर्रे मुसाफिरों के तलवे से काँटें खींच निकालते हैं। बनारस को एक जगह भर नहीं एक संस्कृति कहा जाता है, जो हमेशा से कला, साहित्य, धर्म और दर्शन के अध्येताओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।

अंत में कुछ पंक्तियाँ:-

सुनो हमसफ़र
चाहे रहो जहाँ,
पर जब भी मुलाकात हो
बस गंगा जी का घाट हो।
होंठ मेरे हो
तुम्हारे ललाट हो,
अनकही एक बात हो
और गंगा जी का घाट हो।
                                      :- संदीप प्रजापति

( बनारस के विषय में लिखना कभी समाप्त होने योग्य नहीं है। लेख को बस इतनी ही भावनाओं में समेटते हुए यहीं रुक जाना ठीक है। लेख के किसी विषय वस्तु में कोई त्रुटि हो तो अवश्य सूचित करें अरबअपने विचार प्रकट करें। आशा करता हूँ कि आपको इस लेख के माध्यम से ही बनारस के जीवंत स्वरूप का दर्शन हुआ है।)

Sunday 8 May 2022

समझदारी या सूंदर नारी

                       समझदारी या सूंदर नारी

जरूरी नहीं है कि हमारा साथी दुनिया का सबसे सुंदर व्यक्ति ही हो। मैं चाहूँगा की जो भी व्यक्ति मेरा साथ चुने वो ज्यादा सूंदर न भी हो तो ठीक है क्योंकि मैं जानता हूँ की मैं भी एक सामान्य मोहनी का व्यक्ति हूँ। इसीलिए किसी इच्छा के प्रति बेहद अपेक्षाएँ रखना जीवन में दुख का कारण हो सकता है। एक हद तक रंग रूप में किसी जोड़े का समान होना भी  जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक है। जहाँ तक बात आती है सुंदरता की, तो मैं मानता हूँ कि समझदारी सुंदरता को मात दे सकती है। एक समझदार साथी किसी सूंदर साथी से कई गुना बेहतर हो सकता है। किसी सूंदर स्त्री का गुलाम होने से एक समझदार स्त्री का जीवनसाथी होना कई गुना बेहतर हो सकता है। मेरी स्त्री दुनिया में सबसे खूबसूरत न हो तो भी ठीक पर मेरे लिए उसका समझदार होना ज्यादा मायने रखता है। उसके पास केवल दुनिया का सबसे खूबसूरत हृदय हो जिससे वो परिवार में सभी का प्रेम पा सके और सबसे स्नेह रखे।

                                                       :- संदीप प्रजापती


नोट:- जिस किसी को दोनों गुण एक ही स्त्री में प्राप्त हो रहा हो वह मेरी इन दकियानूसी बातों पर ध्यान न दे।

( यह छोटा सा लेख मेरे सहित उन सभी भाइयों को समर्पित है जो अप्सरा सी नारी खोज रहे हैं, खुद भले ही कैसे भी हों। एक वक्त तक सभी लड़कों की सोच या चाहत यही होती है कि सूंदर लड़की मिले। परंतु जब इच्छानुसार सुंदरता अपने साथी में नहीं पाते हैं तो जीवन में टकराव की स्तिथि को जन्म दे देते है। ऐसे में हमें हमारी सोच बदलनी होगी और समझदार व्यक्ति को चुनने की सोच विकसित करनी होगी। 
यह लेखक की अपनी व्यक्तिगत विचारधारा है किसी की भावनाएं आहत हुई हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ, कोई सुझाव हो तो प्रतिक्रिया जरूर दें।)

Saturday 7 May 2022

माँ

                                   माँ


   जब भी हम हिम्मत हारते हैं। उदास, हताश या निराश हो जाते हैं। जब भी लगने लगता है कि हम जीवन में असफल हो गए हैं। हम ने सभी के उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। जब थक हार कर बैठ जाते हैं और लगते हैं कोसने जीवन को। तब हम अपनी अम्मा को फोन लगाते हैं। और लगते हैं रोने, जी भर के रोने। काहे से की हमें अम्मा के अलावा ऐसा कोई व्यक्ति नहीं नजर आता जिसके आगे हम रो सके। मां ने कभी रोने से तो माना नही किया, पर वो जान जाती है की बात क्या है। वैसे अम्मा हमारी इसमें कर तो कुछ नहीं सकती पर जाने कौन सी हिम्मत फूँक देती है की सारी मायूसी एक आशा की किरण में बदल जाती है। लगने लगता है की अब सब ठीक हो जायेगा। अम्मा बस इतना कहती है की बबुआ मेहनत करते रहो और कभी हार न मानना जीवन है तो संघर्ष तो होगा ही। उम्मीद न छोड़ना अगर किसी लायक हो जाओगे तो देर सबेर ईश्वर तुमको सफलता भी देंगे और न भी दिए तो इसका मतलब ये नही की तुम काबिल नही हो। वो कहती है की भाग्य में होगा तो सुख भी आएगा और न होगा तो कितने ही बड़े बन जाओगे तो भी सुखी न रह पाओगे। हम नही जानते की अम्मा इतनी सकारात्मकता लाती कहाँ से है, मगर हमें प्रेरणा के लिए किसी और के जीवन को ताकने की जरूरत नहीं पड़ती।

Tuesday 26 April 2022

कुछ लिख दूँ...



                           कुछ लिख दूँ...

1.
कभी-कभी सोचता हूँ कि,
एक कविता बस यूँ ही लिख दूँ।
सारी की सारी तारीफें लिख दूँ,
जुल्फें आँखे होंठ गर्दन और तिल।
सब कुछ स्मृतियों में उतारू ,
और फिर तेरा रूप कागज़ पर रख दूँ।
लिख दूँ दिल की वो सारी बातें ,
जो मैं तुझसे कभी कह ही न पाया।
एक एहसास था दिल में,
जो कभी लबों तक न आया।
पहली मुलाक़ातें तेरी बातें,
मेरा इकरार तेरा इनकार लिख दूँ।
मुझ जैसे कई और हैं चाहने वाले तुम कहती थी
फिर भी लिख दूँ तुमको पहला प्यार लिख दूँ।

2.
याद है वो कोचिंग के दिन,
जब तुम मुझसे मदद लेती थी।
किसी सवाल को हल करने के बहाने,
छुपके से उन गोरे हाथों को छू लेता था।
सच कहता हूँ बस एक वो ही दिन थे,
जब मैं भी किसी को ईश्क़ कर लेता था।
है पता वो बस मतलब के दिन थे,
कुछ पल ही थे पर बेहद हसीन थे।
तुम मुझसे कुछ सवाल सीख लेती थी,
मैं तुमको देख नीत नए ख्याल लिख लेता था।

3.
कई बार खूब व्यस्त रहकर भी,
तुझको अहमियत दी थी।
बेमतलब से एक लगाव को भी,
हमने इतनी खासियत दी थी।
एक झलक तेरी देखने को,
तुझको पढ़ाना पड़ता था।
हाय रे कमबख्त ईश्क़,
नौटंकी उठाना पड़ता था।
पर अब खुशी होती है,
किसी के लिए हम भी अजीज थे।
शायद एक उम्मीद थे मीत थे
कुछ न थे पर हर मतलब में करीब थे।


(कुछ ख्यालों को यूँ ही लिख लेना चाहिए। स्मृतिपटल पर चलते कुछ रंगीन नजारों को शब्दों में पिरोकर एक कविता की माला गूंथ ईश्वर को भेंट कर देना भी भक्ति का ही स्वरूप है।)


Monday 25 April 2022

मैंने देखा है...


                             मैंने देखा है...
मैंने देखा है...
बाप बेटे को दुश्मन होते,
भाई भाई को खून पीते।
सम्बंधो को मरते देखा है,
माँ बेटी को लड़ते देखा है।
रिश्तों में वेहसियत देखी है,
सबकी हैसियत देखी है।
सबने सबको लुटा है,
हर रिश्ता यहाँ झूठा है।
एक टुकड़ा जमीन कुछ रुपये,
और अपनी हवस को ही रटते देखा है।
सारे भौतिक सुखों के लिए,
सम्बंधो की तुरपाई को फटते देखा है।
जवानी को नशे में मस्त देखा है,
जीवन सारा अस्त व्यस्त देखा है।
शिक्षा का अभाव देखा है,
गरीबी का प्रभाव देखा है।
झुग्गी झोपड़ी देखी है,
शैतानी खोपड़ी देखी है।
जीवन के कई रंग देखे हैं,
सच्चे झूठे सारे प्रसंग देखे है।
हंसते हंसते एकदम से रोया हूँ,
खुशियों की तलाश में खोया हूँ।
उम्र छोटी है पर कई धूप छांव देखे हैं,
लड़खड़ाते अपने भी पांव देखे हैं।
कुछ आपबीती है कुछ बितनी है,
जिंदगी एक जंग है और जंग जितनी है।
                                               :- संदीप प्रजापति


(अपनी वेदनाओं को व्यक्त करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को किसी माध्यम की आवश्यकता होती है।  संगीत, नृत्य, चित्रकारी या कला का कोई भी स्वरूप वेदनाओं और भावनाओं को प्रकट करने का सबसे उत्तम मार्ग होता है। लेखनी इनमें से ही एक प्रकार है, जो कि व्यक्ति को वो सारी स्वतन्त्रता देती है। व्यक्ति जो कुछ प्रत्यक्ष रूप से सहज नहीं महसूस कर सकता उसे वह अपने लेखन के माध्यम से सहज ही व्यक्त कर सकता है।)
  

Wednesday 20 April 2022

तुम आना जरूर...

                            तुम आना जरूर...

सुनो,
आओगी जब तुम
लेते आना मेरी उन सारी खुशियों को,
जो मैंने तुम्हारे आश में 
तुम पर उधार रखे हैं। 
उन सारी खामोशियों की वजह लेते आना,
जिन्हें मैं बेवजह ही ढो रहा हूँ।
हर उस दर्द का मरहम बनकर आना,
जो मैंने हर किसी से छिपाए हैं।
हर उस उम्मीद की सच्चाई बनकर आना,
जो मैंने तुमसे लगाए हैं।
के मेरे सारे त्यागों प्रतिक्षाओं का, 
तुम हिसाब बन कर आना।
एक वक्त होगा इश्क़ मेरा, 
तुम बेहिसाब बन कर आना।
आना ऐसे की जैसे, 
आती है तुम्हारी स्मृति।
आकर छा जाना मेरे मानस पर
जैसे किसी मरुस्थल में छाती हो वृष्टि।
सुनो, तुम आओगी ना?
सारे ख्वाबों को सच कर जाओगी ना?
न आ सको तो तुम मत आना,
परन्तु आकर फिर न जाना।
मरु को बंजर ही रहने देना
पर झूठा प्रेम उपवन न लगाना।
                                           
                                                :- संदीप प्रजापति

( हिंदी साहित्य जगत में प्रेम रस का अपना एक विशेष महत्त्व है। प्रेम रस की विधा और प्रेम की क्षुधा को जीने का कविताओं से बेहतर कोई दूसरा विकल्प खोज पाना तो शायद ही मुमकिन हो। यह कविता उन सभी हिंदी भाषी पाठक को समर्पित है, जो जीवन में प्रेम की आश को छोड़ना नहीं चाहते।और हाँ शायद छोड़ना भी नहीं चाहिए। क्या पता कब जीवन करवट ले और आपके हिस्से भी प्रेम आ जाए। राधा, रुक्मिणी वाला न सही पर मीरा वाला तो आ ही जाए।)  

Saturday 26 March 2022

जीवटता की ओर...

संघर्षो से मत भाग तू, अब तो प्यारे जाग तू। उम्र हुई जवानी की, करतब कर दिख लाने की। कभी कभी यात्राएं हमें ऐसे व्यक्तियों से मिलाती है। जिनसे मिलकर या उन्हें देखकर हमारा जीवन जीने का हौसला बढ़ जाता है। उनकी जीवटता के सामने हमारे तकलीफ और अकर्मण्यता कितने तुच्छ हैं, यह हमें तब प्रतीत होता है जब हम अपने सामने ही किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं, जो हमसे भी दयनीय स्थिति में हो फिर भी जीने की ललक न छोड़े। ऐसे लोगों का दिखना कोई संयोग नहीं। ईश्वर इन्हें पूर्वनियोजित तरीके से हमारे सम्मुख उपस्थित करता है, जिससे हम खुद के रुके हुए जीवन में हौसला फूंक सकें। किसी मासूम बच्चे का खिलौने बेचते हुए दिख जाना, किसी विकलांग व्यक्ति द्वारा कोई कलाकृति करना या किसी एकल माँ द्वारा अपने शिशुओं के पालन के लिए सँघर्ष करना। सफर के दौरान ऐसे व्यक्तियों से आए दिन हम अवगत होते हैं। आपने गौर किया हो या न पर शायद इनके जीवन में हमसे अधिक संघर्ष होने के बावजूद ये लोग जीवन को चुनौति देते हैं और जीने की लालसा बरकरार रखते हैं। क्या इन्हें जीवन से कोई शिकायत नहीं होती या इन्होंने इसे ही जीवन मान लिया है। निराशा मनुष्य का जीवन के आनंद से नाता तोड़कर उसे आत्महत्या की ओर उकसाती है, इसीलिए हमें चाहिए कि हम किसी भी परिस्थिति में निराश न हो। अगर अथाह परिश्रम के बाद भी हमें असफलता ही हाथ लग रही है तो भी हमें निराश न होकर प्रयत्न करते रहना चाहिए। हो सकता है ईश्वर हमसे कुछ और अधिक बेहतर करवाना चाह रहे हों। इसीलिए कहा भी गया है :- मन का हो तो अच्छा, मन का न हो तो और भी अच्छा। क्योंकि वो ईश्वर के मन का होता है और ईश्वर किसी का बुरा नही चाहते। हम - आप जैसे लोग जीवन में आने वाली हर छोटी - छोटी तकलीफों से निराश हो जाते हैं तथा अपनी जिंदगी और ईश्वर को कोसने लगते हैं। क्या बगैर मुश्किलों के जीवन में सुख का अनुभव कर पाना सम्भव है? जब तक जीवन में संघर्ष नहीं होगा तब तक हमें परिश्रम का महत्त्व और सफलता का स्वाद समझ नहीं आ सकता। इसीलिए जीवन में आने वाली सभी चुनौतियों को स्वीकार करते हुए एक योद्धा के भांति लड़कर विजय प्राप्त करना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। :- संदीप प्रजापति

Wednesday 23 March 2022

भाग्य

                                    भाग्य

    

क्यों तू कोषे भाग्य को

बना कर्म को पतवार,

कूद संघर्षों के दरिया में

दे अस्तित्व को ललकार।

      कितना आसान होता है न? अपनी नाकामी को भाग्य का दोष दे देना। कह देना की मैंने कोशिश बहुत की मगर यह तो मेरी किस्मत में ही नहीं था। अगर भाग्य ने साथ दिया होता तो आज मैं भी कुछ होता।
     पर क्या सच में सफलता के लिए कर्मों के अलावा भाग्य का भी उतना ही महत्व है जितना कि कर्मों का है?
क्या सच में भाग्य के बिना कोई सफल या महान नहीं हो सकता? क्या एक भाग्यविहीन व्यक्ति सफल नहीं हो सकता? हाँ माना कि भाग्यशाली होना अच्छी बात है, जिससे जीवन में सफलता आसानी से प्राप्त हो सके। परन्तु मनुष्य को चाहिए की सदा भाग्य के भरोसे ही न बैठा रहे। उसे कर्मों यानी कि परिश्रम की ओर अधिक ध्यान देना चाहिए। भाग्य साथ दे न दे लेकिन कर्म जरूर साथ देंगे। एक कर्मविहीन व्यक्ति के सफल होने की संभावना बहुत कम ही हो सकती है, परंतु किसी कर्तव्यपरायण और कर्मठ व्यक्ति के सफल होने की सम्भावना निश्चित ही है।

Saturday 5 March 2022

त्रिवेणी संगम : एक अविस्मरणीय यात्रा

त्रिवेणी संगम : एक अविस्मरणीय यात्रा


मैं हिंदू मेरे हिंदुत्व का परचम हो तुम।

मैं प्रयाग मेरे तीर्थराज का संगम हो तुम।।

                                                    :-संदीप प्रजापति



आज मैं आपको इन पंक्तियों के लिखने का कारण बताऊँगा,जिसको जीना अपने आप में ही गर्व है।

     यों तो हम जीवनभर कई यात्राएँ करते हैं। जिनमें से कुछ पूर्वनिर्धारित होती हैं तो कुछ आकस्मिक। कुछ यात्राएँ हमें याद ही नहीं रहती तो वहीं कुछ यात्राएँ हमें जीवन भर याद रहती है और जीवन के सुंदर होने का एहसास करवाती हैं। मैं आपको एक ऐसी ही अविस्मरणीय यात्रा का वृत्तांत इस ब्लॉग के माध्यम से साँझा करने जा रहा हूँ। आशा करता हूँ कि आप इस ब्लॉग के माध्यम से ही इस अलौकिक स्थान के सुंदरतम दर्शन सुलभ ही कर पाएँगे।


       वैसे तो समाज की मान्यता के अनुसार और सुरक्षा की दृष्टि से यात्राएँ परिजनों के साथ समूह में ही करनी चाहिए ताकि किसी भी यात्रा का आनंद दोगुना हो जाए। परंतु मेरे लिए यह केवल अपवाद मात्र है। यदि आप एकल यात्रा को चुनते हैं तो आप अत्यधिक जिम्मेदार, जागरूक, निडर और साहसी बनते हैं। साथ ही साथ आपको आपका संपूर्ण समय केवल अपने लिए अपनी इच्छानुसार जीने का मौका मिलता है तथा प्रकृति माता द्वारा अत्यधिक ज्ञान अर्जित करने का अवसर प्राप्त होता है।


       तो चलिए हम अपने ब्लॉग की ओर चलते हैं। आज मैं आपको भारत के तीर्थराज यानी प्रयागराज ले चल रहा हूँ। वैसे तो पौराणिक हिंदू मान्यताओं के अनुसार यह नगर अत्यधिक पवित्र और खास अहमियत रखता है। हिंदू धर्म में इस जगह का महत्व और उल्लेख मिलता है। उत्तरप्रदेश राज्य में बसा यह नगर पूरे भारत से जुड़ा हुआ है। प्रयागराज में त्रिवेणी या संगम क्षेत्र यहाँ की सबसे सुंदर जगह है। मान्यता के अनुसार यहीं पर तीन पवित्र नदियों गंगाजी, यमुनाजी और सरस्वतीजी का मिलन होता है। जिसके कारण ही इसका नाम त्रिवेणी या संगम पड़ा। यहीं पर पापनाशिनी माँ गंगा मनुष्य के पापों को नष्ट करती है।


         संगम पर भक्तों और श्रद्धालुओं का तांता साल भर लगा रहता है। लेकिन कुछ प्रमुख त्योहारों और कुम्भ मेलों पर यहाँ होने वाली भीड़ का कोई सानी नहीं। प्रत्येक १२ वर्ष में यहाँ पर महाकुम्भ मेले का आयोजन होता है। इसी प्रकार प्रत्येक वर्ष माघ मेले का भी आयोजन होता है। जिसमें श्रद्धालु कल्पवास के लिए आते हैं। इस वर्ष माघ मेले में मैंने भी संगम आने का निश्चय किया और गंगा मईया की कृपा से उनके दर्शन भी हुए। प्रयागराज में जैसे ही आप शास्त्री ब्रिज से संगम का विहंगम दृश्य देखते हैं एक क्षण के लिए खुद को पृथ्वी का सबसे सौभाग्यशाली व्यक्ति समझने का गौरव होना कोई अचरज नहीं। लाखों की संख्या में मनुष्यों का जमावड़ा, न जाने कितने सारे छोटे छोटे अस्थायी झोपडें, साधु-संत-महात्मा, भक्तिमय वातावरण, आरती-पूजा, शंखनाद, भजन इत्यादि आपको अपनी ओर आकर्षित करेंगे ही।

 

       संगम को जी भर जीने के लिए आपको कम से कम एक दिन-रात की आवश्यकता पड़ती है और एक स्थाई जगह जहाँ आप ठहर सकें। संगम पहुँचते ही मैं सबसे पहले बड़े हनुमान मंदिर, लेटे हुए हनुमान मंदिर और श्री आदि शंकर विमान मण्डपम मंदिरों में ईश्वर के दर्शन के लिए गया। जिससे मुझे ईश्वर के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। श्री आदि शंकर मण्डपम की रचना शैली, भव्यता और सुंदरता ने तो मन ही मोह लिया था। और तो और इस मंदिर के ऊपरी मंजिले से पूरे संगम का अलौकिक दृश्य देखना किसी स्वप्न से कम नहीं। दूर दूर तक जगमगाती लाईटें, ब्रिज, गंगा मईया, भक्तिमय वातावरण, ठंडी हवाएं, इलाहाबाद फोर्ट और तिरंगा। आहा...।


         मंदिरों के दर्शन के बाद मैं वहाँ से निकलकर गंगा जी के दर्शन, आरती और स्नान के लिए गया। संगम की बलुई मिट्टी, गंगा जी की कलकल की ध्वनि, घाटों की सुंदरता और नाव, पानी में तैरते दीप, गंगाजल के डिब्बे, इत्यादि मन को आल्हादित कर देते हैं। गंगा जी के दर्शन कर मैं गंगा आरती का साक्षी बना। फिर मैंने गंगा जी में स्नान कर जाने-अनजाने हुए पापों के लिए क्षमा याचना की और सभी के उज्ज्वल भविष्य की कामना की। इतनी ठंड रात में गंगा जी में स्नान करना आसान तो नहीं पर जहाँ श्रद्धा,आस्था और भक्ति हो वहाँ कुछ मुश्किल नहीं होता। चारों तरफ भक्ति का वातावरण, हर कोई धार्मिक कर्मकांड करते हुए नजर आना, अपने परिचितों का अंतिम संस्कार, मुंडन, इत्यादि कितना कुछ देखने और सिखने को मिला। शायद किसी अच्छे कर्म के कारण ही इन सब का साक्षी होने का मौका मुझे मिला। सारे धार्मिक कर्म करने के पश्चात कुछ देर शांति से गंगाजी के पास बैठना परम् सुख की अनुभूति करवाता है।



      इसके बाद मैंने मेले की ओर रुख किया। मेले की रौनक देखते ही बनती थी। तरह तरह की धार्मिक और घरेलू वस्तुएं , पहनने-ओढ़ने  की चीजें, खाद्यपदार्थों के स्टाल कितना कुछ था। हालांकि मुझे मेले में अत्यधिक रुचि नहीं सो मैं वहाँ से निकल गया। अरे हाँ, मैं तो 'नमामि गंगे' और 'रामायण जी' के ऐतिहासिक प्रदर्शनी के बारे में बताना ही भूल गया। यहाँ पर आयोजित प्रदर्शनी जिसमें 'नमामि गंगे प्रोजेक्ट' और 'रामायण जी' को बहुत ही सुंदर और वैज्ञानिक तरीके से प्रस्तुत किया गया था इस प्रकार की प्रदर्शनी का आयोजन करना युवा वर्ग को भारत से रूबरू करवाने के लिए आवश्यक है।



       संगम से ब्रिज को देखते ही कुछ पंक्तियां याद आने लगती है:

एक जंगल है तेरी आँखों में

मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ।

तू किसी रेल-सी गुजरती है

मैं किसी पूल-सा थरथराता हूँ।


और हाँ सुना है कि संगम दो बार आना चाहिए। तो देखते हैं दुबारा कब बुलावा आता है।

      संगम में इतना कुछ है कि जिसको लिखना मेरे बस का नहीं। इसीलिए कहूंगा कि संगम को अनुभव करना होगा और जीना होगा।


      अंत में उन मित्रों का सहृदय धन्यवाद जिन्होंने अपने पास ठहरने की उचित व्यवस्था प्रदान की और स्वनिर्मित स्वादिष्ट भोजन से आतिथ्य किया। उनके आतिथ्य का सदा ऋणी रहूंगा।

(नोट:- सभी से एक आग्रह है। यदि आपको धर्म में आस्था न हो तो भी एक बार इस प्रकार की जगह पर जरूर जाएं। इस तरह की जगहों का संबंध केवल धर्म से जोड़ना उचित नहीं। इन जगहों पर जीवन जीने की कला का दर्शन होता है। जिससे आप अपने जीवन को एक नई दिशा दे पाएंगे।)


Friday 25 February 2022

युद्ध या प्रेम : कौन श्रेष्ठ

                      युद्ध या प्रेम : कौन श्रेष्ठ


युद्ध और प्रेम में कौन श्रेष्ठ है? युद्ध या प्रेम! यूँ तो श्रेष्ठ वही हो सकता है जो अड़िग, अटल और सत्य हो। जो स्वभाविक हो जिसमें किसी प्रकार का छल, हिंसा या शक्ति प्रयोग न हो। प्रेम तो एक अनादि सत्य है जो किसी न किसी रूप में सृष्टि के आरंभ से लेकर अंत तक रहेगा। जिसका होना मानव जीवन के लिए वरदान है,  जिसके बिना ये सृष्टि सुनी है। पर युद्ध का क्या? क्या यह किसी भी रूप में मानव सभ्यता के लिए हितकारी है? केवल सत्ता, शक्ति, महत्ता इत्यादि के लोभ में युद्ध उत्पन्न करना और मानवीय सभ्यता का नाश करना कहाँ तक उचित है। युद्ध कुछ दलों के बीच का प्रसंग हो सकता है, परन्तु इसका परिणाम सम्पूर्ण संसार को झेलना होता है। संसार की प्रगति को पीछे की ओर धकेलना, गरीबी, भुखमरी और अराजकता ही युद्ध की देन हो सकती है। जबकि प्रेम तो मनुष्य का मनुष्य से अनादि काल तक का संबंध जोड़ती है। कहीं दिलों से दिलों को तो कहीं देशों को देशों से जोड़ती है। विकल्प भी हमारे ही हाथों में है हमें युद्ध चाहिए या प्रेम।

Monday 24 January 2022

अयोध्या जी : श्रीरामजन्म भूमि

               अयोध्या जी : श्रीरामजन्म भूमि


अयोध्या जी... कितना सुंदर और अलौकिक है ना यह नाम? नाम मात्र से ही जीवन में एक आशा दौड़ जाती है। हिंदू धर्म में आध्यात्मिकता का एक प्रमुख केंद्र, तीर्थ स्थल, सर्व पूरियों में विशिष्टता रखती यह 'अयोध्या पूरी' कई सालों से हिंदुओं के आस्था का केंद्र बनी हुई है। अनेकों बार बसने-उजड़ने की कहानी संजोए, कई आक्रमण झेले हुए आज भी यह नगरी अपनी प्राचीनता और भव्यता सहित विराजमान है। जिसके कण-कण में प्रभु 'श्रीराम' बसते हैं। सालों से विवादों में घिरे होने के बावजूद यह नगरी और नगरवासी आज भी 'रामराज्य' की संकल्पना में जीते हैं। अवध क्षेत्र में रहते प्रत्येक नगरवासी के मुख से आज के युग में भी चारों पहर 'राम नाम' ही सुनने को मिलना राम जी के प्रति उनकी आस्था, श्रद्धा और विश्वास का ही परिणाम है।

इस नगरी के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्त्व को देखते हुए देश-विदेश से लाखों दर्शनार्थी और पर्यटक यहाँ आते हैं और जीवन से जुड़े रहस्यों को भी समझने की कोशिश करते हैं। क्योंकि जीवन की व्याख्या धर्म से बेहतर शायद कहीं और नहीं मिल सकती। तो आइए आज हम भी चलते हैं 'अयोध्या जी'। अयोध्या जी यह भारत के उत्तरप्रदेश राज्य में बसी नगरी है। जो की यातायात के सभी साधनों से जुड़ी हुई है, जिसके कारण आप भारत के किसी भी हिस्से से यहाँ आसानी से पहुँच सकते हैं। यहाँ आने की यात्रा भी अपने आप में उल्लासपूर्ण होती है। एक बार अयोध्या नगरी में पहुंचने के बाद आपको चारों तरफ साधु-महात्मा और पंडितों का तांता लगा हुआ दिखेगा। जिनमें से कुछ पंडित तो केवल लुटेरों के भांति ही होते हैं। और हाँ यहीं से शुरू होती है आपके अयोध्या दर्शन की यात्रा। आप यहाँ से कई आकर्षक घाटों, मंदिरों, धार्मिक स्थलों के दर्शन कर सकते हैं।


मान्यता के अनुसार अयोध्याजी में प्रवेश करते ही आपको सबसे पहले हनुमान गढ़ी में हनुमान जी के दर्शन करने चाहिए और उनकी आज्ञा से अयोध्या नगरी और रामजन्मभूमि क्षेत्र व रामलला के दर्शन करने चाहिए। तो आइए हम चलते हैं हनुमान गढ़ी मंदिर। यह मंदिर एक टीले पर बसा है। मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचने के लिए लगभग ७६ सीढ़ियों को चढ़ना होता है, जिससे हनुमान जी के भव्य दर्शन प्राप्त हो सकें। मंदिर के प्रांगण से हनुमान जी की प्रतिमा के अलौकिक दर्शन होना बेहद सुखद अनुभव होता है। यह मंदिर मानसिक शांति और आध्यात्मिकता का केंद्र है। इसके बाद हम क्रमशः कनक भवन, दशरथ महल, सीताजी की रसोई, इत्यादि के भी दर्शन कर सकते हैं और इन महलों, भवनों की भव्यता को देखकर आनंद का अनुभव करते हैं। यहाँ के इन महलों, भवनों और मंदिरों की स्थापत्य कला भी अपने आप में काफी अद्भुत है।


अब हम चलते हैं रामलला के दर्शन करने जिसकी शुरुआत होती है रामजन्मभूमि क्षेत्र से। जहाँ जाने के लिए आपको घंटों कतार में लगना होगा और सुरक्षा कारणों से आपकी सभी वस्तुएं जमा करानी होगी। रामलला के जयकारे की गूंज के साथ धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए सुरक्षाकर्मियों की निगरानी में आप जन्मभूमि क्षेत्र तक पहुंचते हैं। जहाँ आपको भव्य मंदिर निर्माण के कार्यों, नींव स्थल, आकर्षक स्तंभों, खंभों इत्यादि के दर्शन होते हैं। हालांकि भव्य मंदिर निर्माण कार्य अभी चल ही रहा है, जिससे आपको मंदिर के दर्शन नहीं होते। कुछ आगे बढ़ने पर आपको रामलला की प्रतिमा के दर्शन होंगे जिसकी स्थापना राममंदिर में होगी। रामलला की प्रतिमा के दर्शन करना ही जैसे त्रेता के साक्षात राम के दर्शन हो जाने के स्वरूप है। राम जी के दर्शन से सुख-शांति और आनंद की प्राप्ति होने के पश्चात आप अयोध्या जी में बसे अनेकों घाटों और सरजू मईया के दर्शन के लिए जा सकते हैं।

घाटों में सुप्रसिद्ध नयाघाट, अयोध्या जी के प्रमुख घाटों में से एक है। यहाँ घाट पर स्नान-ध्यान, मुंडन, अंतिम-संस्कार, इत्यादि धार्मिक कर्मकांड किए जाते हैं। घाट से ही आप सरजू मईया के पावन जल में स्नान कर अपने आप को दोष मुक्त करने का प्रण ले सकते हैं। पर्यटन की भावना से आए हुए लोगों के लिए यहाँ नौकाविहार एक अच्छा विकल्प हो सकता है। नौकाविहार से आप सरयू नदी के मध्य में जाकर अयोध्या नगरी में बसे घाटों के विहंगम दृश्य को देख सकते हैं, इन्हीं घाटों पर नित आरती होती है। जिसका साक्षी होने के लिए प्रत्येक दर्शनार्थी इच्छुक होता है। घाटों की इस शृंखला में झुनकी घाट, तुलसी घाट, राजघाट, इत्यादि भी प्रमुख हैं।

घाटों की पूजा-अर्चना और धार्मिक कर्मकांडों का अनुभव करने के पश्चात आप 'राम की पैड़ी' जा सकते हैं। कहते हैं अयोध्या जी आए और 'राम की पैड़ी' न देखा, तो आपने कुछ न देखा। 'राम की पैड़ी' पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया गया एक बहुत ही सुंदर स्थल है। जहाँ जल की धारा के एक ओर भव्य एवं प्राचीन इमारत और मंदिर स्थित हैं तो दूसरी ओर पर्यटकों के लिए सूंदर पार्क, उद्यान इत्यादि है। पिछले कुछ वर्षों से इसी 'राम की पैड़ी' पर विश्व प्रसिद्ध भव्य "दीपोत्सव" का भी आयोजन किया जाता है। 'राम की पैड़ी' की सुंदरता को देखते हुए यहाँ कुछ हद तक छात्र-छात्राएं और प्रेमी युगल भी समय बिताने के लिए आते रहते हैं। यहाँ आस-पास में कुछ स्टॉल और छोटे-छोटे फेरीवाले पर्यटकों की जरूरतों के उपयुक्त सामान बेचते हुए देखे जा सकते हैं। पर्यटन के विषय हेतु अयोध्याजी में 'राम की पैड़ी' सबसे सुंदरतम स्थान है। हालांकि संपूर्ण अयोध्या जी का धार्मिक महत्त्व तो है ही। साथ ही साथ पर्यटन का भी महत्व है। इन सब के अलावा अयोध्या जी में प्राचीन घरों को देखना भी अद्भुत है। जिनकी अवस्था अब बिल्कुल जीर्ण हो चुकी है। इनमें से कुछ तो खंडहर की भांति प्रतीत होते हैं। यूँ तो अयोध्या जी का वर्णन करने को तो शब्द ही कम पड़ जाए और लेख समाप्त ही न हो। परन्तु इस लेख की लंबाई आवश्यकता से अधिक न हो जाए इसलिए लेख को यहीं समाप्त करना पड़ रहा है।


तो कैसी लगी आपको यह अयोध्या जी के दर्शन की यात्रा। आशा करता हूँ कि इस लेख के माध्यम से आपको भी अयोध्या नगरी, रामलला, राम की पैड़ी और अनेकों घाटों के दर्शन का अनुभव और रस प्राप्त हुआ होगा। अपने विचार और अनुभव कमेंट्स में साँझा करें। प्रभु श्रीराम  सबका मंगल करें।
जय श्रीराम🚩

पुरुष

                            पुरुष                 पुरुषों के साथ समाज ने एक विडंबना यह भी कर दी की उन्हें सदा स्त्री पर आश्रित कर दिया गया। ...